इंतज़ार की कीमत भाग 14
कैलाश जानकी जी के क्रोधित चेहरे को देखकर पहले तो सकपका गया लेकिन तुरंत उसके चेहरे के भाव बदल गए उसके चेहरे पर बेशर्मी के साथ ढिठाई स्पष्ट दिखाई देने लगी।
" क्या कहा तुमने तुम्हारा हिस्सा किस चीज का हिस्सा मांग रहे हो तुम"?? जानकी जी ने कैलाश को घूरते हुए कठोर शब्दों में पूछा।
" अपने पिताजी की प्रापर्टी में उसमें मेरा भी बराबर का हिस्सा है आप मुझे जेब खर्च के लिए जो पैसा देती हैं उससे मेरा खर्च पूरा नहीं होता आपसे जब और मांगता हूं तो आप देती नहीं मुझे अपने ही पैसे भीख की तरह मांगना अच्छा नहीं लगता इसलिए आप मेरा हिस्सा मुझे दे दीजिए मैं जैसे चाहूं उसे खर्च करूं" कैलाश ने अधिकार से सिर उठाकर कहा उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह बहुत महान काम करने की आज्ञा मांग रहा हो
कैलाश की बात सुनकर जानकी जी के चेहरे की कठोरता समाप्त हो गई उसका स्थान उनके चेहरे पर व्यांगयात्मक मुस्कुराहट ने ले लिया।
" तुम जिस प्रापर्टी की बात कर रहे हो जिस पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हो वह धन-दौलत तुम्हारे पिताजी की नहीं है वह मेरे पिताजी की है यानिकि तुम्हारे नाना जी की जो उनकी मृत्यु के बाद मुझे मिली है इस पर सिर्फ मेरा अधिकार है मैं जिसे चाहूं दूं उस पर किसी दूसरे का अधिकार नहीं हो सकता। मैं जिसे चाहूंगी वही मेरी धन-दौलत पाएगा अगर मैं नहीं देना चाहूं तो वह कभी नहीं पा सकता तुम भी नहीं कानून के जरिए भी नहीं क्यों वकील साहब मैं ठीक कह रहीं हूं न"?? जानकी जी ने वकील को देखकर व्यंग से पूछा।
जानकी जी की बात सुनकर कैलाश ने आश्चर्य से वकील को देखा वकील ने अपना चेहरा झुका लिया।
" कैलाश एक बात मेरी और सुन लो प्रापर्टी पाने के लिए मेरे साथ कुछ गलत करने की कोशिश नहीं करना नहीं तो तुम दर-दर के भिखारी बन जाओगे क्योंकि मैंने अपनी वसीयत ही ऐसी बनाई है अगर संदिग्ध रूप से मेरी मौत हुई तो मेरी प्रापर्टी ट्रस्ट को चली जाएगी जो तुम्हें जेब खर्च मिल रहा है वह भी बंद हो जाएगा।यह मैं तुम्हें इसलिए बता रहीं हूं कि, तुम अपने मन में यह बात अच्छी तरह बैठा लो तुम इसे मेरी सलाह भी समझ सकते हो और चेतावनी भी अगर अभी भी तुम्हारे मन में कोई संशय है तो अपने साथ लाए वकील से समझ सकते हो" जानकी ने गम्भीर
लहज़े में कहा ऐसा कहते हुए उनके चेहरे पर कठोरता साफ़ दिखाई दे रही थी इतना कहकर जानकी जी ने आग्नेय दृष्टि से कैलाश को देखा और सीढियां चढ़ते हुए ऊपर चलीं गईं उनके मन-मस्तिष्क में इस समय विचारों की आंधी चल रही थी।
कैलाश भौंचक्का होकर जानकी जी को जाते हुए देखता रहा उसके चेहरे पर आक्रोश साफ़ दिखाई दे रहा था पर वह कुछ कर नहीं सकता था वह गुस्से में घर से बाहर निकल गया।
उधर अपने कमरे में पहुंचकर जानकी कटे हुए वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी उनका दिल ख़ून के आंसू रो रहा था तभी उनकी नज़र अपने पति सुरेश की तस्वीर पर पड़ी उन्हें अपने पति की तस्वीर व्यंग से मुस्कुराती हुई लगी। जैसे वह मुस्कुराते हुए कह रहें हैं "तुम रो क्यों रही हो तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए तुम्हारे शहर के संस्कारों ने तो कमाल कर दिया आज तुम्हारा शहरी बेटा तुम्हारे जीते-जी तुमसे अपना हिस्सा मांग रहा है तुम शहरी लोगों के संस्कार तो बहुत उच्च कोटि के हैं।आज तुम परेशान क्यों हो यह तो एक दिन होना ही था जानकी यह तो अभी शुरुआत है आगे आगे देखती जाओ क्या क्या होगा। अपने सारे आंसू आज ही न बहा दो आगे भी तुम्हें इसकी ज़रूरत पड़ेगी इसलिए अपने आंसूओं को संभाल कर रखो"
"आप ठीक कह रहे हैं अब आंसू तो मुझे जीवन भर बहाना ही है लेकिन मन में एक आशा की किरण जागी है कि,हो सकता है कि, उर्वशी के आने के बाद कैलाश बदल जाए" जानकी जी ने अपने आंसू पोछते हुए कहा।
तभी जानकी को अपने पति के हंसने की आवाज़ सुनाई दी वह हंसते हुए कह रहे थे" मन को बहलाने के लिए यह सोच भी अच्छी है।यह तो कुछ समय बाद तुम्हें पता ही चल जाएगा कि, तुम्हारा बेटा सुधर गया है या तुम्हारी बहू बर्बाद हो गई है"
"आप ऐसा क्यों कह रहें हैं वह आपका भी तो बेटा है आप उसे आशीर्वाद दीजिए कि,वह अपने आपको बदल ले" जानकी जी ने विनती करते हुए कहा।
" कैलाश मेरा नहीं सिर्फ तुम्हारा बेटा है क्योंकि अगर तुम उसे मेरा बेटा समझाती तो जब मैं उसे सुधारना चाहता था तो तुम बीच में आकर मेरा विरोध नहीं करतीं आज जब सबकुछ तुम्हारे हाथ से फिसलने लगा है तो तुम कैलाश को मेरा बेटा कह रही हो। तुम औरतों का ही हाथ आदमियों को बनाने या बिगाड़ने में होता है बाद में दोषारोपण आदमियों पर किया जाता है" जानकी के पति सुरेश ने कठोर शब्दों में कहा।
" आप मुझे माफ़ क्यों नहीं कर देते मुझे माफ़ कर दीजिए" जानकी जी ने हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा।
" मालकिन आप माफ़ी किससे मांग रहीं हैं" तभी जानकी जी श्यामा की आवाज़ सुनकर चौंक गई उन्होंनेे पीछे मुड़कर देखा तो दरवाजे पर श्यामा उनका खाना लिए खड़ी थी।
" किसी से नहीं श्यामा मैं खुद से माफ़ी मांग रही थी अपनी गलतियों के लिए खुद से क्षमा मांग रही हूं" जानकी जी ने निराशा भरी आवाज में कहा।
" मालकिन मैं जानती हूं कि, आप छोटे मालिक के कारण परेशान हैं पर आप अपने आप को क्यों परेशान कर रहीं हैं इससे कोई फायदा नहीं होगा अब वह आपके समझाने से नहीं समझेंगे उन्हें तो अब समय की ठोकर ही समझा सकती है किसी की सलाह नहीं इस तरह तो आप ख़ुद को बीमार कर लेंगी" श्यामा ने दुखी होकर कहा।
" मैं क्या करूं श्यामा मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या उर्वशी को इस घर में लाकर मैं ठीक कर रहीं हूं या नहींं तू ही बता"? जानकी जी ने श्यामा से पूछा।
" मालकिन मैं क्या बताऊं मैं तो यही कह सकतीं हूं कि,हो सकता है कि,बहूरानी का नसीब अच्छा हो तो सब कुछ ठीक हो जाए नहीं तो कुछ भी कहना मुश्किल है यह तो कोई नहीं बता सकता इसका फैसला तो समय ही करेगा यह तो जुआ है हार मिलेगी या जीत इसका निर्णय तो खेलने के बाद ही हो सकता है अगर हारने का डर है तो मत खेलिए" श्यामा ने सहजता से कहा
श्यामा की बात सुनकर जानकी उसका मुंह देखने लगी जो बात जानकी को समझ नहीं आ रही थी उसे श्यामा ने कितनी सहजता से समझा दिया। श्यामा की बात सुनकर जानकी के मन की दुविधा समाप्त हो गई उन्होंने उर्वशी के फैसले को मान लेने का निर्णय लिया कल वह पंडित जी से मिलकर गौने की तारीख निश्चित करवाएगी जिससे जल्दी से जल्दी वह उर्वशी को इस घर की बहू बनाकर ला सकें यह सोचते हुए उनके चेहरे पर संतुष्टि का भाव दिखाई देने लगे•••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
20/7/2021