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इंतज़ार की कीमत भाग 6

24 नवम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 6

   " उर्वशी बिटिया क्या हुआ तू रो क्यों रही है तू चिल्लाई क्यों थी मुझे बता बिटिया क्या हुआ मेरा दिल बैठा जा रहा है" पार्वती जी उर्वशी के बालों में हाथ फेरते हुए बोली उनकी आवाज में घबराहट साफ़ दिखाई दे रही थी।

थोड़ी देर बाद जब उर्वशी संयमित हुई तो वह धीरे से अपनी मां से अलग हुई बोली कुछ नहीं। पार्वती जी ने उसका हाथ पकड़कर बिस्तर पर बैठाया और पानी पीने को दिया फिर बहुत प्यार से पूछने लगी।

  " कुछ नहीं मां सब ऐसे ही" उर्वशी ने हंसने की कोशिश करते हुए कहा।

" बिटिया मैं तेरी मां हूं मैंने तुम्हें जन्म दिया है मैं तेरे चेहरे के भाव पढ़कर बता सकतीं हूं कि, तेरे मन में क्या चल रहा है।तू कैलाश को लेकर परेशान है न तू यही सोच रही है कि तूने सही किया या गलत यही बात है न उर्वशी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है अगर तुम चाहो तो जानकी जी को मनाकर दो मैं जानती हूं कैलाश अच्छा लड़का नहीं है कोई भी लड़की ऐसे लड़के को अपना पति बनाना पसंद नहीं करेगी पर मैं भी क्या करूं अगर तेरा गौना नहीं गया तो मैं कब तक तुम्हें बाहर घूमते इंसानी भेड़ियों से  बचा पाऊंगी इसलिए मैं तुमसे कह रहीं हूं कि, तुम इस शादी को स्वीकार कर लो तेरे दिल के दर्द को समझाती हूं बिटिया पर मैं मज़बूर हूं आज तेरे पिताजी जिंदा होते तो मैं कभी भी नहीं कहती कि,तू कैलाश को अपना पति स्वीकार कर" पार्वती जी ने रोते हुए कहा उनकी आवाज़ में दर्द ही दर्द था।

  " मैं सब समझती हूं मां बिना पुरुष के एक अकेली लड़की का जीना कितना मुश्किल होता है कल मेरे साथ क्या हुआ मैंने आपको नहीं बताया उसी घटना के कारण मैं भी अपनी ससुराल जाना चाहतीं हूं" उर्वशी ने गम्भीर लहज़े में कहा

  " कल ऐसा क्या हुआ था"? पार्वती जी ने आश्चर्य से पूछा

  " मां कल मैं जब नंदनी के घर से लौट रही थी तो रास्ते में मुझे वह आवारा गिरधारी मिला उसने मेरा रास्ता रोका और अश्लील बातें करने लगा। मैंने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से जाने लगी तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया मैं अपना हाथ छुड़ाने लगी तभी उसकी पत्नी वहां आ गई अपनी पत्नी को देखकर वह नाटक करने लगा उसने अपनी पत्नी से कहा कि, मैंने उसका रास्ता रोका और उससे प्यार मोहब्बत की बात करने लगी। मैंने उसकी पत्नी से कहा कि, यह झूठ बोल रहा है पर गिरधारी की पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया वह मुझे ही अपशब्द कहने लगी और बोली अपने रूप का जादू मेरे पति पर चलाने की जरूरत नहीं है। आज के बाद अगर मेरे पति के साथ दिखाई दी तो ठीक नहीं होगा मां उसने मुझे बहुत अपमानित किया मैं उन शब्दों को आपसे कह नहीं सकती उसने मुझसे कहा कि मैं कोठे पर जाकर बैठ जाऊं। अगर मैं यहां रही और मेरा गौना नहीं गया तो ऐसा अपमान मुझे बार-बार सहना पड़ेगा इसलिए मैंने जानकी मां से कहा की मैं आपके घर बहू बनकर आने को तैयार हूं" उर्वशी ने दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ अपनी मां को अपने दिल का ज़ख्म दिखाया।

  उर्वशी की बात सुनकर पार्वती जी की आंखों से बेबसी के आंसू बहने लगे दोनों मां बेटी एक दूसरे से लिपटकर बहुत देर तक रोती रही।उनके दर्द भरे आंसूओं को देखकर आसमान भी रो पड़ा क्योंकि उसी समय बहुत तेज बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई शाय़द आकाश को भी उर्वशी की दास्तां ने द्रवित कर दिया था।

उधर जानकी जी की कार सड़क पर दौड़ रही थी उनके मन में तूफ़ान उठा था बारिश भी बहुत तेज हो रही थी।वह मन ही मन सोच रहीं थीं कि, " क्या मैंने उर्वशी की बात मानकर सही किया क्या उम्मीद के सहारे किसी का जीवन दांव पर लगाना ठीक है मुझे उर्वशी की बात नहीं माननी चाहिए थी। क्योंकि कैलाश के बारे में उर्वशी को कुछ पता नहीं है पर मैं तो उसे जानती हूं कि,वह जिस राह पर चल रहा है उस पर अंगारे बिछे हुए हैं कैलाश तो उन अंगारों पर चल लेगा पर उर्वशी के पैर जल जाएंगे मैं यह भी जानती हूं कि कैलाश उस राह पर इतना आगे निकल गया है जहां से उसका लौटना नामुमकिन तो नहीं पर मुश्किल जरूर है। क्या उर्वशी नामुमकिन को मुमकिन कर लेगी यह इस काम को करते हुए स्वयं को ही लहूलुहान कर लेगी" जानकी जी के मन-मस्तिष्क में द्वंद्व चल रहा था तभी कार झटके से रूक गई जानकी जी की तंद्रा भंग हुई उन्होंने चौंककर देखा तो उनकी गाड़ी उनके बंगले के कम्पाऊण्ड में खड़ी थी।

  नौकर ने दौड़कर कार का दरवाजा खोला जानकी जी कार से उतरकर बंगले के अंदर चल पड़ी अंदर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि, सभी नौकरो के चेहरों पर घबराहट दिखाई दे रही है। जानकी जी ने इस बात को महसूस किया तुरंत उनके चेहरे पर कठोरता दिखाई देने लगी ।

  " कैलाश कहां है श्यामा"? जानकी ने  घर की नौकरानी से पूछा

" मालकिन वह••• " श्यामा ने हकलाते हुए कहा

  " बताओ कैलाश कहां है क्या वह अभी घर नहीं लौटा"? जानकी जी ने कठोर शब्दों में पूछा।

  श्यामा कुछ बताती उससे पहले ऊपर कैलाश के कमरे से घुंघरुओं की आवाज सुनाई दी घुंघरू की आवाज सुनकर जानकी जी की आंखों में आश्चर्य के भाव दिखाई दिए फिर अचानक उसकी आंखों से क्रोध की ज्वाला निकलने लगी।

  " कैलाश के साथ कमरे में कौन है श्यामा"?? जानकी जी ने गुस्से में पूछा

  " मालकिन कोई कोठे वाली लगती है जब उन्हें पता चला कि,आप शाम तक आएगी तो उन्होंने उस लड़की को यहां बुला लिया उनके दो दोस्त भी ऊपर कमरे में उनके साथ हैं" श्यामा ने डरते हुए बताया

  श्यामा की बात सुनकर जानकी गुस्से में भरी हुई ऊपर की सीढ़ियां चढ़ने लगी ऊपर पहुंचकर उन्होंने कैलाश के कमरे का दरवाज़ा अपने पैरों से ठोकर मारकर खोल दिया और कमरे के अन्दर दाखिल हो गई।

  अचानक कमरे में अपनी मां को आया देखकर पहले तो कैलाश डर गया पर तुरंत उसके चेहरे पर बेशर्मी की मुस्कान दौड़ गई " मां आप इतनी जल्दी कैसे लौट आईं श्यामा ने तो बताया था कि आप रात तक वापस आएगी" कैलाश ने लड़खड़ाती हुई आवाज में पूछा वह शराब के नशे में धूत्त था।

  कैलाश के दोनों दोस्त और वह कोठे वाली लड़की जानकी जी को देखकर सहम गए थे जानकी जी ने घूरकर उन्हें देखा फिर लड़की की तरफ़ मुखातिब होकर गुस्से में पूछा " अब तुम लोग अपना कोठा छोड़कर कोठी में आने लगी"

  " मां पुष्पा को कुछ न कहो इसे मैं लेकर आया हूं यह मेरा भी घर है मैं जिसे चाहूं लेकर आऊं" कैलाश ने बेशर्मी से हंसते हुए जवाब दिया।

  " तुम लोग तुरंत निकलो मेरे घर से वरना मैं नौकरो से उठवा कर बाहर फिकवा दूंगी तुम लोगों ने मेरे घर को कोठा बना दिया है आज के बाद अगर तुम लोग इस घर में आए तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा कैलाश तुम भी कान खोलकर सुन लो आज के बाद अगर तुमने ऐसी हरकत की तो मैं तुम्हें भी इस घर से बाहर निकाल दूंगी आज तुमने अपनी सारी मर्यादाएं तोड़ दीं हैं तुम एक नाचने वाली को मेरे घर में लेकर आ गए" जानकी जी ने शेरनी की तरह दहाड़ते हुए कहा

  जानकी जी का रौद्र रूप देखकर कैलाश के दोनों दोस्त और वह पुष्पा नाम की लड़की तुरंत कमरे से बाहर निकल गए। उनको बाहर जाते हुए देखकर कैलाश कहने लगा " अरे तुम लोग क्यों जा रहे हो यह घर मेरे नाम है यहां से मुझे कोई बाहर नहीं निकाल सकता" लड़खड़ाती आवाज में कैलाश ने कहा और उठकर दरवाजे की ओर बढ़ा लेकिन वह आगे नहीं बढ़ सका वहीं लड़खड़ा कर गिरकर बेसुध हो गया।

  कैलाश को ऐसी हालत में देखकर जानकी जी के चेहरे पर बेबसी और आंखों में आंसू दिखाई दे रहे थे। उन्होंने धीरे से अपने आंसू पोंछे और कमरे से बाहर निकल आई•••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
16/7/2021


Jyoti

Jyoti

क्या बात

29 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

24
रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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