इंतज़ार की कीमत भाग 16
जानकी जी अपनी जेठानी के साथ बातें करतीं रहीं तभी मालिनी अपनी देवरानी मधु के साथ वहां चाय नाश्ता लेकर पहुंची चाय पीते हुए मालिनी ने कहा " चाची जी उर्वशी को विदा कराने मैं और मधु भी आपके साथ चलेंगे और मैंने सोचा है कि दावत वाले दिन हम दोनों जो कपड़े गहने पहनेंगे वैसा ही आप उर्वशी के लिए भी बनवाएगा जिससे हम तीनों बहूएं एक जैसी लगें"
" मैं उर्वशी के लिए ही नहीं तुम दोनों के लिए भी वैसे ही कपड़े गहने बनवाऊंगी जिससे मेरे परिवार की तीनों बहूओं को लोग देखते रह जाएं मैं और दीदी भी एक जैसे ही कपड़े गहने पहनेंगे वर्षों बाद मेरा पूरा परिवार एक साथ मिलकर खुशियां मनाएगा यह देखकर तुम्हारे चाचाजी कितने खुश होंगे शायद यह देखकर वह मुझे माफ़ कर दें तो मेरे मन से बोझ उतर जाएगा" जानकी जी ने दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ कहा
"अच्छा-अच्छा तो आप लोग सिर्फ़ अपने बारे में ही सोच रहीं हैं पर उस शादी की दावत में हम लोगों को भी शामिल होना है यह बात तो तुम भूल ही गई पत्नी जी" तभी मालिनी के पति प्रकाश ने कमरे में आते हुए कहा।
" आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं भैया भाभी जी तो हम लोगों को भूल ही गई और चाचीजी भी अपनी बहूओं के लिए ही गहने कपड़े बनवाने की बात कर रहीं हैं अपने बेटों के लिए कुछ नहीं कर रहीं हैं यह तो पक्षपात है न चाची जी" आलोक ने कमरे में आते मायूसी से कहा।
जानकी जी सभी की प्यार भरी बातें सुनकर भावविभोर हो गई उनकी आंखों में आसूं आ गए उनके आंसू देखकर आलोक घबरा गया " चाचीजी आप रो रहीं हैं कहीं मेरी बात बुरी तो नहीं लग गई"
" नहीं रे पगले यह तो खुशी के आंसू हैं इतना प्यार और अपनापन संभाल नहीं पाई इसलिए खुशी से रो पड़ी" जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा
जानकी जी की बात सुनकर वहां खड़े सभी लोगों के चेहरों पर मुस्कान फ़ैल गई जानकी जी आज बहुत खुश थी सभी को घर आने का निमंत्रण देकर अपने घर के लिए निकल गई।
जानकी जी के जाने के बाद जानकी जी की जेठानी ने मुस्कुराते हुए कहा " आज वर्षों बाद मैंने पहले वाली जानकी को देखा है यह देखकर आज मुझे बहुत ख़ुशी हुई कैलाश की शादी के कारण आज हमारा परिवार फिर से एक हो गया अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि, वह कैलाश की बुद्धि को भी बदल दे तो हमारे परिवार की खोई हुई खुशियां फिर लौट आएगी"
उधर जबसे जानकी गांव से गई थीं तबसे उर्वशी कुछ खोई खोई रहती थी घर के बाहर ज्यादा तो वह पहले भी नहीं जाती थी लेकिन जबकि जानकी यहां से गई थीं तबसे उसने बाहर निकलना बिल्कुल बंद कर दिया।
दोपहर का समय था उर्वशी अपने कमरे में उदास बैठी हुई थी जानकी जी ने उसकी मां के पास संदेशा भिजवाया था कि,वह एक सप्ताह बाद आकर उर्वशी की विदाई करवा कर लेकर जाएंगी।
यह संदेश सुनकर पार्वती जी फूली नहीं समा रही थीं पूरे गांव में यह ख़बर जंगल की आग की तरह फ़ैल गई थी जब यह ख़बर नंदनी को पता चली तो वह उर्वशी से मिलने उसके घर आई।जब नंदनी उर्वशी के घर पहुंची तो पार्वती जी बाहर बैठी किसी से बात कर रही थी नंदनी पार्वती जी से मिलने के बाद उर्वशी के कमरे में चली गई।
उर्वशी अपने कमरे में बैठी हुई शून्य में देख रही थी।उसे नंदनी के आने का आभास ही नहीं हुआ वह वैसे ही शून्य में देखती रही। नंदनी ने उर्वशी को एक-दो बार आवाज लगाई पर उर्वशी ने कोई जवाब नहीं दिया तब नंदनी ने उर्वशी को कंधे से पकड़कर झकझोर दिया।
उर्वशी ने चौंककर पीछे मुड़कर देखा वहां नंदनी खड़ी थी जो घूरते हुए उर्वशी को देख रही थी।
" तू कब आई"?? उर्वशी ने पूछा।
" क्या बताऊं जब तुमने देखा समझ लो तभी आई नंदनी ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।
" लड़कर आइए है क्या तू किसी से जो इतनी गम्भीर बनी हुई है" उर्वशी ने चिढ़ाते हुए पूछा।
" मैं किसी से लड़कर नहीं आई बल्कि तूझसे लड़ने का मन बनाकर आई हूं" नंदनी ने गुस्से में उर्वशी की चोटी खिंचते हुए कहा।
" अरे अरे लड़ना है तो लड़ ले मेरे बाल क्यों उखाड़ रही है" उर्वशी ने बाल छुड़ाने की कोशिश करते हुए मुंह बनाकर कहा।
नंदनी ने उर्वशी की चोटी छोड़ दी और उसके बगल में बैठ गई।
"अब कुछ बोलेंगी भी या मुंह फुलाकर बैठे रहने का इरादा है" उर्वशी ने हंसते हुए पूछा।
" उर्वशी तेरे गौने की तारीख पक्की हो गई"?? नंदनी ने गम्भीर लहज़े में पूछा
" हां हो गई तेरा गौना भी तो होने वाला है"?? उर्वशी ने छेड़ते हुए नंदनी से पूछा।
" उर्वशी तू तो बहुत खुश होगी कितने बड़े घर की बहू बनकर जा रही है" नंदनी ने उर्वशी को गहरी नज़रों से देखते हुए पूछा।
उर्वशी ने शरमाकर अपनी नज़रें झुका ली फिर धीरे से कहा "हां मैं खुश तो हूं हर लड़की ख़ुश होती है तू भी तो ख़ुश है ससुराल जाने के नाम पर पर यह सवाल तू मुझसे क्यों पूछ रही है"?? उर्वशी ने आश्चर्य से पूछा।
" तू मुझसे यह नहीं पूछेगी कि, मैं गम्भीर और नाराज़ क्यों हूं"?? नंदनी ने गम्भीर लहज़े में पूछा।
" क्या पूंछू तू तो हवा से लड़ाई करते हुए चलती है किसी से भीड़कर आ रही होगी" उर्वशी ने नंदनी को छेड़ते हुए कहा।
" अच्छा तो मैं हवा से लड़ती हूं अभी बताती हूं तूझे" नंदनी ने गुस्से में कहा और उर्वशी की चोटी पकड़ने के लिए आगे बढ़ी।
" अरे अरे रूक मेरी बेचारी चोटी ने तेरा क्या बिगाड़ा है जो तू उसके पीछे पड़ी रहती है मेरी मां तू दूर रहकर बात क्यों नहीं करती"?? उर्वशी ने हंसते हुए पूछा।
नंदनी बड़े ध्यान से उर्वशी को हंसते हुए देख रही थी "ऐसे क्या देख रही है मुझे इससे पहले नहीं देखा है क्या"? उर्वशी ने आंख मटकाते हुए पूछा।
" देखा है पर मैं आज तेरे चेहरे की हंसी को देख रहीं हूं मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि,तेरी हंसी कभी भी तेरे चेहरे से गायब न हो" नंदनी ने उर्वशी से कहा
" तू ऐसा क्यों कह रही है मेरी हंसी क्यों गायब होगी कहीं तू इसे चुराने वाली तो नहीं है"? उर्वशी ने धीरे से फुसफाकर पूछा फिर हंसने लगी।
" उर्वशी मुझे तुम्हें कुछ बताना है पर बताने की हिम्मत नहीं पड़ रही है कहीं मेरी बात सुनकर तेरे चेहरे की मुस्कान गायब न हो जाए" नंदनी ने धीरे से कहा।
" बता क्या बताना चाहती है"? उर्वशी ने गहरी नज़रों से देखते हुए पूछा
" उर्वशी मेरे मामा का बेटा आया हुआ है उसने मुझे कैलाश जीजाजी के बारे में जो बताया उसे सुनकर मैं स्तब्ध रह गई अगर तू वह सब जानेगी तो तेरे दिल पर क्या बीतेगी। मैं बताना तो नहीं चाह रही थी पर बताना जरूरी है क्योंकि यह बात तेरी आने वाली जिंदगी से जुड़ी है" नंदनी ने गम्भीर लहज़े में कहा फिर चुप हो गई।
" तू जो कहना चाहती है वह सब मुझे पता है तू कैलाश जी के चरित्र के बारे में बताना चाहती है न और कह नहीं पा रही है कि,वह कोठे पर जाते हैं शराब पीते हैं जुआ खेलते हैं और भी बहुत कुछ" उर्वशी ने दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ कहा।
नंदनी आश्चर्य से उर्वशी को देखती रही जैसे उसे विश्वास ही न हो रहा हो " तुम्हें सब पता है फिर भी तू गौने के लिए मान गई"? नंदनी ने आश्चर्य से पूछा।
" हां तो क्या करती मानना तो था ही" उर्वशी ने लापरवाही से जबाव दिया।
"तू उसके साथ कैसे रहेंगी" नंदनी ने आश्चर्य से पूछा
" यहां भी तो गिरधारी जैसे दरिंदें हैं इनके बीच कैसे रहूंगी" उर्वशी ने गम्भीर लहज़े में पूछा
" उर्वशी तू इस गौने से मनाकर दे तेरे रूप सौन्दर्य को देखकर बहुत से लड़के तुझसे शादी के लिए तैयार हो जाएगे" नंदनी ने उर्वशी को समझाते हुए कहा।
" तो ठीक है तू मुझे अपनी देवरानी बना ले मैं कैलाश के घर उसकी दुल्हन बनकर नहीं जाऊंगी तेरा देवर तो अभी कुंवारा है और मेरे सौन्दर्य को देखकर मोहित भी हो सकता है बोल यह रिश्ता तुम्हें मंज़ूर है" उर्वशी ने गम्भीरता से पूछा।
" यह कैसे संभव होगा••• मेरी ससुराल वाले नहीं तैयार होंगे क्योंकि तुम शादीशुदा हो नंदनी ने हकलाते हुए जवाब दिया उसके चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे।
" नंदनी शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है सच यही है जो तुमने अभी कहा कि, मैं शादीशुदा हूं उपदेश देना और उस पर अमल करना दोनों अलग-अलग बातें हैं कुछ लोगों को छोड़कर सभी की सोच आज भी दकियानूसी ही है इसलिए मैंने बहुत सोच-विचार कर कैलाश के घर जाने का फैसला किया है।इस गांव में भी मैं सुरक्षित नहीं हूं यह तुम भी जानती हो मैं भी जानती हूं इसलिए सच को स्वीकार करने में ही भलाई है अपनी ससुराल में मैं दुनिया की गंदी निगाहों से सुरक्षित रहूंगी मेरा सौन्दर्य गलियों की शोभा बनने से बच जाएगा यही सोचकर मैं अपनी ससुराल जा रही हूं" उर्वशी ने गम्भीर लहज़े में कहा।
" मुझे माफ़ कर दे उर्वशी मैं तुझे उपदेश देने चली थी पर जब उस पर अमल करने का समय आया तो मैं पीछे हट गई तू सही कहती है आज भी औरत बहुत ही मज़बूर है क्योंकि हर औरत अपने पैरों पर नहीं खड़ी है" नंदनी ने रोते हुए कहा और उर्वशी से लिपट गई।
दोनों सहेलियां एक-दूसरे से लिपटकर कुछ देर रोती रही फिर अलग होकर एक-दूसरे के आंसू पोंछने लगी दोनों के चेहरे पर दर्द भरी मुस्कान थी उर्वशी अपने दर्द से दुखी थी नंदनी अपनी सहेली के दर्द से, दोनों की राहें अलग-अलग थीं अब कब वह दोनों मिलेगी उन्हें खुद पता नहीं था।
नंदनी अपने घर चली गई और उर्वशी उसे दरवाजे पर खड़ी जाते हुए देखती रही•••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
22/7/2021