इंतज़ार की कीमत भाग 7
जानकी जी थके कदमों से कमरे से बाहर आई उनके चेहरे पर मायूसी और बेबसी साफ़ दिखाई दे रही थी उन्होंने एक लम्बी सांस ली और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी हाल में आकर वह सोफे पर बैठ गई श्यामा उनके लिए पानी लेकर आई। पानी का गिलास लेकर जानकी ने पानी पिया फिर सोफे से सिर टिकाकर आंख बंद कर लिया।
" मालकिन !! आप क्या सोच रहीं हैं" श्यामा ने धीरे से पूछा
"क्या सोचूंगी श्यामा मेरे बेटे ने मुझे सोचने लायक रखा कहां है मैं तो उर्वशी के विषय में सोच-सोचकर परेशान हूं कि,वह बच्ची इस राक्षस के साथ कैसे रहेंगी मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर उसका कहना है कि,समाज के अनगिनत भेड़ियों का सामना करने से अच्छा है कि,वह एक दरिंदे का सामना करें शाय़द उसकी अच्छाई मेरे बेटे को भी बदल दे पर ऐसा होगा मुझे लगता नहीं है। क्योंकि मेरा पाप आज मुझे ही मुंह चिढ़ा रहा है मेरे अहंकार ने मुझे आज यह दिन दिखाया है अपने पापो की सज़ा तो हर व्यक्ति को भोगनी ही पड़ती है श्यामा वही मेरे साथ हो रहा है मेरे अहम के कारण इस खानदान की मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है मेरे एक गलत फैसले ने यह क्या कर डाला मैं अपने पूर्वजों और ईश्वर को क्या मुंह दिखाऊंगी यह मैंने क्या कर डाला " जानकी जी की आवाज़ दर्द में डूबी हुई थी उनकी आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी।
श्यामा अपने मालकिन को आश्चर्यचकित होकर देखे जा रही थी उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि,वह कह क्या रहीं हैं वह किस पाप की बात कर रही हैं वह तो कभी किसी का बुरा करती ही नहीं हैं वह तो सभी की मदद करने को तैयार रहती हैं। मालकिन और पाप यह हो ही नहीं सकता वह छोटे मालिक की आज की हरकत के लिए स्वयं को दोषी मानकर ऐसा बोल रही हैं श्यामा मन-ही-मन सोच रही थी।
" मालकिन आप स्वयं को दोष क्यों दे रही हैं छोटे मालिक की संगत ही गलत पड़ गई इसलिए वह ऐसी हरकतें कर रहें आप देखिएगा बहू के आने के बाद वह सुधर जाएंगे " श्यामा ने आश्वासन देते हुए कहा।
" नहीं श्यामा तू कुछ नहीं जानती कुछ नहीं समझ रही तू ही क्या कोई कुछ नहीं जानता मेरे सिवाय !! मेरी ही गलती का खामियाजा मेरा खानदान आज बदनाम होकर भुगत रहा है जिस खानदान की लोग मिसाल देते थे उस पर आज लोग उंगलियां उठा रहे हैं मेरी एक भूल के कारण" जानकी ने धीरे से कहा उनकी आवाज़ में कोई शक्ति नहीं थी फिर अचानक वह फूट-फूट कर रोने लगी••••
श्यामा उन्हें भौचक्की होकर देख रही थी घर के बाकी नौकर वहां आकर खड़े हो गए उनके चेहरे पर भी आश्चर्य के भाव दिखाई दे रहे थे क्योंकि आज तक उन्होंने जानकी जी का रौब और गर्व देखा था लेकिन आज वह एक हारे हुए जुआरी की तरह असहाय लग रही थी उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उनका सबकुछ किसी ने छिनकर उन्हें भिखारी बना दिया हो•••••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
17/7/2021