इंतज़ार की कीमत भाग 10
सुरेश पलंग के पास आकर खड़ा हो गया कुछ देर यूंही खड़ा रहा फिर कुछ सोचकर पलंग पर बैठ गया जानकी अपने में सिमटने लगी यह बात सुरेश ने महसूस किया सुरेश ने गम्भीर स्वर में कहा " जानकी मुझसे घबराने की जरूरत नहीं है मैं जानता हूं कि, तुम्हारे पिता ने तुम्हारी शादी गांव में कर दी है तुम बचपन से लेकर आज तक शहर और एशो-आराम में रही हो यहां गांव में रहना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि यहां तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी यह गांव जरूर है पर थोड़ी बहुत शहरी सुख-सुविधा मेरे घर में भी है इसलिए तुम्हें ज्यादा असुविधा नहीं होगी और जब-तक तुम स्वयं मन से मुझे अपना पति स्वीकार नहीं करोगी मैं तुम्हें हाथ भी नहीं लगाऊंगा क्योंकि जहां तक मैंने अनुभव किया है कि,तुम इस शादी से खुश नहीं हो इसका क्या कारण है यह तो मैं नहीं जानता पर मैं इतना तो समझ गया हूं कि तुम गांव में शादी नहीं करना चाहतीं थीं क्योंकि मैंने तुम्हें अपनी मां से कहते सुन लिया था कि, तुम गांव में शादी नहीं करना चाहतीं थी।। लेकिन मुझे विश्वास है कि, तुम बहुत जल्दी ही गांव को पसंद करने लगोगी जानती हो ऐसा क्यों होगा क्योंकि यहां तुम्हें बहुत प्यार और सम्मान मिलेगा अब तुम सो जाओ इतना कहकर सुरेश पलंग से उठ गए।
सुरेश की बात सुनकर जानकी इतना तो समझ ही गई थी कि, सुरेश बहुत अच्छे इंसान हैं इनको नाराज़ करना ठीक नहीं है क्योंकि अब मुझे अपना पूरा जीवन इन्हीं के साथ बिताना है यह सोचकर जानकी ने अपना घुंघट उल्ट दिया और जाते हुए सुरेश का हाथ पकड़ लिया।
सुरेश ने पलटकर जानकी की ओर देखा और जानकी की सुन्दरता में खोता चला गया।
जानकी को अपनी ससुराल में कोई भी तकलीफ़ नहीं थी सुरेश अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे।सुरेश के एक चचेरे बड़े भाई थे उनकी शादी हो गई थी उनके दो जुड़वां बच्चे भी थे जिनकी उम्र तीन साल की थी जानकी की जेठानी बहुत अच्छी थी पर वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी इसलिए पुरानी परम्पराओं को मानती थी।
समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा जानकी की शादी को तीन साल बीत गए पर वह अभी तक मां नहीं बन सकी थी अब गांव और घर में तरह-तरह की बातें होने लगी।एक दिन जानकी की सास ने एक औरत को बुलवाया और उससे कुछ कहा वह औरत जानकी के कमरे में गई उसने जानकी को लेटने के लिए कहा जानकी चुपचाप लेट गई वह औरत जो शायद दाई थी उसने जानकी का पेट हाथों से दबाकर देखा नाड़ी देखी। उसके बाद कमरे से बाहर चली उसने जानकी की सास से कहा कि, जानकी कभी मां नहीं बन सकती यह सुनकर सभी स्तब्ध रह गए यह बात पूरे गांव में फ़ैल गई।जब जानकी ने यह सुना तो उसे बहुत दुःख हुआ जानकी की सास सुरेश की दूसरी शादी की बात करने लगी। तभी बलराम ने कहा की नहीं सुरेश की दूसरी शादी नहीं होगी जानकी और सुरेश अपने बड़े चचेरे भाई के उस बच्चे को गोद ले लें जो पैदा होने वाला है पर जानकी अपनी जेठानी के बच्चे को गोद नहीं लेना चाहती थी उसका कहना था यदि कभी बच्चे को पता चल गया तो वह मुझे अपनी सगी मां का सम्मान नहीं देगा इसलिए अनाथालय से कोई नवजात शिशु गोद लेले पर इस बात के लिए सुरेश के माता-पिता तैयार नहीं हुए उनका कहना था कि,वह किसी बाहरी बच्चे को जिसके कुल खानदान को वह नहीं जानते उसे इस घर का वारिस नहीं बना सकते।अगर बच्चा गोद लेना है तो अपने घर खानदान का लेना होगा नहीं तो वह सुरेश की दूसरी शादी कर देंगे।इसी बीच जानकी के पिता की तबीयत ख़राब है गई जानकी उन्हें देखने शहर गई तो उसने देखा निर्मला वहां है वह सुखकर कांटा हो गई है उसको अनेकों बीमारियों ने घेर लिया है और वह मां बनने वाली हैं एक महीने का बच्चा उसके गर्भ में पल रहा है डाक्टर ने कहा था कि गर्भपात भी नहीं हो सकता जान का खतरा है तब जानकी ने एक योजना बनाई उसने अपनी ससुराल यह ख़बर भिजवाई की वह मां बनने वाली है पर डाक्टर ने कहा है कि, उसे हमेशा डाक्टर की रेखदेख में रहना होगा नहीं तो जच्चा-बच्चा दोनों के लिए खतरा है। सुरेश के घर वाले सीधे-सादे लोग थे वह लोग जानकी की बात को सच मान बैठे बलराम और सुरेश आए थे वे दोनों जानकी से मिले और ख़ुश होकर कहा कि, जब-तक बच्चा हो नहीं जाता तुम यही अपने माता-पिता के पास रहो। घनश्याम ने भी अपनी बेटी के मोह के कारण अपने दोस्त को धोखा दिया।नौ महीने बाद निर्मला ने एक बेटे को जन्म दिया बच्चे को जन्म देते ही उसकी मौत हो गई रातों-रात निर्मला का दाह-संस्कार कर दिया गया और जानकी अपने बहन के बच्चे को अपना बच्चा बनाकर अपनी ससुराल आ गई।
सुरेश के घर वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा वहां खुशियों की बहार आ गई पूरे गांव वालों को दावत दी गई घर में जानकी का सम्मान बढ गया जानकी ने बच्चे का नाम कैलाश रखा कैलाश धीरे-धीरे बड़ा होने लगा।
कुछ दिन बाद सुरेश के जिगरी दोस्त गोपाल के घर बेटी का जन्म हुआ उसका नाम उर्वशी रखा गया एक दिन सुरेश ने गोपाल से कहा कि,वह उर्वशी की शादी कैलाश से करेंगे जानकी इसके लिए तैयार नहीं थी लेकिन सुरेश की ज़िद्द के आगे वह मौन रह गई।
समय का पंक्षी उड़ता रहा कैलाश दस साल का हो गया इस बीच जानकी के सास-ससुर की मौत हो गई और जानकी के माता-पिता भी एक कार दुर्घटना में मारे गए अब जानकी के पिता का शहर का बिजनेस सुरेश को देखना था जब सुरेश गांव छोड़कर शहर जा रहा था तो उसने उर्वशी और कैलाश का विवाह गांव में गांव वालों के सामने करवा दिया और कहा था कि,जब कैलाश और उर्वशी बड़े हो जाएगे तो वह उर्वशी का गौना लेकर जाएगा।
उसके बाद सुरेश जानकी और कैलाश के साथ शहर आ गया उधर कुछ दिन बाद गोपाल की भी मौत हो गई तब सुरेश गांव गया था उसने पार्वती जी से कहा था कि,वह अपने वचन पर क़ायम है।
इधर कैलाश शहर आकर बिगड़ने लगा उसमें वही सब लक्षण दिखाई देने लगे जो उसके बाप में थे निर्मला ने जानकी को बताया था कि, जिससे उसनेे शादी की थी वह बहुत ही अय्याश और गंदा आदमी था वह कोठे पर जाता था घर में भी बाजारू औरतों को लेकर आता था शराब पीना जुआ खेलना यह सब तो उसके लिए आम बात थी।
जानकी देख रही थी कि, कैलाश में बुराई बढ़ती जा रही है जानकी ने तो पहले इन बातों को नज़रंदाज़ किया।इसी बीच जानकी के जेठ का परिवार भी शहर आ गया क्योंकि उनके लड़कों की नौकरी यही लग गई थी। लेकिन जानकी उनके घर नहीं जाती थी न ही कैलाश को जाने देती थी क्योंकि धीरे-धीरे जानकी को अब अपनी दौलत का घमंड होने लगा था वह अपने जेठ के परिवार को हेय दृष्टि से देखने लगी थी।
यह बात जानकी के जेठ जेठानी समझ गए थे उनके बच्चों को भी अपनी चाची का व्यवहार बुरा लगता था इसलिए उन लोगों ने जानकी के घर आना बंद कर दिया था।
सुरेश जानकी के व्यवहार से आहत हो गए थे उन्होंने कैलाश को भी समझाने की कोशिश की लेकिन जानकी और कैलाश अपने पैसे के घमंड में इतने चूर थे कि, उन्हें किसी भी रिश्ते की कोई परवाह नहीं थी।यह सब देखकर सुरेश अन्दर ही अन्दर घुटने लगे एक दिन उनको हार्टअटैक आ गया उन्होंने अपनी अंतिम सांस लेते हुए जानकी से इतना ही कहा था कि,अगर तुम सच में मेरी आत्मा की शांति चाहती हो तो उर्वशी को अपने घर की बहू बना लेना। तब तक कैलाश इतना नहीं बिगड़ा था इसलिए सुरेश जी ने ऐसा कहा था अगर उनके सामने कैलाश ने अपनी सभी मर्यादाएं तोड़ दी होती तो शायद सुरेश जानकी से वचन नहीं लेते की वह उर्वशी को अपने घर की बहू बनाएं सुरेश की मौत के बाद कैलाश निडर हो गया कैलाश की बरबादी में कुछ हाथ जानकी का भी था क्योंकि जानकी ने बहुत सारी जायदाद कैलाश के नाम कर दिया था और शुरू में उसकी गलतियों को सुधारने के स्थान पर नजरांदाज करतीं रहीं।
जानकी की लापरवाही और सुरेश की मौत ने कैलाश को पूरी तरह बर्बादी के रास्ते पर धकेल दिया।
" मालकिन आप अंधेरे में क्यों बैठी हुई हैं" श्यामा ने वहां आकर कहा और हाल की लाइट जला दी
श्यामा की आवाज सुनकर जानकी अतीत से बाहर निकल आई उन्होंने दर्द भरी आवाज में कहा
" श्यामा अंधेरा तो इस घर में और मेरे जीवन में छा गया है वह रोशनी करने से नहीं जाएगा मुझे तो लगता है कि,अब मेरे घर में रौशनी होगी ही नहीं क्योंकि जिस घर का चिराग ही घर की रौशनी बुझाने लगे तो उस घर में प्रकाश कहां से फ़ैल सकता है"
इतना कहकर जानकी जी वहां से उठकर थके कदमों से अपने कमरे की ओर चल पड़ी जाते-जाते उन्होंने श्यामा से कहा कि उन्हें भूख नहीं है उन्हें खाने के लिए बुलाया न जाए। सीढ़ियां चढ़ते हुए जानकी जी के क़दम लड़खड़ा रहे थे वह किसी हारे हुए जुआरी की तरह अपने कमरे में पहुंची और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक ( सर्वाधिकार सुरक्षित)
17/7/2021