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इंतज़ार की कीमत भाग 22

3 दिसम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 22

  " भाभी आप इस विषय पर अभी घर में किसी से चर्चा न कीजिएगा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि, उर्वशी जी बेवज़ा बदनाम हो क्योंकि यह मैं भी जानता हूं कि, मेरे प्यार को मंजिल नहीं मिलेगी"
आलोक ने गम्भीर लहज़े में कहा,

" ठीक है आलोक भैया मैं अभी किसी से कुछ नहीं कहूंगी लेकिन मैं भी दिल से यही चाहती हूं आलोक भैया  परिस्थितियां कुछ ऐसा रंग दिखाएं कि, आपका प्यार आपको मिल जाए कैलाश जानवर है वह उस मासूम कली को नोचकर खा जाएगा उर्वशी कितना भी बचने की कोशिश करे पर बच नहीं सकती क्योंकि कैलाश उसका पति है उर्वशी के पास बचने का एक ही रास्ता है पुलिस से मदद जो उर्वशी लेगी नहीं " मालिनी ने गम्भीरता से कहा दोनों घर के अन्दर आ गए मालिनी को देखकर घर वाले मालिनी से जानकी, उर्वशी और कैलाश के विषय में पूछने लगे। मालिनी ने वहां जो भी देखा था सब अपनी सास को बता दिया मालिनी की बात सुनकर उसकी की सास ने लम्बी सांस लेकर उदास लहज़े में कहा
" जानकी का कैलाश पर अतिविशवास कैलाश की बरबादी का कारण बना जिसने पूरे घर की खुशियां तबाह कर दी अब कैलाश की दरिंदगी का शिकार उर्वशी को होना पड़ेगा ईश्वर कैलाश को सद्बुद्धि दे" मालिनी की सास ने कहा और वहां से उठकर अपने कमरे में चली गई।
 
   मालिनी और आलोक भी अपने कमरे की ओर चले गए आलोक अपने कमरे में पहुंचकर उर्वशी के ख्यालों में खो गया उसकी आंखों के सामने उर्वशी का उदास सौंदर्य घूम रहा था उर्वशी की बड़ी बड़ी हिरणी जैसी आंखों का सूनापन आलोक के दिल को कचोट रहा था।आलोक यह अच्छी तरह से जानता था कि, किसी शादी-शुदा औरत के विषय में सोचना यह उसे प्यार करना ठीक नहीं है पर आलोक अपने दिल के हाथों मजबूर हो गया था। उसके मन में उर्वशी को पाने की लालसा नहीं थी वह तो उर्वशी के चेहरे पर झूंठी मुस्कान के स्थान पर सच्ची हंसी देखना चाहता था।

  क्या किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना पाप है अगर यह पाप है तो यह पाप आलोक करना चाहता था। आलोक के मन-मस्तिष्क में सही-गलत का अंतर्द्वंद चल रहा था तभी उसका मोबाइल बज उठा उसने देखा तो फ़ोन जानकी जी का था आलोक ने जल्दी से फोन उठाया और कहा " हेलो चाचीजी क्या बात है सब ठीक तो है ना"??

  " हां आलोक बेटा मैं तुम्हें बताना भूल गई थी मुझे उर्वशी को लेकर कुलदेवी के मंदिर जाना है अगर हो सके तो तुम आ जाओ वहां पहाड़ी पर अकेले शाम को बहू को लेकर जाना ठीक नहीं है अगर कोई काम है तो हम लोग सुबह मंदिर चलेंगे हमारे साथ तो कैलाश को जाना चाहिए था पर उसने मनाकर दिया ज्यादा जोर दूंगी तो वह मंदिर में पूजा के समय पंडितजी का अपमान करने लेगा जो मैं नहीं चाहती" जानकी जी ने परेशान होकर कहा।

  " चाचीजी मैं अभी आ रहा हूं जो काम करना है वह जितना जल्दी हो कर लेना चाहिए क्या बड़ी भाभी को भी लेकर आऊं" आलोक ने उतावलेपन से पूछा वह मन ही मन खुश था कि, उसे कुछ समय उर्वशी के साथ बिताने को मिलेगा।

  " नहीं मालिनी को परेशान न करो वह रात भर यहां थी थक गई होगी तुम अकेले ही आ जाओ" जानकी जी ने बहुत प्यार से कहा

  मोबाइल बंद कर आलोक जल्दी से तैयार होने लगा आज उसने अपनी सफ़ेद पैंट और गोल्डन पीली शर्ट पहनी यह ड्रेस उस पर बहुत अच्छी लगती थी आलोक ने शीशे में खुद को देखा तो स्वयं अपनी स्मार्टनेस की तारीफ करने लगा फिर गुनगुनाते हुए अपने कमरे से बाहर निकला सामने ही  मधु भाभी मिल गई। आलोक को देखकर हंसते हुए बोली " देवर जी कहां जा रहे हैं आज तो आप बहुत अच्छे लग रहे हैं क्या किसी के साथ डेट पर जा रहें हैं अगर ऐसी कोई बात है तो हमें भी बता दीजिए हम भी अपनी होने वाली देवरानी से मिल लें"

  अपनी भाभी की बात सुनकर आलोक हड़बड़ा गया और जल्दी से बोला " नहीं भाभी आप कैसी बात कर रहीं हैं मैं तो जानकी चाचीजी के घर जा रहा हूं उन्होंने मुझे बुलाया है मंदिर जाना है"

  " क्या आलोक भैया मेरी खुशी पर तो आपने पानी फेर दिया मैं तो सोच रही थी कि आप मेरी देवरानी से मिलने जा रहें हैं और यहां पता चल रहा है कि,आप मंदिर में भजन करने जा रहे हैं" मधु ने मायूसी से कहा।

  " मधु कभी कभी मंदिर में भी प्रेमिका मिल जाती है वैसे किसी ने सच ही कहा है कि, इश्क़ और मुश्क छिपाए नहीं छिपते इसलिए प्रेम करने वालों को बहुत सभलं कर चलना पड़ता है क्यों मैं ठीक कह रही हूं न आलोक भैया"? तभी पीछे से मालिनी ने आते हुए कहा उनके चेहरे पर एक रहस्यमई मुस्कान फैलीं हुई थी।

  मालिनी को देखकर आलोक  मुस्कुराते हुए अपना सिर खुजलाते हुए घर के बाहर निकल गया।

  " दीदी अब मां जी को आलोक भैया की शादी कर देना चाहिए मुझे तो लगता है कि, उन्हें किसी से प्यार हो गया है क्योंकि आज से पहले मैंने कभी उन्हें गुनगुनाते हुए नहीं देखा था" मधु ने अपनी जेठानी मालिनी से हंसते हुए कहा।

   " तुम क्यों परेशान हो रही हो अगर कोई लड़की होगी तो उसका पता जल्दी ही चल जाएगा' मालिनी ने मुस्कुराते हुए लापरवाही से कहा और वहां से चली गई।

  " ठीक तो है जब सबको पता चलेगा तो मुझे भी मालूम चल ही जाएगा मैं क्यों परेशान हो रहीं हूं अरे मुझे तो इनके लिए चाय बनाने जाना था" मधु स्वयं से बड़बड़ाते हुए रसोई की तरफ चली गई।

  आलोक अपनी कार लेकर जानकी जी के घर पहुंच गया जैसे आलोक हाल में दाखिल हुआ तो वहां कैलाश को देखकर उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। आलोक को देखते ही कैलाश ने व्यंग से मुस्कुराते हुए पूछा " कहिए मां के आज्ञाकारी बेटे यहां कैसे आना हुआ आपका"

  " मैंने बुलाया है मुझे उर्वशी को कुलदेवी के मंदिर लेकर जाना है तुम्हारे पास तो इन फ़ालतू बातों का समय   नहीं है तो मैंने आलोक को बुलाया जिसके साथ हम मंदिर जा सकें" जानकी जी ने हाल में आते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।

  " मुझे आपके ढकोसलों में कोई दिलचस्पी नहीं है आप जाइए मंदिर वहां कोई भगवान नहीं रहते यह आप लोगों का अंधविश्वास है अगर मंदिरों में भगवान रहते हैं तो वहां लोगों की मौतें क्यों होती हैं बैष्णोदेवी जाते समय गाड़ियां क्यों खांई में गिर जाती हैं मैं नहीं मानता इन बेकार की बातों को" कैलाश ने लापरवाही से जबाव दिया।

  " तू ठहरा नास्तिक तूझे कहां समझ आएगी ईश्वर की शक्ति और भक्ति तेरा मंदिर तो पुष्पा का कोठा है और शराब तेरे लिए प्रसाद है। मुझे तो अब तुम्हें अपना बेटा कहते हुए भी शर्म आती है मेरे कोई भी संस्कार तेरे अंदर नहीं हैं जब तू ईश्वर की आस्था पर उंगली उठाने लगा है अब तेरा तो ईश्वर ही मालिक है" तभी वहां उर्वशी भी आ गई उर्वशी को देखकर जानकी जी ने कहा "चलो बहू वरना मेरा दिमाग ख़राब हो जाएगा" जानकी जी ने गुस्से में कैलाश को देखते हुए कहा।

  उर्वशी को अपने सामने देखकर कैलाश उसकी सुन्दरता को देखता रह गया आलोक भी उर्वशी को देखने लगा उर्वशी बला की खूबसूरत लग रही थी उसने पीले रंग की शिफाॅन की साड़ी पहनी हुई थी उसका अंग-अंग सांचे में ढला हुआ था वह इस समय सौंदर्य की देवी लग रही थी।

  उर्वशी ने एक नज़र कैलाश पर डाली और जानकी जी के पीछे चल पड़ी आलोक भी उसके साथ बाहर निकल आया कैलाश उर्वशी को आलोक के साथ देखकर ईर्ष्या से जल उठा उसके मन में एक बार विचार कौंधा कि,वह भी मंदिर चला जाए।पर तभी उसका मोबाइल बजा उसने देखा फोन पुष्पा का था वह कह रही थी कि वह कोठे पर उसका इंतज़ार कर रही है। कैलाश पुष्पा की बात सुनकर सब कुछ भूल गया और अपनी कार में बैठकर पुष्पा के कोठे की ओर निकल गया।

  उधर जानकी जी आलोक और उर्वशी को लेकर मंदिर पहुंची पुजारी जी उन्हें देखकर आगे आए। जानकी जी ने उनका पैर छूकर कहा "पुजारी जी यह मेरी बहू है इसे आशीर्वाद दीजिए इसका जीवन खुशहाल रहे"

पुजारी जी उर्वशी के साथ आलोक को देखकर बोले " ईश्वर इन दोनों की जोड़ी बनाए रखे मैं आशीर्वाद देता हूं जानकी बहू इन दोनों की जोड़ी बिल्कुल सीता राम के जैसी है"

  पुजारी की बात सुनकर जानकी जी ने चौंककर कहा "पुजारी जी यह मेरा बेटा•••"

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
27/7/2021


Jyoti

Jyoti

👍

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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