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इंतज़ार की कीमत भाग 12

25 नवम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 12

  जानकी जी की आंखों से नींद गायब हो गई थी वह बिस्तर पर करवट बदलती रहीं अपनी एक भूल की सज़ा का वह भुगतान कर रहीं थीं फूलों की सेज़ पर भी उन्हें कांटों की चुभन महसूस हो रही थी किसी ने सच ही कहा है कि,सुख की नींद के लिए मखमली बिस्तर नहीं मन का सुकून चाहिए होता है वह जानकी जी के पास तो था नहीं क्योंकि उनके मन के सुकून को तो उनके बेटे ने अपने पैरों तले रौंद डाला था।

  इसी उधेड़बुन में जानकी जी को दोबारा कब नींद आ गई उन्हें पता ही नहीं चला सुबह जब उनकी नींद खुली तो सूरज सर पर चढ़ आया था।वह जल्दी से तैयार होकर नीचे डाइनिंग हॉल में आ गई श्यामा ने उनके लिए नाश्ता लगाया तभी कैलाश हाथ में चाभी का छल्ला नचाते हुए डाइनिंग हॉल में दाखिल हुआ कुर्सी पर बैठ गया उसके चेहरे पर कल की घटना को लेकर कोई भी शर्मिंदगी या अफ़सोस दिखाई नहीं दे रहा था।

  " कैलाश दस दिन बाद उर्वशी इस घर में आ रही है वह भी तुम्हारी पत्नी की हैसियत से अब तुम्हारे ऊपर जिम्मेदारी आने वाली है अब तक जो तुम कर रहे थे उन बुरी आदतों को छोड़ दो अगर तुमने फ़िर कोई ऐसी गलती करने की कोशिश की जिसके कारण मुझे शर्मिंदा होना पड़ा तो ठीक नहीं होगा। अगर तुम अब भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आए तो मुझे कठोर क़दम उठाना होगा जो मैं नहीं चाहती" जानकी जी ने गम्भीर मुद्रा में कठोर लहज़े में कहा।

   " मां बार-बार एक ही बात कहते-कहते आप को बोरियत महसूस नहीं होती क्या"?? कैलाश ने व्यंग से मुस्कुराते हुए पूछा।

  " तुम क्या कहना चाहते हो"? जानकी ने गुस्से में पूछा

  " मां मैं अपने आपको बदल नहीं सकता जब मैं बदल सकता था तब तो आपने कभी रोका नहीं आपको याद है एक बार आलोक के बड़े भाई यानिकि हमारे कथाकथित बड़े भैया ने आपसे कहा था कि, उन्होंने मुझे चम्पाबाई के कोठे से उतरते देखा था तो आपने क्या कहा था कि,तुम वहां क्या कर रहे थे तुम खुद वहां जाते हो और हमारे बेटे को बदनाम करते हो तब आपने मुझे क्यों नहीं डांटा था?? क्यों नहीं सज़ा दी थी?? अब मुझे यह सब अच्छा लगता है इसलिए इसे छोड़ नहीं सकता हां इतना वादा कर सकता हूं कि,अब पुष्पा को लेकर यहां नहीं आऊंगा पर मैं पुष्पा के पास जाऊंगा नहीं यह तो हो ही नहीं सकता मुझे पुष्पा की अदाएं बहुत पसंद हैं अगर आपने ज्यादा रोक-टोक किया तो मैं अपना वादा भूल जाऊंगा और पुष्पा को हर रात यहां लाऊंगा हो सकता है उसे यहीं हमेशा के लिए रख भी लूं" कैलाश ने जहरीली मुस्कुराहट  के साथ बेशर्मी से कहा और हाल से बाहर निकल गया।

   कैलाश का जबाव सुनकर जानकी जी के चेहरे पर दर्द सिमट आया उनकी आंखों में आसूं आ गए।

   जानकी जी कैलाश की बात सुनकर दुखी हो गई कैलाश की बातें उनके कानों में गूंज रही थीं तभी उनके मोबाइल की घंटी बज उठी।

  फ़ोन उनके एनजीओ के मैनेजर का था वह उनसे मिलना चाहते थे जानकी जी ने अपने पति के सामने ही औरतों की सहायता के लिए एक एनजीओ खोला था।इधर कुछ महीनों से जानकी जी कैलाश के कारण एनजीओ पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रही थीं वहां का सारा काम मैनेजर पांडेय ही देख रहे थे।
जानकी जी ने कहा कि,वह खुद एनजीओ आ रहीं हैं वहीं जो बात है हो जाएगी इतना कहकर उन्होंने फोन बंद कर दिया।

  "श्यामा मैं आफिस जा रहीं हूं" इतना कहकर जानकी जी घर से बाहर निकल गई थोड़ी देर बाद उसकी कार सड़क पर दौड़ने लगी।

  एनजीओ पहुंचकर वह सीधे अपने केविन में गई उन्होंने मैनेजर को बुलवाया थोड़ी देर बाद मैनेजर उनके सामने बैठे हुए थे " अब बताइए पांडेय जी आप क्यों मुझसे मिलना चाहते थे कोई ख़ास बात" जानकी जी ने पूछा

  " हां मालकिन बात ख़ास और गम्भीर भी है" पांडेय जी ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।

  पांडेय जी की बात सुनकर जानकी जी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा उसका मन आशंका से भर उठा वह सोचने लगी कहीं कैलाश ने तो कुछ नहीं किया है।

  " मालकिन कैलाश बाबू कल यहां आए थे यहां की लड़कियां बागीचे में बैठी हुई आपस में बातें कर रही थी कैलाश बाबू ने कविता नाम की एक लड़की का हाथ पकड़ लिया और उसके साथ बदतमीजी करने लगे उस लड़की ने कैलाश बाबू को थप्पड़ जड़ दिया तब कैलाश बाबू उसका हाथ पकड़कर घसीटते हुए आपके रिटायरिंग रूम में लेकर जाने लग और उसके साथ बदतमीजी भी कर रहें थे। बहुत मुश्किल से उन्हें काबू में किया था।  इस घटना के बाद लड़कियां बहुत डर गई हैं उनका कहना है कि,वह यहां नहीं रहेगी यहां वह सुरक्षित नहीं हैं। मैडम अगर एक भी लड़की यहां से चली गई तो आपकी वर्षों की साधना व्यर्थ सो जाएगी आप कैलाश बाबू को समझाइए" पांडेय जी ने गम्भीर लहज़े में जानकी जी को सभी बातें विस्तार से बताई।

  पांडेय जी की बात सुनकर जानकी जी स्तब्ध रह गई जिसके लिए वह डर रहीं थीं वही हुआ उन्हें कैलाश से ऐसी हरक़त की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी पांडेय जी की बात सुनकर उनका चेहरा कठोर हो गया।

   " पांडेय जी मैं लड़कियों से मिलना चाहती हूं" इतना कहकर जानकी जी रिवाल्वरिंग कुर्सी से उठकर खड़ी हो गई और कमरे के बाहर निकल गई मैनेजर साहब भी उनके पीछे-पीछे चल पड़े थोड़ी दूर चलने के बाद जानकी जी एक बड़े से हाल के सामने खड़ी हुई थी यह वही स्थान था जहां सभी लड़कियां रहतीं थीं••••

क्रमशः

  डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
19/7/2021




  
 


Jyoti

Jyoti

👍

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत शानदार अंक 👌👌👌

26 दिसम्बर 2021

24
रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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