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इंतज़ार की कीमत भाग 3

24 नवम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 3

" आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं जानकी बहन आप तो बेटे की मां हैं इसलिए आप हमारे कदमों में क्यों झुकेगीं झुकना तो मुझे चाहिए क्योंकि मैं बेटी की मां हूं" पार्वती जी ने गम्भीर लहज़े में कहा

  " पार्वती बहन आप बेटी की मां होकर भी मेरी नज़रों में सम्मानित हैं और मैं बेटे की मां होकर भी आपसे नज़रें नहीं मिला सकती आपने  अपनी बेटी को सीता जैसा बना दिया पर मैं अपने बेटे को राम नहीं बना पाई मेरा बेटा तो रावण बन गया है वह तो रावण को भी शर्मशार करने वाले काम कर रहा है।  मैंने यह नहीं चाहती कि, उर्वशी का जीवन बर्बाद हो जाए इसलिए मैं यह रिश्ता तोड़ना चाहती हूं अगर उर्वशी का गौना नहीं गया तो कोई भी समझदार लड़का उससे विवाह कर लेगा। जहां तक शादी का प्रश्न है इन दोनों का बाल-विवाह हुआ था कानून की नज़रों में इनकी शादी का कोई महत्व नहीं है इसलिए मैं चाहती हूं कि,आप इस शादी को तोड़ दीजिए यदि आप शादी तोड़ेगी तो आपकी बदनामी कम होगी यदि मैंने तोड़ा तो उर्वशी की बदनामी ज्यादा होगी। इसलिए मैं चाहती हूं कि,यह रिश्ता आप तोड़ दें जिससे आपकी बेटी का जीवन बर्बाद होने से बच जाए" जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में कहा उनके स्वर में दृढ़ता साफ़ परिलक्षित हो रही थी।

  अपनी सास की बात सुनकर उर्वशी का दिल और जोर से धड़कने लगा वह सोचने लगी कहीं ऐसा तो नहीं उसके पति कैलाश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है इसलिए वह मेरा त्याग कर रहें हैं। तभी उसे अपनी मां पार्वती की व्याकुलता भरी आवाज सुनाई दी जो उसकी सास से पूछ रही थीं,

  " जानकी बहन साफ़ साफ़ बताइए आप कहना क्या चाहती हैं मेरा दिल बैठा जा रहा है"

  " ठीक है पार्वती जी मैं खुलकर बता रहीं हूं मेरे पति की मृत्यु के बाद कैलाश ग़लत लोगों की संगति में पड़ गया मैंने भी उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया सोचा बचपना है आगे चलकर सब ठीक हो जाएगा। मेरी यह सोच गलत साबित हुई कैलाश सभला तो नहीं और बिगड़ गया वह शराब पीने लगा कोठे पर भी जाने लगा जब इस बात का पता मुझे चला तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसकने लगी। उसके बाद मैंने कैलाश पर अंकुश लगाने की कोशिश की पर उसका कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि जब हाथी के दांत बाहर निकल आते हैं तो फिर वह अंदर नहीं जाते कैलाश के साथ भी यही हुआ।इन हरकतों के साथ साथ वह गुंडागर्दी भी करता है आए दिन उसकी किसी न किसी से मार-पीट होती रहती है मुझे उसके गुस्से से बहुत डर लगता है कहीं किसी दिन वह क्रोध में आकर किसी का ख़ून क़त्ल न कर दे अगर ऐसा हुआ तो उसका आगे का जीवन जेल में कटेगा। मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ।जब मैं कैलाश को सही रास्ते पर लाने में नाकामयाब रही तो मैंने यह निर्णय लिया कि मैं उर्वशी का जीवन नहीं बर्बाद होने दूंगी इसलिए मैं चाहती हूं कि,यह गौना न हो कमी आपकी बेटी में नहीं मेरे बेटे में है पार्वती जी" जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में अपने मनोभावों को व्यक्त किया।

  जानकी की बात सुनकर पार्वती जी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव दिखाई देने लगे उन्होंने एक लम्बी सांस ली और मुस्कुराते हुए बोली " समधन जी आपने तो मुझे डरा ही दिया था पर अब आपकी बातों को सुनकर मेरा डर भाग गया है अरे जो अवगुण कैलाश बाबू में है वह तो अमीर खानदान के लड़कों में होते ही है इसमें इतना परेशान होने वाली कौन सी बात है जब मेरी बेटी जाएगी तो कैलाश बाबू उसकी सुन्दरता को देखकर सब कुछ भूल जाएंगे मेरी उर्वशी उन्हें अपने प्रेम में ऐसा बांधेगी की वह कभी कोठे की तरफ़ रूख ही नहीं करेंगे आपने तो मुझे डरा ही दिया था आप गौने की तैयारी कीजिए" पार्वती जी ने मुस्कुराते हुए इत्मीनान से कहा उनके चेहरे को देखकर लग ही नहीं रहा था कि, उन्हें कैलाश के विषय में सुनकर कोई फ़र्क पड़ा हो।

  उधर उर्वशी के मन से भी यह डर निकल गया कि, किसी लड़की का कोई चक्कर है उर्वशी को भी अपने रूप सौंदर्य पर अभिमान था उसे भी अपनी सुन्दरता पर विश्वास था कि,वह कैलाश को अपने रूपजाल में जकड़ लेगी और वह गलत रास्ते का त्याग कर देगा।

   पार्वती जी की बात सुनकर जानकी जी आश्चर्यचकित होकर अपनी समधन को देखने लगी उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था ।जानकी जी ने आश्चर्य से पूछा " यह आप क्या कह रही हैं पार्वती बहन लोग मिट्टी का बर्तन भी खरीदते हैं तो उसे भी अच्छी तरह से ठोक बजाकर लेते हैं आप अपनी बेटी जिसको सौंप रहीं हैं उसके विषय में सब-कुछ जानने समझने के बाद यह बात कह रही हैं आप ऐसा कैसे सोच सकतीं हैं? उर्वशी आपकी सगी बेटी है कोई सौतेली नहीं "

   " जानकी बहन मैं अच्छी तरह सब समझती हूं मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आ रही है पहले के राजा महाराजा भी तो अय्याशी करते थे उनके भी तो कई कई रानियां होती थीं वह लोग कैसे रहतीं थीं मेरी बेटी ससुराल में राज करेगी मेरे यहां जो दुःख तकलीफ़ उसने झेली है वह उसके जीवन से समाप्त हो जाएगी। इसमें इतना परेशान होने जैसी कौन सी बात है कैलाश बाबू ने किसी दूसरी लड़की को तो पत्नी बनाकर अपने घर पर  रखा नहीं है बाहर वह जो कर रहे हैं  वह भी उर्वशी के जाने के बाद बंद हो जाएगा आप इसकी चिंता न करें" पार्वती जी ने दृढ़ता से बहुत खुश होकर कहा।

   पार्वती जी की बात सुनकर जानकी जी के चेहरे पर कठोरता दिखाई देने लगी उन्होंने गम्भीर लहज़े में कहा " आप जो कह रहीं हैं यही सब मैं आपकी बेटी के मुंह से सुनना चाहतीं हूं तभी मैं अपना फ़ैसला सुनाऊंगी "

   उर्वशी  दरवाजे की ओट से अपनी मां और सास की बातें सुन रही थी अपनी सास की बात सुनकर वह स्वयं ही उनके सामने आ गई••••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
14/7/2021

 


Jyoti

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Bahut badiya

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इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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