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इंतज़ार की कीमत भाग 15

26 नवम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 15

  जानकी जी सुबह जब तैयार होकर कमरे से बाहर आई तो उनके चेहरे पर मुस्कान फैलीं हुई थी हाल में आते ही उन्होंने सभी नौकरों-चाकरों को अपने पास बुलाया और कहा कि,एक सप्ताह बाद इस घर की बहू का गृह-प्रवेश होगा अब तुम सभी अपने अपने कामों में जुट जाओ पूरे बंगले को दुल्हन की तरह सजा दो क्योंकि इस घर की लक्ष्मी का इस घर में प्रवेश होने वाली है।

" मोहन!! जानकी ने अपने ड्राइवर से कहा

   "जी मालकिन कहिए क्या बात है" मोहन ने पूछा

   " मोहन तुम मेहमानों की दावत का पूरा इंतजाम देखोगे कोई कमी नहीं रहनी चाहिए शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित लोग आएंगे उनकी खातिरदारी में को कमी नहीं होनी चाहिए तुम्हें इसके लिए जितने सहायक चाहिए रख लो अब मुझे कहीं जाना होगा तो मैं स्वयं ड्राइव करके जाऊंगी तुम्हें जो काम मैंने सौंपा है उसे करो। श्यामा यहां इन लोगों को तुम संभालो मैं आलोक के घर जा रहीं हूं मुझे भाई साहब दीदी और सभी परिवार वालों को निमंत्रण देना है" जानकी जी ने मुस्कुराते हुए कहा

  " मालकिन आप आलोक बेटवा के घर जाएंगी तो छोटे मालिक नाराज़ न हो जाए" श्यामा ने शंका जाहिर की,

  " श्यामा यह मेरा घर मैं जिसे चाहूं बुलाऊं कैलाश कौन होता है मुझे रोकने वाला ? पहले मुझे लोगों का डर था दुनिया में बदनामी होगी यह सोचती थी पर अब मैंने इस विषय पर सोचना छोड़ दिया है अब न मुझे दुनिया की परवाह है न कैलाश की उसे इस घर में रहना है तो मेरे हिसाब से रहना होगा वरना वह घर छोड़कर जा सकता है" जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में कहा उन्होंने कैलाश को देख लिया था इसलिए वह कैलाश को सुनाने के लिए थोड़ा ऊंची आवाज़ में बात कर रहीं थीं।

   " मां यह आप क्या कह रहीं हैं आप मेरी मर्ज़ी के खिलाफ आलोक के परिवार को यहां बुलाएगी" ?? कैलाश ने गुस्से में पूछा

  " हां!! बुलाऊंगी!! क्यों ? न बुलाऊं क्या तुम यही चाहते हो"? जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में पूछा

   " हां मैं नहीं चाहता कि, आलोक का परिवार मेरे घर आए" कैलाश ने जल्दी से कहा,

   " ठीक है तुम अपने घर में उन्हें ना बुलाना यह घर तुम्हारा नहीं मेरा है इसलिए जिसे मैं चाहूंगी उसे बुलाऊंगी अगर तुम्हें कोई आपत्ति है तो तुम उस पार्टी में नहीं आना मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा"
जानकी जी ने व्यंग से कहा

  " मेरी शादी की पार्टी होगी मैं ही नहीं रहूंगा तो आपकी बदनामी नहीं होगी अगर मैं यहां न रहूं और पुष्पा के कोठे पर चला जाऊं तो आपकी इज्जत का क्या होगा"??, कैलाश ने जहरीली मुस्कुराहट के साथ पूछा

  " तुम जहां चाहे जा सकते हो अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि मैंने इस विषय पर सोचना छोड़ दिया है तुम पुष्पा के पास जाओ चमेली के पास जाओ या चम्पा के पास वह सब जानकी जी की बहू कहलाने का सम्मान नहीं पाएंगी मेरी बहू तो उर्वशी ही कहलाएंगी अब मैं बदनामी से नहीं डरती क्योंकि तुमने मुझे सम्मानित रहने कहां दिया है तो मैं बदनामी से क्यों डरूं तुम्हारे कारण मेरा खानदान तो पहले ही बदनाम हो चुका है अब थोड़ा और हो जाएगा तो क्या फ़र्क पड़ेगा मुर्दे पर दस मन मिट्टी डालो या बीस मन उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता उसी प्रकार तुमने भी मुझे जिंदा लाश बना दिया है मुझ पर अब कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है अब यहां से जाओ मेरा भेजा खाने की जरूरत नहीं है मुझे बहुत काम करने हैं" जानकी जी ने गुस्से में कहा और हाल से बाहर निकल गई।

  कैलाश अपना सा मुंह लेकर उन्हें जाते हुए देखता रहा फिर गुस्से में पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गया।

  जानकी जी की गाड़ी अपने जेठ के घर के सामने जाकर खड़ी हुई वह कार से निकलकर घर के अंदर पहुंची जानकी जी को अपने घर में देखकर उनके जेठ जेठानी चौंक गए जानकी जी ने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। तभी जेठानी की दोनों बहूएं भी वहां आ गई उन्होंने भी जानकी जी के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया।

  जानकी जी ने बिना किसी भूमिका के अपने जेठ से कहना शुरू किया "भाई साहब मुझसे जो भी गलतियां हुई हैं उसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिए मैं मानती हूं कि, मैंने अपनी गलती को समझने में देरी कर दी है।अब आप लोगों से मैं माफ़ी मांगने आई हूं मैं बहुत अकेली हो गई हूं मुझे आप लोगों का साथ चाहिए नादान और छोटा समझकर मुझे माफ़ कर दीजिए" जानकी ने गम्भीर लहज़े में हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा ऐसा कहते हुए जानकी की आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी।

   जानकी जी की जेठानी ने जानकी को अपने गले से लगा लिया जानकी उनके सीने से लग कर रो पड़ी उन्हें बहुत ही शांति का अनुभव हो रहा था।

  जानकी की बात सुनकर उनके जेठ ने कहा  "जानकी तुम उर्वशी को अपनी बहू बनाकर ला तो रही हो पर तुम्हें उसकी हिफ़ाज़त एक बेटी की तरह करनी होगी क्योंकि कैलाश कैसा है यह तुम भी जानती हो मुझे भी पता है और पूरे शहर को भी इसलिए उर्वशी के मान-सम्मान की रक्षा तुम्हारे हाथों में है अगर इसमें कोई कमी हुई तो मैं तुम्हें क्षमा नहीं करूंगा" जानकी के जेठ ने कठोर शब्दों में कहा।

   " भाई साहब आपको कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा" जानकी जी ने नज़रें झुका धीरे से जबाव दिया।

   " पर चाची जी आप यह गौना ला ही क्यों रहीं हैं किसी मासूम लड़की का जीवन बर्बाद करना क्या ठीक बात है" जेठानी की बहू ने जानकी जी को गहरी नज़रों से देखते हुए कहा।

  " मालिनी मैंने उर्वशी से कहा था कि,वह चाहे तो तलाक ले ले पर उर्वशी इसके लिए तैयार नहीं है उसका कहना है कि,एक शादीशुदा लड़की जब पति से अलग रहती है तो लोग उसे सार्वजनिक वस्तु समझने लगते हैं इसलिए मैं आपके घर ही बहू बनकर आऊंगी। मैं भी चाहती थी कि,वह यह रिश्ता तोड़ दे पर मैं उसकी ज़िद्द के आगे मज़बूर हो गई" जानकी जी ने गहरी सांस लेकर कहा।

   " ठीक है जो हो रहा है उसे होने दो लेकिन उर्वशी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए मैं यही चाहता हूं क्योंकि मेरे खानदान में औरतों को प्रताड़ित करने की परम्परा नहीं है हम अपने घर की बहूओं को घर की लक्ष्मी समझते हैं कैलाश को भी ऐसा ही करना होगा वह बाहर क्या करता है उसका असर उर्वशी बहू पर नहीं पड़ना चाहिए" जानकी के जेठ ने गम्भीर लहज़े में कहा

  " पिताजी यह कैसे सम्भव है कैलाश उर्वशी की आंखों के सामने अय्याशी करेगा तो उर्वशी पर फ़र्क तो पड़ेगा ही कोई जिंदा मक्खी तो निगल नहीं सकता उर्वशी हाड़-मांस की बनी हुई है कोई पत्थर या काठ की पुतली तो है नहीं जो उस पर कोई फ़र्क पड़ेगा ही नहीं" मालिनी ने आश्चर्य से पूछा

   " अब क्या किया जाए जब उर्वशी स्वयं कुएं में कूदने को तैयार है तो क्या किया जा सकता है" जानकी की जेठानी ने अपनी बहू से कहा

   " मुझे तो लग रहा है कि, चाची जी उर्वशी की सुन्दरता पर एक जुआ खेल रहीं हैं अगर जीत गई तो उर्वशी का जीवन संवर जाएगा और अगर हार गई तो उनके बेटे का जीवन रंगीन हो जाएगा" मालिनी न व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा।

  " बहू बड़ों से ऐसे बात की जाती है यही संस्कार मिले हैं तुम्हें" जानकी की जेठानी ने गुस्से में अपनी बहू को डांटते हुए कहा।

  "दीदी आप मालिनी को कुछ न कहिए वह ठीक कह रही है जुआ तो मैं खेल रहीं हूं पर अगर हारी तो उर्वशी के साथ साथ मैं भी हार जाऊंगी पर अभी इसके अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं है। आगे अगर कैलाश की हरकतें नहीं बदलीं तो मैं स्वयं तलाक़ दिलवाऊंगी तब समाज उर्वशी पर अंगुली नहीं उठाएगा कैलाश को दोषी मानेगा इसलिए मैं यह सब कर रहीं हूं। मालिनी औरत आज भी बहुत मजबूर है उर्वशी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है वहां गांव में सुरक्षित नहीं है और यहां मैं अपने घर में उसे बहू के रूप में ही रख सकती हूं वैसे वह मेरे घर में किस अधिकार से रहेगी बिना बारात अगर उसे यहां लाई तो कल को कुछ ऊंच-नीच हो गई तो लोग कैलाश को कुछ नहीं कहेंगे उर्वशी के चरित्र पर लांछन लगाने से बाज़ नहीं आएंगे" जानकी जी ने दर्द भरी आवाज में कहा।

  जानकी की बात सुनकर मालिनी को अपनी गलती का अहसास हुआ उसने जानकी जी से क्षमा मांगी और चाय नाश्ते का प्रबंध करने अन्दर चली गई••••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
21/7/2021


Jyoti

Jyoti

बहुत अच्छा

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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