इंतज़ार की कीमत भाग 5
" पार्वती बहन मैं उर्वशी के फैसले से खुश तो नहीं हूं पर उसकी सच्चाई और उसके दृढ़संकल्प से मैं प्रभावित जरूर हूं उर्वशी की बातें सुनकर मेरे मन में भी एक उम्मीद जागी है कि,हो सकता है कि, उर्वशी की संगति में पड़कर कैलाश भी बदल जाए जबकि इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि अगर संगति का प्रभाव पड़ता तो चंदन विषैला हो जाता और सर्प डसना छोड़ देता फ़ूल कांटों की चुभन देते और कांटे कोमल स्पर्श देते जब की ऐसा नहीं होता मेरे ख्याल से संगति का असर भी कुछ विशिष्ट लोगों पर ही होता होगा ख़ैर अब जो होगा देखा जायेगा। यह फ़ैसला तो उर्वशी कर ही चुकी है इसलिए आप गौने की तैयारी कीजिए मैं बहुत जल्दी ही अपनी बहू को विदा करवाने के लिए आऊंगी" जानकी जी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा।
जानकी जी की सहमति मिलते ही उर्वशी और पार्वती जी के चेहरे खुशी से खिल उठे उनकी खुशी को देखकर जानकी जी ने भी ख़ुशी का इज़हार किया पर उनके मन को अभी भी कोई खुशी का अनुभव नहीं हो रहा था वहां वीरानी छाई हुई थी। जानकी जी झूंठी मुस्कान लिए पार्वती जी की खुशियों में शामिल थीं थोड़ी देर बाद उन्होंने जाने की इजाजत ली और घर के बाहर निकल गई पार्वती जी और उर्वशी उनको विदा करने बाहर तक आई उनके कार में बैठने के पहले उर्वशी ने उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिया उसके बाद जानकी जी कार में बैठकर चली गई।
जानकी जी के जाने के बाद पार्वती जी तुरंत ही अपने पड़ोसी के घर की ओर चल पड़ी वैसे पड़ोस की शांति चाची जिन्हें गांव वालों से मंथरा और नारदजी की उपाधियां मिली हुई थीं अपने घर के बाहर ही खड़ी हुई जानकी जी की कार को जाते हुए देख रही थीं।
पार्वती को अपनी तरफ़ आता देखकर वह दूसरी तरफ देखने लगी पार्वती जी ने उनके पास पहुंचकर उनको प्रणाम किया शांति चाची जो बड़ी देर से मन में उत्सुकता दिए हुए थीं उन्होंने जल्दी से पूछा "बहुरिया कौन आया था मुझे तो वह जगत की बहुरिया जानकी लग रही थी मैंने बहुत सालों बाद उसे देखा तो ठीक से पहचान नहीं पाई जब से वह लोग गांव छोड़कर शहर गए तो लौटकर कभी गांव आए ही नहीं।जगत एक बार आया था पर सुना है उसकी भी मौत हो गई। क्या जानकी गौना मांगने आई थी या शादी तोड़ने अब तो वह लोग बहुत बड़े आदमी हो गए हैं कहां उनका अमीर खानदान उनके बेटे को तो अमीर खानदान की बेटियां मिल जाएगी तुम उनकी बराबरी अब कहां कर पाओगी मुझे लगता है कि,वह यह रिश्ता तोड़ने ही आई रहीं होगी क्यों बहूरिया"?? शांति चाची अपनी आदत के अनुसार व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ पार्वती को अपमानित करने के उद्देश्य से पूछने लगी ।
" चाची जानकी बहन रिश्ता तोड़ने नहीं उर्वशी का गौना मांगने आई थी आज से 15 दिन बाद मेरी बेटी अपनी ससुराल चली जाएगी मेरी उर्वशी बहुत भाग्यशाली है चाची जो इतने बड़े खानदान में उसका ब्याह हुआ है और लड़का भी अकेला ही है मैं यही खुशखबरी आपको सुनाने आई थी।अब मैं चलती हूं मुझे और लोगों को भी बताना है इतना कहकर पार्वती वहां से चलीं गईं।उनके जाते ही शांति चाची मुंह बनाकर बड़बड़ाने लगी "बड़ी आई खुशखबरी सुनाने वाली घमंड तो देखो कैसे इतरा कर बात कर रही थी बड़ी आईं खुशखबरी सुनाने वाली बड़े घर में जब छोटे घर की बेटियां जाती हैं तो उन्हें कोई सम्मान नहीं मिलत है जब उर्वशी उस बड़े घर की नौकरानी बनकर रहेगी तो सारा घमंड चूर हो जाएगा पार्वती बहुरिया का कहे देती हूं"
"अम्मा आप किससे बातें कर रहीं हैं किसका घमंड चूर हो जाएगा" शांति जी की बहू ने अंदर से आते हुए आश्चर्य से पूछा।
" पार्वती आई थी बड़ा इतरा कर बता रही थी कि,उसकी बिटिया का गौना होने वाला है बड़े अमीर लोग हैं उनकी ससुराल वाले" शांति जी ने ईर्ष्यालु लहज़े में जबाव दिया।
" अम्मा यह तो खुशी की बात है कि, उर्वशी का गौना होने वाला है वरना गांव वाले तो तरह-तरह की बातें करने लगे थे कि,अब जानकी बहन अपने बेटे के लिए किसी अमीर खानदान की लड़की लेकर आएगी उर्वशी को अपने घर नहीं लेकर जाएगी पार्वती दीदी कितनी परेशान थीं यह तो अच्छा हुआ कि, पार्वती दीदी की परेशानी खत्म हो गई आपको तो ख़ुश होना चाहिए उर्वशी भी तो आपकी पोती ही है अगर किसी की बेटी अच्छे घर में चली जाए तो ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए भगवान को भी बुरा लगता है।पर आपको तो लोगों की खुशियों से ही ईर्ष्या है और इधर-उधर बात पहुंचाना आपकी फितरत है तभी तो गांव वाले आपको मंथरा और नारदजी कहते हैं मैंने कितना आपको समझाया कि, दूसरों के जीवन में ताक-झांक करने की अपनी यह आदत छोड़ दीजिए पर आपके ऊपर कोई फर्क ही नहीं पड़ता"
शांति जी की बहू लक्ष्मी ने चिढ़ते हुए कहा और अन्दर चली गई।
" मैंने ऐसा क्या कह दिया जो मुझे ऐसा सुनाकर चली गई आज कल की बहूओं को बड़ों की इज्ज़त करना आता ही नहीं है एक हम लोग थे कि,सास के सामने ज़बान नहीं खुलती थी" शांति चाची अपने आप बड़बड़ाते हुए बाहर लगे फूलों के पौधों में पानी डालने लगी।
उधर थोड़ी देर में ही पूरे गांव में यह ख़बर फ़ैल गई कि, उर्वशी की सास उसका गौना करवाने के लिए खुद संदेश लेकर आई थीं।
पार्वती जी की खुशी का ठिकाना नहीं था आज उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उनके सिर से भारी बोझ उतर गया हो जब से उर्वशी ने जवानी में क़दम रखा था तब से लेकर आज तक वह लोगों के व्यंग बाण ही सुनती आई थीं उनका मन भी सशंकित रहता था कि, कहीं उर्वशी के ससुराल वालों ने बचपन की शादी को शादी न माना तो उसकी बेटी का क्या होगा।यह गांव था यहां शादीशुदा लड़की मायके में रहें तो जगहंसाई होती है लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं उस लड़की का दूसरा ब्याह भी होना भी मुश्किल हो जाता है यही सब सोचकर पार्वती जी की रातों की नींद हराम हो गई थी।पर आज जब जानकी जी ने गौना करवाने का आश्वासन दिया तो उनकी बात सुनकर पार्वती जी ने चैन की सांस ली वह मन-ही-मन सोच रहीं थीं आज उन्हें वर्षों बाद चैन की नींद आएगी।
उधर उर्वशी के मन-मस्तिष्क में भी आंधियां चल रही थीं उसने अपनी सास से कह तो दिया था कि, वह कैलाश के साथ हरहाल में ख़ुश रह लेगी पर क्या वह सच में कैलाश जैसे अय्याश व्यक्ति के साथ खुश रहेगी।यह प्रश्न बार-बार उर्वशी के मन में उठ रहा था तभी उर्वशी को लगा कोई उससे पूछ रहा है " क्या सच में तुम गौने के बाद खुश रहोगी या तुम्हारा पूरा जीवन ही प्रश्नचिन्ह बनकर रह जाएगा। अपनी सास के सामने तो बहुत बड़ी बड़ी बातें कर रहीं थीं। फिर अब क्यों असमंजस में फंस गई हो क्या तुम्हें लगता है कि, तुमने ग़लत निर्णय ले लिया है। अगर ऐसा है तो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है तुम अपनी मां से जाकर कह दो कि, तुम गौना नहीं करवाना चाहतीं"
उर्वशी ने चौंककर पीछे देखा तो वहां कोई नहीं था लेकिन फिर उसे वही आवाज सुनाई दी उर्वशी उस आवाज़ को सुनकर परेशान हो गई उसने चिल्लाकर कहा " तुम कौन हो मुझे क्यों परेशान कर रही हो मेरे सामने आओ"
" मैं तो तुम्हारे सामने ही खड़ी हूं तुम ही मुझे देख नहीं पा रही हो" उस आवाज़ ने व्यंग्यात्मक लहजे में हंसते हुए कहा।
" तुम मुझे बेवकूफ समझ रही हो तुम मेरे सामने कहां हो इस कमरे में तो मैं अकेली हूं" उर्वशी ने झल्लाकर पूछा।
" तुम बेवकूफ ही नहीं बहुत बड़ी बेवकूफ हो जो अपनी आत्मा की आवाज़ को नहीं पहचान रही हो मैं तुम्हारी अंतरात्मा की आवाज हूं जिसे तुम अनसुना कर रही हो अगर तुमने मेरी बात को नहीं सुना तो बाद में तुम्हें सिर्फ़ पश्चाताप मिलेगा और कुछ नहीं अभी भी समय है सोच लो इस शादी को तोड़ दो••• तोड़ दो••• "
उर्वशी को उसकी अंतरात्मा की आवाज बार-बार सुनाई दे रही थी उर्वशी ने घबराकर अपने कानों को हथेलियों से बंद कर दिया फिर भी आवाज़ आना बंद नहीं हुई तब उर्वशी ने घबराकर चिल्लाते हुए कहा " भाग जाओ यहां से मुझे तुम्हारी बातें नहीं सुनना है मुझे अकेला छोड़ दो जाओ••• जाओ" उर्वशी के चिल्लाने की आवाज सुनकर पार्वती जी घबरा गई और दौड़कर उर्वशी के कमरे में आई तो उन्होंने देखा कि, उर्वशी की आंखें बंद हैं और वह अपनी हथेली से अपने कानों को बंद किए चिल्ला रही है।
पार्वती जी ने उर्वशी के पास पहुंचकर उर्वशी को झकझोर दिया उर्वशी ने चौंककर अपनी आंखें खोली अपने सामने अपनी मां को देखकर उर्वशी उनसे लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी•••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
15/7/2021