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इंतज़ार की कीमत भाग 18

29 नवम्बर 2021

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इंतज़ार कीमत भाग 18

   " उर्वशी उठो तुम्हें तैयार होना है रिसेप्शन में जाने का समय हो रहा है जल्दी से तैयार हो जाओ पार्टी में शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित लोग आएंगे सभी को तुमसे मिलवाना है आज की पार्टी तुम्हारे लिए रखी गई है तुम्हें विशेष लगना चाहिए। इसलिए मैंने तुम्हें तैयार करवाने के लिए पार्लर वाली को बुलाया है वह तुम्हें तैयार करेगी" मालिनी ने मुस्कुराते हुए उर्वशी से कहा।

  " दीदी इसकी क्या जरूरत है मैं खुद ही तैयार हो जाऊंगी" उर्वशी ने घबराकर कहा

  " यह चाचीजी का आदेश है यह तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा तुम दुल्हन हो तुम्हें तो ख़ास लगना ही चाहिए" मालिनी ने हंसते हुए कहा तभी पार्लर वाली लड़की कमरे में दाखिल हुई।

   " मोना अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि, तुम मेरी देवरानी को महारानियों की तरह सजा दो जो इन्हें देखे देखता रह जाए" मालिनी ने मोना से हंसते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गई

  मोना उर्वशी को तैयार करने लगी कुछ समय बाद मालिनी, मधु और जानकी ने कमरे में प्रवेश किया तब तक मोना ने उर्वशी को दुल्हन की तरह सजा दिया था। उर्वशी के सौन्दर्य को देखकर जानकी स्तब्ध रह गई उर्वशी स्वर्ग से उतरी अप्सरा की तरह सुन्दर लग रही थी उसकी मासूमियत उसके सौंदर्य में चार चांद लगा रही थी।

लाल रंग की सुर्ख कांजीवरम की साड़ी मांथे पर लाल रंग की बिंदी होंठों पर सुर्ख लाल रंग की लिपस्टिक गले में रानी हार हाथों में कांच की चूड़ियां और सोने के कंगन कानों में झूमकें उर्वशी के खूबसूरती को और भी बढ़ा रहे थे।

  जानकी जी ने आगे बढ़कर यह कहते हुए बलाएं उतारी कहीं किसी की नज़र न लग जाए जानकी जी और मालिनी के साथ उर्वशी बाहर गार्डन की ओर चल पड़ी जहां पार्टी की व्यवस्था की गई थी।
उर्वशी के वहां पहुंचते ही सभी की निगाहें उर्वशी की ओर उठ गई वह लोग उर्वशी के सौन्दर्य को देखते रह गए वहां पार्टी में आई कुछ औरतें उर्वशी की सुन्दरता को देखकर ईर्ष्या से जल उठी कुछ कहने लगी इस सौंदर्य को जीवन भर के लिए आंसूओं की सौगात मिल गई है।

  तभी वहां कैलाश भी आ गया और उर्वशी के सौन्दर्य को देखता रह गया लेकिन थोड़ी देर बाद ही उसकी आंखों में वासना के डोरे दिखाई देने लगे जिसे जानकी और मालिनी ने देख लिया।
कैलाश की आंखों को देखकर जानकी जी आने वाली स्थिति को देखकर कांप गई।

  तभी कैलाश के एक दोस्त ने कहा " कैलाश भाभी की सुन्दरता तो अप्सराओं को भी शर्मिंदा कर रही है बहुत खुशनसीब हो भाई जो ऐसी सुन्दरता और पवित्र सौंदर्य तुम्हें पत्नी के रूप में मिली है अब तुम्हें पुष्पा के कोठे पर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्यों मैं ठीक कह रहा हूं ना"

  " तुम जानते हो विनीत कि, मुझे एक ही चीज अधिक दिनों तक इस्तेमाल करना पसंद नहीं है" कैलाश ने लापरवाही से हंसते हुए जवाब दिया।

  " वह तुम्हारी पत्नी है कैलाश कोई चीज़ नहीं"विनीत ने आश्चर्यचकित होकर कहा।

   " हां तो क्या हुआ क्या एक तरह का खाना तुम रोज खा सकते हो मैं तो नहीं खा सकता तो एक ही औरत के साथ पूरा जीवन कैसे गुजार दूंगा" कैलाश ने जहरीली मुस्कुराहट के साथ जबाव दिया।

  " विनीत तुम क्यों कैलाश भाई का दिमाग़ ख़राब करने की कोशिश कर रहे हो यहां से जाओ पार्टी का आनंद उठाओ" कैलाश के एक दूसरे दोस्त मोंटी ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा।

   " विनीत को यहां से जाने की जरूरत नहीं है यहां से तुम जैसे शराबियों को जाना चाहिए जिसने अपने स्वार्थ के लिए कैलाश का दिमाग़ और ज्यादा ख़राब कर दिया है" तभी जानकी जी ने वहां आते हुए गुस्से में मोंटी से कहा।

अपने सामने जानकी को देखकर मोंटी सकपका गया और इधर-उधर बगले झांकने लगा कैलाश भी अपनी मां को देखकर थोड़ा घबरा गया।

   " नहीं आंटी जी मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था मेरे कहने का मतलब ग़लत नहीं था" मोंटी ने हकलाते हुए कहा।

   " मैं अच्छी तरह से तुम जैसे लड़कों का मतलब समझती हूं तुम लोग जाओ यहां से अब तुम कैलाश के आसपास दिखाई नहीं देना वरना नौकरों से उठवाकर गेट के बाहर फिकवा दूंगी, विनीत तुम कैलाश को लेकर उर्वशी के पास जाओ" इतना कहने के बाद जानकी जी मोंटी को आग्नेय दृष्टि से देखती हुई चली गई।

   " कैलाश चलो यहां से नहीं तो तुम आंटी जी को जानते हो अगर तुम मोंटी के पास रहें तो आंटी ने जो कहा है वह वैसा ही करेंगी" विनीत ने मोंटी को घूरते हुए कहा और कैलाश का हाथ पकड़कर अपने साथ ले गया।

   मोंटी भी चुपचाप वहां से चला गया और पार्टी का आनंद लेने लगा वह जानता था कि,अब अगर वह कैलाश के पास गया तो उसकी इज्ज़त मिट्टी में मिल आएगी और दूसरे  उसे मुफ्त की शराब पीने के लिए कैसे मिलेगी।

  पार्टी में आलोक भी अपने परिवार के साथ आया हुआ था और जानकी जी के साथ-साथ मेहमानों की आवभगत में लगा हुआ था।
पार्टी अपने शबाब पर थी वहां आए हुए सभी मेहमान पार्टी का आनंद उठा रहे थे सभी के चेहरों पर खुशी दिखाई दे रही थी पर कुछ चेहरे ऐसे भी थे जिनके चेहरे मुरझाए हुए थे उर्वशी और जानकी जी के चेहरे पर कोई भी खुशी दिखाई नहीं दे रही थी वह दोनों एक बनावटी मुस्कान अपने चेहरे पर लिए घूम रहीं थीं।

   रात 12 बजे तक पार्टी चलती रही उसके बाद सभी मेहमान धीरे-धीरे जाने लगे जानकी जी ने मालिनी से कहा कि,वह उर्वशी को ऊपर उसके कमरे में पहुंचा दे।
मालिनी उर्वशी को लेकर कमरे में पहुंची कमरा ग़ुलाब, बेला, चम्पा के फूलों से महक रहा था पूरे कमरे को फूलों से सजाया गया था कमरे की सजावट देखकर उर्वशी का दिल नहीं धड़का बल्कि उसके चेहरे पर डर दिखाई देने लगा क्योंकि पार्टी में उर्वशी ने कैलाश की आंखों में वासना की चमक देख ली थी।

मालिनी उर्वशी को कमरे में छोड़कर बाहर निकल गई उर्वशी डरी सहमी सी बिस्तर पर बैठी रही थोड़ी देर बाद कैलाश ने लड़खड़ाते कदमों से कमरे में प्रवेश किया वह सीधे उर्वशी के पास आकर खड़ा हो गया और लड़खड़ाती आवाज में बोला,
" तुम देहातियों की तरह घुंघट निकाल कर क्यों बैठी हो?? इतना कहकर कैलाश ने झटके से उर्वशी का घुंघट उल्ट दिया उर्वशी को देखते ही कैलाश के चेहरे पर वासना की चमक दिखाई देने लगी उसने उर्वशी को बिस्तर पर गिरा दिया और उसके शरीर से एक एक कर उसके कपड़े उतारने रहा उर्वशी ने विरोध करने की कोशिश की पर कैलाश ने बहुत ही बेहरमी से उसके मुंह को दबा दिया। उर्वशी कैलाश की गिरफ्त से निकलने के लिए हाथ पैर मारने लगी। लेकिन कैलाश की पकड़ चीते  के जैसी मजबूत थी उसने उर्वशी को अपने मजबूत हाथों में बांध रखा था।
उर्वशी बहुत देर तक अपने आपको कैलाश की पकड़ से आज़ाद करने की कोशिश करती रही अंदर में उसे हार माननी पड़ी उसके हाथ-पैर शिथिल पड़ गए और कैलाश ने उसके शरीर के साथ साथ उसकी आत्मा को भी रौंद डाला उर्वशी के आंखों से बेबसी के आंसू बहते रहे और उसका पति उसके शरीर का बलात्कार करता रहा थोड़ी देर बाद कैलाश ने जब अपने शरीर की प्यास बुझा ली तो किसी वस्तु की तरह उर्वशी को अपने से दूर धकेल दिया।
उर्वशी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था उसकी चूड़ियां उसकी कलाई में धंस गई थी उसके होंठों से भी ख़ून निकल रहा था उर्वशी का मन चिल्ला चिल्लाकर रोने को हो रहा था पर  उसके गले से आवाज नहीं निकल रही थी वह रोकर किसे अपना दर्द सुनाती क्योंकि इस दर्द को स्वयं उसने ही तो मोल लिया था तो इस दर्द की पीड़ा उसे ही सहनी थी आज उर्वशी का शरीर ही नहीं उसकी आत्मा भी लहूलुहान होकर कराह रही थी।
उर्वशी की आंखों से आंसूओं की बरसात हो रही थी रोते रोते वह निढाल हो गई।उसके बगल में लेटा हुआ पति नाम का दरिंदा अपनी हवस मिटाने के बाद गहरी नींद में सो रहा था उर्वशी रोते रोते कब नींद की आगोश में समा गई उसे पता ही नहीं चला•••••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
24/7/2021

 


Jyoti

Jyoti

👌

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर अंक 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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इंतज़ार की कीमत भाग 24 अंतिम भाग

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