इंतज़ार की कीमत भाग 19
दूसरी तरफ जानकी जी मेहमानों को विदा कर जब घर में आई और निढाल होकर सोफे पर बैठ गई तभी " चाचीजी हम लोग भी अब चलते हैं" आलोक ने कहा,
जानकी जी ने नज़र उठाकर देखा तो सामने आलोक और मालिनी खड़े हुए थे। जानकी को देखते ही मालिनी और आलोक ने एक साथ कहा "चाचीजी यह क्या आप रो रहीं हैं"?
" क्या करूं बच्चों शाय़द मेरे नसीब में पूरी जिंदगी रोना ही लिखा है उर्वशी की चिंता हो रही है अच्छा यह सब छोड़ो यह बताओ भाई साहब, दीदी और सब कहां हैं तुम लोग जाना क्यों चाहते हो?
मुझे आज तुम लोगों के साथ की जरूरत है कल का सूरज क्या तूफ़ान लाएगा उसे देखने और उससे उबरने के लिए मुझे तुम सभी के साथ की आवश्यकता है इसलिए तुम सभी आज यहीं रूक जाओ" जानकी जी ने उदास लहज़े में विनती करते हुए कहा।
" चाचीजी मां, पिताजी दोनों भैया और छोटी भाभी तो घर जा चुके हैं मैं घर जा रहा हूं आप कह रहीं हैं तो बड़ी भाभी आपके पास रूक जाएगी मैं रूका तो कैलाश सुबह कोई न कोई बहाना बनाकर हंगामा करेगा मैं नहीं चाहता कि,नई बहू के सामने ऐसा कुछ हो इसलिए मैं जा रहा हूं बड़ी भाभी यहां रहेगी" आलोक ने कहा और जानकी का पैर छूकर वहां से चला गया।
जानकी जी ने लम्बी सांस लेकर कहा " चलो बहू मेरे कमरे में ही तुम सो जाना मालिनी जानकी जी के साथ चली गई।
जानकी जी की आंखों से नींद कोसों दूर थी जबकि मालिनी बिस्तर पर लेटते ही सो गई थी जानकी जी सारी रात करवट बदली रहीं उन्हें नींद नहीं आई उनका मन उर्वशी को लेकर बहुत बेचैन था।
मंदिर की घंटियों की आवाज सुनकर जानकी जी ने बिस्तर छोड़ दिया मालिनी अभी निश्चित होकर सो रही थी।
उधर कैलाश अपने कमरे में निश्चित होकर सो रहा था तभी उसका फोन बजने लगा फोन की आवाज सुनकर उर्वशी की नींद भी खुल गई उसका पूरा बदन दर्द से टूट रहा था रात की घटना याद आते ही उसके दिल में एक टीस उठी उधर कैलाश ने फोन उठा लिया "हेलो हां कहो पुष्पा रानी सुबह सुबह कैसे याद किया" पुष्पा का नाम सुनकर उर्वशी चौकन्नी हो गई उधर से जो कहा गया वह तो उर्वशी को सुनाई नहीं दिया लेकिन कैलाश की बात सुनकर उर्वशी को स्वयं पर ही शर्म महसूस होने लगी कैलाश पुष्पा से कह रहा था " पुष्पा रानी मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं तुम्हारे जिस्म की खुशबू तो मुझे दीवाना बनाए हुए है लेकिन एक बात माननी पड़ेगी मेरी पत्नी का जिस्म भी मदहोश करने वाला है तुम्हें तो मैं उपहार देकर अपने क़रीब लाता हूं पर यहां तो कुछ देना भी नहीं है और उस पर पूरा अधिकार मेरा है मैं उसका पति जो हूं वह मुझे मना भी नहीं कर सकती अगर मुझे मना करेंगी तो तुम तो हो ही तुम्हारे आगोश में समाए रहेंगे"
कैलाश की बात सुनकर उर्वशी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था उससे बर्दाश्त नहीं हुआ वह उठकर बैठ गई और गुस्से में बोली "आप मेरी तुलना उस कोठे वाली औरत से कैसे कर सकते हैं मैं आपकी पत्नी हूं आपको मेरा अपमान करने का कोई अधिकार नहीं है आप उस औरत से मेरे विषय में इतनी गन्दी बात कैसे कर सकते हैं"
" क्यों मैंने कुछ ग़लत कह दिया क्या हर औरत का शरीर एक जैसा होता है पुष्पा कोठे पर अपना जिस्म मुझे सौंपती है और तुमने मेरे घर के कमरे में मुझे तो दोनों में कोई फ़र्क नहीं दिखाई दिया तुम भी तो दौलत की खातिर इस घर में आई हो फ़र्क सिर्फ़ इतना ही है की तुम मेरे नाम का सिंदूर लगाकर सती सावित्री बनने की कोशिश कर रही हो" कैलाश ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ कहा
" आप यह क्या कह रहे हैं"? उर्वशी ने आश्चर्य से पूछा
" क्यों मैंने कुछ ग़लत कह दिया क्या तुम्हें जब मैंने आईना दिखाया तो अपना चेहरा देखकर बुरा क्यों लगा" कैलाश ने जहरीली मुस्कुराहट के साथ पूछा।
" मैं आपकी पत्नी हूं आप मेरी तुलना एक कोठे वाली से कैसे कर सकते हैं" उर्वशी ने दर्द भरी आवाज में पूछा
" अगर तुम्हें धन-दौलत एशो-आराम का लालच नहीं था तो तुम्हें इस शादी को स्वीकार नहीं करना चाहिए था पर तुम यहां मेरी पत्नी बनकर आने को तैयार हो गई। ऐसा हो ही नहीं सकता कि, मेरी मां ने तुम्हें मेरी असलियत न बताई हो मेरी असलियत जानने के बाद भी तुम इस घर में क्यों आई इसका कोई जबाव है तुम्हारे पास मैं तो तुम्हें प्यार भी नहीं करता हम दोनों बड़े होने के बाद कभी मिले भी नहीं मेरे सामने मासूम बनने की कोशिश ना करो तुम मेरी पत्नी बनकर आई हो तो मैं हर रात अपने अधिकार का प्रयोग करूंगा और अपने तरीके से करूंगा अगर मेरा साथ अच्छा नहीं लगे तो इस घर को छोड़कर चली जाना मैं रोकूंगा नहीं पर अगर इस घर में रहना है तो मेरी बात माननी पड़ेगी और एक बात कान खोलकर सुन लो अगर मां से कुछ कहा तो मैं तुम्हारा वह हाल करूंगा कि, तुम सोच नहीं सकती वैसे भी मुझे औरतों के जिस्म को पीड़ा देने में बहुत आनंद आता है। पुष्पा को मेरा यह तरीका बहुत पसंद है।आज के बाद मुझसे कोई सवाल जवाब नहीं करना वरना तुम्हारी जैसी कोई दूसरी औरत मेरी पत्नी बनकर आ जाएगी और मैं तुमसे तलाक़ ले लूंगा और वह भी तुम्हें चरित्रहीन बताकर मेरे लिए यह काम कोई मुश्किल नहीं है पूरे गांव और शहर में तुम्हें बदनाम कर दूंगा इसलिए चुपचाप इस घर में एक कोने में पड़ी रहो मेरी उपयोग का सामान बनकर जब मैं जैसे चाहूंगा तुम्हारा इस्तेमाल करूंगा और तुम्हें मेरी बात माननी पड़ेगी क्योंकि तुम्हारे जिस्म पर कानूनी , सामाजिक और धार्मिक रुप से भी मेरा अधिकार है अब मैं पुष्पा के पास जा रहा हूं रात तेरे जिस्म से खेलने आऊंगा" कैलाश ने जहरीली मुस्कुराहट के साथ कहा और अपना तौलिया उठाकर बाथरूम में चला गया।
कैलाश की बात सुनकर उर्वशी स्तब्ध रह गई फिर जब वह थोड़ा संभली तो वह फूट-फूट कर रो पड़ी आज उसे अपनी बेबसी पर रोना आ रहा था।
थोड़ी देर बाद कैलाश बाथरूम से बाहर आया और उर्वशी को रोता देखकर उसके पास आया उसका चेहरा ऊपर उठाकर बोला " तुम्हें रोना क्यों आ रहा है तुम यह तो नहीं सोच रही हो कि, मैं तुम्हें छोड़कर पुष्पा के पास क्यों जा रहा हूं तुम में क्या कमी है चलो मैं तुम्हारी यह शिकायत भी दूर कर देता हूं" इतना कहकर कैलाश ने उर्वशी को बिस्तर पर गिरा दिया और भूखे भेड़िए की तरह उसके जिस्म को नोचने लगा उर्वशी अपने बचाव में हाथ पैर मारती रही पर कैलाश की मज़बूत गिरफ्त से छूट नहीं सकी थोड़ी देर बाद कैलाश ने उठते हुए कहा " अब ठीक है अब तो तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी अब मैं अपनी पुष्पा के पास उसकी इच्छा पूरी करने जा रहा हूं वैसे तुम्हारे बदन में कशिश बहुत है इसलिए घबराओ नहीं मैं तुम्हारे पास भी आता रहूंगा तुम्हें पति का अधिकार देने तुम औरतों का यही कहना होता है मेरा अधिकार आप दूसरों को कैसे दे सकते हैं तो मैं पहले तुम्हें तुम्हारा अधिकार देकर दूसरी औरत के पास जाऊंगा"कैलाश ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ कहा और कमरे से बाहर निकल गया।
कैलाश के जाने के बाद उर्वशी बेजान लाश की तरह बिस्तर पर पड़ी रही अपने वज़ूद के टूटे हुए टुकड़े लिए उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और मालिनी ने कमरे में प्रवेश किया उर्वशी की हालत देखकर वह सब समझ गई••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
25/7/2021