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इंतज़ार की कीमत भाग 23

4 दिसम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 23

   " पुजारी जी यह मेरा बेटा नहीं बेटे जैसा ही है मेरा बेटा साथ आया नहीं है" जानकी जी ने जल्दी से पुजारी जी की गलतफ़हमी दूर की

  " पर मुझे इन दोनों को देखकर पति-पत्नी का आभास क्यों हुआ यह मुझे समझ नहीं आ रहा है जानकी बहू जबकि मैं तुम्हारे बेटे कैलाश को पहचानता भी हूं मेरे मुख से इन दोनों के लिए ऐसा आशीर्वाद क्यों निकला यह तो देवी मां ही जाने मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि,इस बच्ची के जीवन में खुशियों की बरसात हो आगे मां की इच्छा" पुजारी जी ने कहा और उर्वशी को पास बुलाकर उससे पूजा करवाने लगे।

  पुजारी जी की बातें सुनकर उर्वशी का मन विचलित हो उठा था जानकी जी भी अनमनी सी हो गई थी पर आलोक के चेहरे पर खुशी की चमक साफ़ दिखाई दे रही थी उसने देवी मां को मन-ही-मन प्रणाम किया और प्रार्थना करने लगा कि, उसका प्रेम उसे मिल जाए तभी आलोक की नज़र देवी मां की मूर्ति पर गई आलोक को लगा जैसे देवी मां उसे आशीर्वाद देते हुए कह रहीं हो तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी पर इसके लिए तुम्हें लम्बा इंतज़ार करना पड़ेगा।

  देवी मां की बात सुनकर आलोक बोल पड़ा "मैं अपने प्यार को पाने ने लिए क़यामत तक इंतज़ार कर सकता हूं"

  " तुम किसका इंतज़ार क़यामत तक कर सकते हो" जानकी जी ने आश्चर्यचकित होकर आलोक से पूछा।

   जानकी जी की बात सुनकर आलोक को अपने आप पर गुस्सा आ गया उसने सभंलते हुए कहा "कुछ नहीं चाचीजी मैं देवी मां के साक्षात् दर्शन के विषय में उनसे बात कर रहा था"

  " तू भी न आधा पागल ही है आज कल के दूसरे लड़के लड़कियों के पीछे भागते हैं और मेरा आलोक देवी मां को पाने की बात कर रहा है" जानकी जी ने हंसते हुए कहा और पुजारी जी से आज्ञा लेकर वह लोग घर की ओर निकल पड़े।

  आलोक ने उर्वशी को जानकी जी के साथ उनके घर छोड़ा और अपने घर की ओर निकल गया।
जानकी जी ने घर आकर श्यामा से कैलाश के विषय में पूछा तो पता चला कि,वह उसी समय कहीं चला गया था। जानकी जी अच्छी तरह से जानती थी कि, वह कहां गया है उन्होंने एक लम्बी सांस ली और उर्वशी की तरफ़ देखा उर्वशी उन्हें ही देख रही थी उसकी आंखों में उदासी साफ़ दिखाई दे रही थी होती भी क्यों न जिस औरत का पति उसे छोड़कर किसी दूसरी औरत के पहलू में बैठा हो तो उस पत्नी का मन तो उदास होगा ही।

   " बहू मेरे पास बैठो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है" जानकी जी ने सोफे पर बैठते हुए उर्वशी को भी बैठने का इशारा करते हुए कहा
उर्वशी उनके सामने बैठ गई।

   " बहू तुम मेरी बहू ही नहीं मेरी बेटी भी हो क्योंकि कैलाश से शादी होने के पहले तुमसे बेटी का ही रिश्ता था मैं तुमसे कुछ कहने और पूछने जा रही हूं उसका उत्तर बहुत सोच-समझकर शांत मन से मुझे  देना तुम जो भी निर्णय लोगी उसका सम्बन्ध तुम्हारे आने वाले जीवन को प्रभावित करेगा। मैं तुमसे जो भी पूछने जा रही हूं वह प्रश्न एक सास या एक मां नहीं कर रही है वह प्रश्न एक औरत दूसरी औरत से कर रही है इसलिए निसंकोच होकर तुम मुझसे बात करना"
जानकी जी ने बहुत गम्भीर लहज़े में कहा।

  जानकी जी की बात सुनकर उर्वशी का दिल जोरों से धड़कने लगा उसने धीरे से कहा "पूछिए मां जी आप क्या पूछना चाहती हैं"

   " उर्वशी क्या तुम कैलाश से तलाक़ लेकर आलोक से शादी करना चाहोगी" जानकी जी ने बिना भूमिका बांधे सीधा सवाल किया।

  जानकी जी की बात सुनकर उर्वशी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए उसने चौंककर कहा,
" मां जी आप यह कैसी बातें कर रही हैं आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं"?

   " मैंने सवाल करने से पहले तुमसे कहा था कि, तुमसे एक मां नहीं एक औरत बात कर रही है अब तुम एक औरत की तरह जबाव दो" जानकी जी ने कठोरता से कहा।

   " मां जी इस विषय पर मैं कुछ नहीं कह सकती आप उल्टी गंगा क्यों बहाना चाहती हैं आलोक जी मुझसे शादी क्यों करेंगे और दूसरी बात अभी मैं कैलाश जी को कुछ समय देना चाहतीं हूं हो सकता है कि,वह धीरे-धीरे मेरे नज़दीक आ आएं यह जबाव एक औरत दे रही है और एक पत्नी का तो जबाव सिर्फ़ यह होगा कि, मैं कैलाश जी के अलावा किसी और के विषय में सोच भी नहीं सकती लेकिन आपने मुझसे यह क्यों कहा कि, क्या मैं आलोक जी से शादी करना चाहूंगी क्या आपने आलोक जी से इस विषय में बात की थी" उर्वशी ने गम्भीर लहज़े में पूछा।

  " नहीं मैंने पूछा नहीं था इसकी मुझे जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि मैंने आलोक की आंखों में तुम्हारे लिए प्यार देख लिया है इसलिए मैंने पूछा लेकिन यदि तुम कैलाश को सुधारने के विषय पर विचार कर रही हो तो मैं सिर्फ इतना ही कहूंगी कि, तुम यह विचार अपने मन-मस्तिष्क से निकाल दो कैलाश जैसे लोग कभी सुधरते नहीं है। वह तुम्हारे ऊपर अपने पति होने का अधिकार हमेशा दिखाएगा और तुम्हारा शोषण करता रहेगा। मैं यह नहीं चाहती इसलिए यदि तुम चाहो तो कैलाश से छुटकारा पा सकती हो आगे जैसी तुम्हारी मर्ज़ी वैसे मैं हमेशा तुम्हारे फैसले के साथ ही रहूंगी" जानकी जी उदास लहज़े में गम्भीरता से कहा।

  " मां जी मैं कैलाश जी को थोड़ा समय देना चाहतीं हूं इतनी जल्दी मैं हार नहीं मान सकती और आपको भी हार नहीं माननी चाहिए आपकी शक्ति और मेरा प्यार हो सकता है इस घर की खुशियों को वापस लौटा दे" उर्वशी ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा।

  उर्वशी की बात सुनकर जानकी जी के चेहरे पर एक विश्वास भरी मुस्कुराहट फ़ैल गई उन्होंने उर्वशी को अपने गले से लगा लिया उनके मन में भी एक उम्मीद की किरण फिर से जागने लगी।

   उधर कैलाश पुष्पा के कोठे पर बैठा शराब पी रहा था और पुष्पा के घुंघरू बंधे पैर तबले की थाप पर थिरक रहे थे। नाचते-नाचते जब पुष्पा थककर चूर हो गई तो उसके पैर रूक गए।

  " पुष्पा तुमने नाचना क्यों बंद कर दिया नाचों" कैलाश ने शराब के नशे में झूमते हुए कहा,

  " कैलाश बाबू अब मैं थक गई हूं अगर आपने और नाचने के लिए कहा तो फिर बाद में आपका साथ नहीं दे पाऊंगी" पुष्पा ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा।

   तभी एक आदमी अंदर आया और पुष्पा से बोला " दीदी आपको मौसी बुला रहीं हैं"

  "तुम चलो मैं आती हूं" पुष्पा ने उससे कहा फिर कैलाश की तरफ़ मुखातिब होकर बोली "कैलाश बाबू आप अपना जाम खत्म कीजिए मैं अभी थोड़ी देर में आतीं हूं"

   " जल्दी आना पुष्पा मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता" कैलाश ने लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा

  " आप बैठिए आपको आपके इंतज़ार की कीमत भी मिलेगी पूरी रात यहां रहने की इजाजत क्या समझे" पुष्पा ने एक आंख दबाकर कहा और कमरे से बाहर निकल गई।

   उधर पुष्पा जब मौसी यानिकि सुन्दरी बाई के पास पहुंची तो वहां शहर का एक सफेदपोश गुंडा बैठा हुआ था जो कहने को तो वह नेता का बेटा था लेकिन उसका काम लोगों को परेशान करना और गुंडागर्दी करना ही था।

  " मौसी आपने मुझे क्यों बुलाया है आपको तो पता है कि,जब मैं कैलाश बाबू के साथ होती हूं तो किसी और से नहीं मिलती फिर आपने क्यों बुलाया है" ? पुष्पा ने थोड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा

   " अरे पुष्पा यह नेताजी के बेटे हैं इन्होंने तुम्हारे बारे में सुना अब यह तुम्हारे साथ समय बिताने आए हैं तुम ऐसा करो कैलाश बाबू को यहां से विदा कर दो और जतिन बाबू के साथ भी थोड़ा समय बीता लो" सुन्दरी ने गहरी नज़रों से देखते हुए पुष्पा से कहा।

  " ठीक है मौसी मैं कैलाश बाबू को विदा करने की कोशिश करतीं हूं लेकिन अगर कैलाश बाबू नहीं माने तो आपको जतिन बाबू से क्षमा मांगनी पड़ेगी" पुष्पा ने हंसते हुए कहा

  " नहीं मुझे आज और अभी तुम्हारा साथ चाहिए मैं कैलाश से ज्यादा पैसे दूंगा पर आज रात तुम्हें कैलाश को छोड़कर मेरे साथ रहना होगा' जतिन ने गुस्से में कहा।

  " जतिन बाबू आपकी बातों से ज़िद्द की बू आ रही है क्या कैलाश बाबू ने आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है"?? पुष्पा ने हंसते हुए पूछा

   " पुष्पा बाई अपना दाम बोलो मुझे क्या हुआ है इससे तुमको कोई मतलब नहीं होना चाहिए" जतिन ने आक्रोशित होकर कहा

   " तब तो आपको कोई दूसरा दरवाजा खटखटाना पड़ेगा जतिन बाबू मेरी क़ीमत आप नहीं दे पाएंगे क्योंकि घमंडी लोग मुझे खरीद नहीं सकते मैं अपनी मर्ज़ी से बिकती हूं किसी के कहने पर नहीं मुझे दौलत की अकड़ दिखाने की जरूरत नहीं है क्योंकि दौलत तो मेरे कदमों में बिछी रहती है" पुष्पा ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ जबाव दिया।

   " कैलाश में ऐसा क्या है जो तुम उसे छोड़ना नहीं चाहती मैंने सुना है कि,अब उसका विवाह हो गया है अब तो किसी दिन भी जानकी देवी तुम्हारे पास दौलत की गड्डी लेकर आएगी अपने बेटे को तुम्हारे चंगुल से मुक्त कराने तब तो तुम्हें किसी दूसरे रईसजादे का हाथ पकड़ना ही पड़ेगा वह हाथ मैं पहले ही बढ़ा रहा हूं" जतिन ने गर्व से गर्दन तानकर कहा।

   पुष्पा जतिन की बात सुनकर खिलखिला कर हंसने लगी उसको हंसते हुए देखकर जतिन ने गुस्से में पूछा " मैंने कोई चुटकुला तो सुनाया नहीं पुष्पा बाई तो आपको हंसी किस बात पर आई"

  " जतिन बाबू मुझे हंसी आपकी बात पर आई है आप शायद जानकी देवी के विषय में कुछ नहीं जानते तभी ऐसा कह रहे हैं। उन्हें अगर पैसे देकर कैलाश को मुझसे मुक्त कराना होता तो वह अब तक करा लेती पर वह ऐसा नहीं करेंगी उनका मानना है कि, जब-तक कैलाश खुद अपने आप मुझे छोड़कर उनके पास जाए वह किसी से विनती नहीं करेंगी न मुझे और न ही कैलाश से क्योंकि वह स्वाभिमान की मिट्टी से बनी औरत हैं वह अपने स्वाभिमान को किसी के कदमों पर गिरने नहीं देगी जतिन बाबू मुझे यह बात समझ आ गई है पर आप को शायद अभी तक यह समझ ही नहीं आया की जानकी देवी चीज़ क्या हैं कैलाश पूरे शहर में बदनाम है पर कोई भी व्यक्ति जानकी जी की तरफ़ उंगली नहीं उठाता क्योंकि जानकी जी ने कभी भी कैलाश की गलत बात का समर्थन नहीं किया किसी ने अगर उनसे कैलाश की शिकायत की तो उन्होंने उसे स्वीकार किया कि,उनका लड़का ग़लत है आपके पिता जी की तरह नहीं कि,वह अपने बेटे की गलतियों को छुपाने के लिए दूसरों को ग़लत साबित करने की कोशिश करें इसलिए आप मुझसे ऐसी बात न कीजिए जो मैं सुन न सकूं मैंने बहुत पैसा देखा है मुझसे पैसे की गर्मी दिखाने की कोशिश न कीजिए वैसे अगर कैलाश अपने घर चला जाएगा तो मैं आपको अपने पास रूकने की इजाजत दे दूंगी जतिन बाबू अच्छा मैं जाकर कैलाश बाबू से बात करती हूं " इतना कहकर पुष्पा वहां से चली गई।

   पुष्पा के जाते ही जतिन ने सुन्दरी बाई से कहा
" सुन्दरी बाई आपने पुष्पा को जरूरत से ज्यादा छूट दे दी है मैंने भी इसका गुरूर नहीं तोड़ा तो मेरा नाम भी जतिन नहीं"

  " अगर तुम्हें पुष्पा का गुरूर तोड़ना है तो तुम्हें कैलाश को रास्ते से हटाना पड़ेगा तभी यह संभव हो सकता है" सुन्दरी बाई ने धीरे से कहा

  "तुम कहना क्या चाहती हो सुंदरी बाई साफ़ साफ़ बताओ" जतिन ने कुछ सोचते हुए पूछा

  " जतिन बाबू कुछ ऐसा करो जिससे कैलाश हमेशा के लिए पुष्पा से दूर हो जाए क्या यह भी मुझे बताना पड़ेगा इतने बेवकूफ तो आप लगते नहीं हैं मैं भी परेशान हो गई हूं पुष्पा किसी और का साथ पसंद ही नहीं करती अगर पुष्पा सभी को कोठे पर आने दे तो मेरे पास दौलत का भंडार होगा पर मुझे थोड़े से पैसों में संतोष करना पड़ता है" सुंदरी बाई ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा

  " मैं समझ गया सुन्दरी बाई अब आप देखती जाइए की मैं क्या करता हूं" जतिन ने कहा

  तभी पुष्पा ने वहां आकर कहा " जतिन कैलाश बाबू यहां से चले गए हैं अब मैं तुम्हारे लिए जाम बनाती हूं आप कौन सी ग़ज़ल सुनेंगे बताइए वैसे तो मैं सिर्फ़ कैलाश बाबू के लिए गाती और नाचती हूं लेकिन आप मौसी जी के खास हैं इसलिए मैं आपके लिए ऐसा करने को तैयार हो गई हूं" पुष्पा ने मुस्कुराते हुए कहा।

   " तो ठीक है पुष्पा बाई आप मुझे उमराव जान की ग़ज़ल इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं सुनाइए आपकी आवाज़ हम भी सुनना चाहते हैं लोगों से आपकी बड़ी तारीफ सुनी है" जतिन ने मक्कारी की हंसी हंसते हुए कहा।

  पुष्पा ने अपने अंदाज में ग़ज़ल गाना शुरू किया जतिन पुष्पा की आवाज सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया पुष्पा ने जब तबले की थाप पर अपना नृत्य शुरू किया तो जतिन पुष्पा की अदाएं देखकर पागल हो गया उसने पुष्पा का हाथ पकड़कर अपनी तरफ़ खींचा पुष्पा ने अदा के साथ हाथ छुड़ाने की कोशिश पर जतिन की पकड़ मजबूत थी।
पुष्पा को जतिन के इरादे ठीक नहीं लगे, पुष्पा का चेहरा गुस्से में लाल हो गया और उसने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और बोली "जतिन बाबू अब आप जाइए आपको नशा ज्यादा चढ़ गया है आप अपनी हद पार करने की कोशिश कर रहे हैं"

  " तुम मुझे अपनी हद बताओगी तुम जैसी लड़कियां क्या जाने हद क्या होती है दो टके की औरत मुझे मना करने की कोशिश कर रही है अब देख यही सबसे सामने तेरा क्या हाल करता हूं" जतिन ने कहा और पुष्पा के साथ जबरदस्ती करने लगा तभी पुष्पा ने पास पड़ा पीतल के फूलदान से जतिन के सिर पर वार किया वह लड़खड़ा गया उसके सिर से ख़ून निकलने लगा। तभी वहां के तबला बजाने वालों ने जतिन को पकड़ लिया शोर सुनकर और लोग भी आ गए पुष्पा ने उनसे कहकर जतिन को कोठे से नीचे फिंकवा दिया।

  उधर कैलाश शराब के नशे में धूत्त अपने घर पहुंचा वह सीधे अपने कमरे में चला गया उर्वशी ने आंख बंद कर सोने का नाटक किया पहले तो कैलाश ने उर्वशी की तरफ़ देखा नहीं लेकिन बिस्तर पर लेटते ही उसकी आंखों के सामने पुष्पा का चेहरा नाचने लगा पुष्पा की याद आते ही उसके ऊपर वासना का भूत सवार हो गया।

  कैलाश ने झटके से उर्वशी को अपनी ओर खींचा उर्वशी इसके लिए तैयार नहीं थी वह घबरा गई उसने विरोध करते हुए कहा " मैं आपकी पत्नी हूं कोई बाजारू औरत नहीं जो आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मुझे छोड़िए मुझे नींद आ रही है"

  उर्वशी का इंकार सुनकर कैलाश चिढ़ गया और गुस्से में बोला "क्यों  आलोक के साथ तो बड़ी खुशी से  घूमने चली गई थीं तुम मेरी पत्नी हो किसी गैर मर्द के साथ क्यों मंदिर गई क्या ऐसा शरीफ़ घर की औरतें करती हैं"??

  इतना कहकर कैलाश उर्वशी के साथ मनमानी करने लगा उर्वशी ने कुछ देर विरोध किया लेकिन उसके मन में जैसे ही यह विचार आया कि, कैलाश के मन में आलोक के लिए ईर्ष्या इसलिए आई कि, मैं उसके साथ मंदिर गई अगर मैंने कैलाश का विरोध किया तो उसकी ईर्ष्या और बढ़ जाएगी यह सोचते ही उर्वशी का विरोध कम हो गया•••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
28/7/2021

 


Jyoti

Jyoti

शानदार

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर अंक 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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