इंतज़ार की कीमत भाग 24 अंतिम भाग
उर्वशी कैलाश की हैवानियत को बर्दाश्त कर रही थी यह सोचकर शाय़द कैलाश को उससे प्यार होने लगा है पर वह मासूम यह नहीं जानती थी कि, कैलाश जैसे लोग बदलते नहीं हैं वह तो उससे बदला ले रहा है क्योंकि उसकी मां ने उर्वशी के लिए ही उसे धमकी दी थी कि, यदि वह उर्वशी को पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा तो वह उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर देंगी यह बात कैलाश के मन को चुभ गई थी। इसलिए वह उर्वशी के साथ जानवरों जैसा व्यवहार कर रहा है जबकि वही कैलाश पुष्पा के साथ बहुत प्यार से पेश आता है।
कुछ भी हो पर आशा की किरण बहुत प्रबल होती है वह व्यक्ति को सिर्फ़ अच्छा सोचने के लिए प्रेरित करती है यही उर्वशी कर रही थी अपना पत्नी धर्म निभा कर पर उसके जीवन में क्या घटने वाला है इससे बेखबर थी वह, अपनी मनमानी करने के बाद कैलाश ने उर्वशी को अपने से दूर कर दिया तभी उसका फ़ोन बजा उसनेे फोन उठाया उधर से क्या कहा गया वह तो उर्वशी को समझ में नहीं आया पर कैलाश की गुस्से भरी आवाज से वह समझ गई कि, मामला कुछ गम्भीर है।
कैलाश कह रहा था "ठीक है मैं आ रहा हूं देखता हूं उस अमीरजादे को उसकी इतनी हिम्मत वह मेरी चीज़ पर हाथ डालने की कोशिश कर रहा है वहां किसने बुलाया उसे जिसने बुलाया होगा मैं उसे भी नहीं छोडूंगा तुम मेरा इंतज़ार करो मैं तुरन्त पहुंच रहा हूं तुम कहीं जाना नहीं" इतना कहकर कैलाश ने कपड़े पहने और गुस्से में कमरे से बाहर निकल गया।
उर्वशी कैलाश के क्रोध को देखकर घबरा गई वह भी उसके पीछे-पीछे कमरे से बाहर आ गई कैलाश सीधे जानकी जी के कमरे में गया उसने अलमारी खोली और पिस्तौल निकाली जब वह पिस्तौल निकाल रहा था तो जानकी जी जाग गई उन्होंने कैलाश के हाथ में जब पिस्तौल देखी तो वह जोर से चीख पड़ी और घबराकर पूछा "कैलाश तुम पिस्तौल क्यों निकाल रहे हो"??
कैलाश ने कोई जबाव नहीं दिया और पिस्तौल लेकर कमरे से बाहर निकल गया जानकी जी की समझ में ही नहीं आ रहा था कि,यह क्या हो रहा है तभी उर्वशी घबराई हुई उनके कमरे में दाखिल हुई उसने बताया कि, किसी का फोन आया था और वह गुस्से में किसी को मारने की बात कर रहे थे।
यह सुनकर जानकी सिर पकड़ कर बैठ गई उसकी आंखों में आसूं आ गए फिर उन्होंने आलोक को फोन कर उसे बुलाया थोड़ी देर बाद आलोक वहां आ गया।
" चाचीजी कैलाश कहां जा सकता क्या आपको पता है जब-तक हमें कुछ पता नहीं होगा जब-तक हम उसे कहां ढूंढेंगे" आलोक ने कहा
"मुझे लगता है कि,वह पुष्पा के कोठे पर गया होगा क्योंकि मैंने सुना है कि कैलाश किसी का भी पुष्पा के कोठे पर जाना बर्दाश्त नहीं करता मेरे ख्याल से वह वहीं गया होगा चलो हम वहीं चले लेकिन पहले हमें पुलिस को सूचना दे देनी चाहिए" जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में कहा और पुलिस को सभी बातें बता दी पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा कि,'आप परेशान न हो और आपको ऐसी बदनाम जगह नहीं जाना चाहिए मैं वहां जा रहा हूं जैसा होगा मैं आपको ख़बर करूंगा"
इंस्पेक्टर की बात सुनकर जानकी जी ने पुष्पा के कोठे पर जाने का विचार त्याग दिया और घर में ही बेचैनी से टहलने लगी उर्वशी भी ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि, कोई अनहोनी न घटे पर पता नहीं क्यों उसका मन बार-बार अनहोनी की सूचना दे रहा था।
उधर कैलाश पुष्पा के कोठे पर पहुंचा तो उसने देखा की जतिन पुष्पा का हाथ पकड़कर उसे अपने पास खींच रहा था और पुष्पा अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।
" क्या बात है पुष्पा बाई आप तो बहुत नखरे दिखा रहीं हैं मैंने आपको अपनी बाहों में लेना चाहा तो तुमने मुझे बाहर फिकवा दिया यह तूने अच्छा नहीं किया पुष्पा बाई कैलाश की बांहों में तो बहुत आसानी से चली जाती हो मेरी बाहों में कांटे तो नहीं हैं जो तुम्हें चुभ रहें हों अब तो मैं तूझे पाकर ही रहूंगा तूने मेरा अपमान किया उस कैलाश के लिए" जतिन ने गुस्से में पुष्पा का हाथ मरोड़ते हुए लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा।
" जतिन बाबू अभी थोड़ी देर पहले ही मैंने आपको यहां से बाहर फिंकवा दिया था पर लगता है उतने अपमान से आपका मन नहीं भरा है छोड़िए मेरा हाथ नहीं तो ठीक नहीं होगा मैं अभी मौसी को बुलाती हूं" पुष्पा ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा
" मौसी को बुलाओगी बुलाओ उन्होंने ही तो मुझे तेरा गुरूर तोड़ने के लिए कहा है तू मौसी से क्या कहेगी" जतिन ने हंसते हुए कहा
कैलाश यह सब देखकर गुस्से से पागल हो गया और पिस्तौल निकालकर जतिन पर तान दी और गुस्से में चिल्लाया,
" जतिन छोड़ पुष्पा का हाथ वरना तूझे गोली मार दूंगा"
" मैंने भी हाथ में चूड़ियां नहीं पहनी हैं मुझे पिस्तौल दिखाकर डराने की कोशिश न कर कैलाश पिस्तौल मेरे पास भी है" यह कहते हुए जतिन ने भी अपनी पिस्तौल निकाल ली,
पुष्पा दोनों के हाथों में पिस्तौल देखकर डर गई,
" नहीं कैलाश बाबू आप पिस्तौल मुझे दीजिए" पुष्पा ने कैलाश के हाथ से पिस्तौल छिनते हुए कहा।
" हां हां पुष्पा बाई अपनी चूड़ियां भी कैलाश को पहना दो यह तो वैसे भी तुम्हारे आंचल में छुपा रहता है पिस्तौल चलाना मर्दों का काम है जो कोठे वाली के पहलू में छुपा रहे वह क्या पिस्तौल चलाएगा" जतिन ने कैलाश को भड़काते हुए कहा
कैलाश अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने जतिन पर पिस्तौल चला दी जतिन जल्दी से हट गया गोली जाकर दीवार पर लगी जतिन यही चाह रहा था उसने पहले ही पुलिस को फ़ोन कर झूंठ बोल दिया था कि, कैलाश उसको मारना चाहता है।जब कैलाश का निशाना चूका तो जतिन हंसने लगा कैलाश ने फिर दूसरी गोली मारी इस बार गोली जतिन के कंधे पर लगी वह दर्द से तिलमिला उठा और गुस्से में उसने भी कैलाश को गोली मार दी इससे पहले की गोली कैलाश तक पहुंचती पुष्पा कैलाश के सामने आ गई गोली सीधे पुष्पा के सीने के पार हो गई।
यह देखकर कैलाश पागल हो गया उसने दो गोलियां जतिन पर दागीं जतिन वहीं ढेर हो गया। गोलियों की आवाज सुनकर सुन्दरी बाई वहां पहुंची उसे देखते ही कैलाश ने गुस्से में कहा "दुष्ट औरत यह सब तेरे कारण ही हुआ है मैं तूझे भी जिंदा नहीं छोडूंगा" कैलाश ने पिस्तौल सुन्दरी बाई की ओर तानते हुए कहा।
सुन्दरी कैलाश के आगे गिड़गिड़ाकर अपने जान की भीख मांगने लगी पर कैलाश के सिर पर ख़ून सवार था वह कुछ भी सोचने समझने की स्थिति में नहीं था उसने ताबड़तोड़ फायरिंग कर सुन्दरी का काम भी तमाम कर दिया।
उसी समय वहां पुलिस पहुंच गई कैलाश को गिरफ्तार कर लिया गया जब यह ख़बर जानकी जी और उर्वशी को मिली तो दोनों स्तब्ध रह गई।
पुलिस स्टेशन में जब जानकी जी कैलाश से मिलने गई तो उन्होंने देखा कि, उसे अपने किए पर कोई अफ़सोस नहीं है उसने आज भी जानकी जी से व्यंग्यात्मक लहजे में ही बात की उसने कहा
" आज तो आप बहुत खुश होगी यह सोचकर कि,अब तो मुझे फांसी होगी मेरी वज़ह से जो शहर में आपकी बदनामी हो रही थी वह समाप्त हो जाएगी क्योंकि मैं जानता हूं कि,आप मुझे छुड़वाने की कोशिश नहीं करेगी क्योंकि आपको दुनिया वालों के सामने महान जो बनना है अगर मुझे फांसी हो गई या आजीवन कारावास हो गया।
लोग आपकी वाहवाही करेंगे पूरा शहर यही कहेगा कि, जानकी देवी ने अपने इकलौते बेटे को बचाने के लिए झूठ का सहारा नहीं लिया उन्होंने इंसाफ़ का साथ दिया और अपने बेटे को सज़ा दिलवाई अगर मुझे जेल होगी तो आपका सम्मान और बढ़ेगा तो जाइए न अपना सम्मान बढ़ाने के लिए मुझे फांसी पर लटकाने का रास्ता खोजिए और आज के बाद मुझसे मिलने यहां न आइएगा"
कैलाश ने गुस्से में कहा शायद य कैलाश की चाल थी जानकी जी को ब्लेकमैल करने की वह जानता था अगर वह उन्हें भड़कायेगा तो वह इस बात को गलत साबित करने के लिए उसको छुड़वाने की कोशिश करेगी और जैसा कैलाश ने सोचा था जानकी जी ने वैसा ही किया।
जानकी जी ने शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित वकील को कैलाश का केस सौंपा अदालत में केस चला दोनों पक्षों के वकीलों ने अपनी अपनी दलीलों को जज के सामने रखा जतिन के पिता ने भी अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जज ने कैलाश को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई।
कैलाश को जब सज़ा सुनाई गई तो अदालत में जानकी जी, उर्वशी और आलोक तीनों मौजूद थे कैलाश की सज़ा को सुनकर उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा उर्वशी को चक्कर आ गया वह गिरने ही वाली थी कि, आलोक ने उसे अपनी बांहों में सभांल लिया कैलाश यह देखकर गुस्से में तिलमिला उठा पर उसके हाथों में हथकड़ियां लगी हुई थी इसलिए वह कुछ कर नहीं सकता था वरना वह उर्वशी और आलोक का भी ख़ून कर देता।
आलोक और जानकी जी ने उर्वशी के चेहरे पर पानी के छिंटे मारे तब जाकर उसे होश आया। कैलाश यह सब देख रही थी यह सब देखकर उसके चेहरे पर जहरीली मुस्कुराहट फ़ैल गई उसने अदालत में ही चिल्लाकर कहा " मां अब आप अपनी बहू की शादी खुशी खुशी आलोक से कर दीजिए क्योंकि अब तो मैं उर्वशी के रास्ते से हट गया हूं वैसे भी अब उर्वशी मेरी तरफ़ से आज़ाद है कानून भी उसे तलाक़ दे देगा तुम सभी खुश रहो मैं जा रहा हूं"
कैलाश की बातें सुनकर जानकी जी का कलेजा फटा जा रहा था पर उनकी पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं था जब उसके बेटे ने ही उनकी पीड़ा को नहीं समझा तो दूसरे लोग क्या समझेंगे यही सोचकर जानकी जी ने अपना दर्द दिल में ही दफ़न कर लिया।
कैलाश को पुलिस जेल में लेकर चली गई जानकी जी थके कदमों से उर्वशी और आलोक के साथ अपने घर लौट आई घर आकर जानकी जी के सब्र का बांध टूट गया और वह फूट-फूट कर रोने लगी उर्वशी की तो दुनिया ही उजड़ गई थी अभी तो उसके हाथों की मेहंदी भी नहीं धूमिल पड़ी थी और उस पर इतना बड़ा दुःख का पहाड़ टूट पड़ा।
कहते हैं ना कि,समय हर घाव भर देता है धीरे-धीरे जानकी जी और उर्वशी के घाव भी भरने लगे सभी अपने दुखों को भुलाकर अपने कर्मों में लिप्त हो गए जीवन किसी के लिए नहीं रूकता।
समय का पंक्षी पंख फैलाए अपनी गति से उड़ता रहा उर्वशी ने जानकी जी और आलोक की सहायता से अपने आप को संस्था के कामों में लिप्त कर लिया।इस बीच उर्वशी ने महसूस किया कि, आलोक उसके नजदीक आने की कोशिश कर रहे हैं पर उर्वशी ने उन्हें एक सीमा से आगे आने की इजाजत नहीं दी क्योंकि उर्वशी आज भी कैलाश का इंतज़ार कर रही थी।
एक बार जानकी जी ने उर्वशी से कहा भी कि,वह आलोक से शादी कर ले क्योंकि आलोक तुम्हें प्यार करता है।तब उर्वशी ने कहा था मां मुझे लगता है कि, कैलाश भी मुझे प्यार करने लगे थे तभी वह गुस्से में मुझसे कह रहें थे कि, मैं आलोक से शादी कर लूं अब वह मेरे रास्ते से हट गए हैं। मां वह उनकी ईर्ष्या थी व्यक्ति किसी से जब प्यार करता है और उसके प्यार को कोई दूसरा हासिल करने की कोशिश करता है तो प्यार करने वाले के मन में ईर्ष्या आ जाती है कैलाश जी मुझे प्यार करने लगे थे इसलिए उन्होंने गुस्से में कहा था कि मैं आलोक जी से शादी कर लूं।
मां मुझे विश्वास है अब जब वह लौटकर आएगे तो वह पहले वाले कैलाश नहीं रहेंगे बिल्कुल बदल चुके होंगे हमारे जीवन में फिर से खुशियां आएंगी मैं उनका इंतज़ार करूंगी आज के बाद आप मुझसे शादी के विषय पर कोई बात नहीं करेगी मां" उर्वशी ने गम्भीर लहज़े में कहा
उसके बाद जानकी जी ने उर्वशी से कोई बात नहीं की समय का पंक्षी उड़ता रहा देखते ही देखते 20 साल का समय निकल गया आलोक ने भी शादी नहीं की वह आज भी उर्वशी से प्यार करता है उसके घर वालों ने अब उससे शादी के विषय में बात करना ही बंद कर दिया था।
मालिनी आलोक के शादी न करने का कारण जानती थी पर घर के दूसरे सदस्यों को इसके बारे में कुछ पता नहीं था।
उर्वशी आलोक के साथ संस्था के कार्य को आगे बढ़ाने में लगी हुई थी वह आलोक के मन की बात समझती थी पर उसके दिल में तो आज भी कैलाश की तस्वीर थी और उसे कैलाश के लौटने का इंतज़ार था।
आज सुबह से ही जानकी जी और उर्वशी घर को सजाने संवारने में लगी हुई थी रसोईघर में तरह-तरह के पकवान बन रहे थे घर को भी फूलों की लड़ियों से सजाया गया था क्योंकि आज कैलाश अपनी सज़ा काट कर अपने घर आने वाला था।
जानकी जी ने आरती का थाल सजाकर रखा हुआ था उनकी नजरें बार बार दरवाजे की ओर उठ रहीं थीं पर अभी तक जिसका इंतज़ार था वह आया नहीं था। तभी आलोक ने आकर बताया कि, कैलाश को कल ही रिहाई मिल गई थी यह सुनकर जानकी जी चौंक गई वह सोचने लगी अगर कैलाश कल ही जेल से रिहा हो गया था तो घर क्यों नहीं आया क्या वह अभी भी मुझसे नाराज़ है जबकि अभी थोड़े दिन पहले जब वह उससे जेल में मिलने गई थीं तो उसने कहा था कि,अब वह घर आने के लिए एक-एक दिन गिन रहा है तो फिर वह जेल से छूटने के बाद घर क्यों नहीं आया।
तभी बाहर से माली दौड़ता हुआ आया और घबराई हुई आवाज में बोला "मालकिन छोटे मालिक आ गए हैं पर वह अकेले नहीं हैं उनके साथ उनकी दुल्हन भी हैं लगता है कि,वह मंदिर में शादी करने के बाद सीधे यहां आ रहें हैं"
" माली की बात सुनकर उर्वशी के पैर लड़खड़ा गए जबकि जानकी जी ने गुस्से में कहा " क्या बकवास कर रहे हो ऐसा कभी नहीं हो सकता"
" ऐसा हो गया है मां मैं सच में शादी करने के बाद अपनी पत्नी के साथ अपने घर में आया हूं क्या आप अपने बेटे बहू की आरती नहीं उतारेगी"
कैलाश ने बेशर्मी से हंसते हुए पूछा
जानकी जी स्तब्ध खड़ी रह कर कैलाश को देखती रहीं उनके सामने कैलाश अपने से आधी उम्र की कमसिन लड़की के साथ खड़ा हुआ था जिसके गले में वरमाला और मंगलसूत्र था और मांग में सिंदूर ,
उर्वशी जो की श्रृंगार करके मांग में सिंदूर लगाकर अपने पति का वर्षों से इंतज़ार कर रही थी आज जब उसका इंतज़ार पूरा हुआ तो उसे पति का प्यार नहीं इंतज़ार के बदले पति से सौतन का उपहार मिला।
जानकी जी कुछ देर ऐसे ही खड़ी रही फिर अचानक उनके चेहरे पर कठोरता दिखाई दी पर तुरंत मुस्कान फ़ैल गई उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा " कैलाश आज मैं बहुत खुश हूं तुम इतने वर्षों बाद अपने घर आए हो वह भी मेरी बहू के साथ मैं तुम्हारा स्वागत करतीं हूं ठहरो पहले मैं तुम्हारी आरती उतारी हूं उसके बाद घर के अंदर आना"
जानकी जी की बात सुनकर जहां कैलाश के चेहरे पर धूर्तता की मुस्कान दौड़ गई वहीं आलोक का चेहरा गुस्से में लाल हो गया और उर्वशी को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
उर्वशी ने कहा कुछ नहीं बस चुपचाप जानकी जी को देखती रही उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह एक जिंदा लाश हो क्योंकि उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे वह निर्विकार था।
जानकी जी ने कैलाश और उस लड़की की आरती उतारी उन्हें अंदर बुलाया श्यामा से चाय-नाश्ता मंगवाया कैलाश और उस लड़की का बहुत स्वागत-सत्कार किया फिर उनसे कहा कि, "तुम लोग अपने कमरे में जाकर आराम करो पर कमरे में जाने से पहले मुझे एक बात बताओ कि, तुमने उर्वशी के रहते हुए दूसरी शादी क्यों की यदि उर्वशी चाहे तो तुम्हें फिर जेल पहुंचवा सकती है मुझे फिर तुमसे दूर रहना पड़ेगा तुमने ऐसा करने से पहले मुझे कुछ बताया भी नहीं तुम्हें मुझे तो बताना चाहिए था" जानकी जी ने बहुत अपनेपन से पूछा
" मां मैंने सोचा आप यह बात जानकर नाराज़ हो जाएगी क्योंकि मैंने जेल से निकलकर कामिनी से शादी कर ली थी मुझे जेल से रिहा हुए तो एक महीना हो गया है पर मैंने जेलर साहब से कहा था कि,वह किसी को यह बात बताएं नहीं कि मुझे एक महीने पहले रिहा कर दिया गया है " कैलाश ने हंसते हुए अकड़ कर कहा क्योंकि मैं जेल से निकलकर सीधे पुष्पा बाई के कोठे पर जाना चाहता था क्योंकि मैंने पुष्पा के रहते उसे वचन दिया था कि मैं हमेशा उसकी छोटी बहन कामिनी का ख्याल रखूंगा इसलिए मैंने कामिनी से शादी कर ली इस कारण मैं घर नहीं आना चाहता था अगर मैं यहां आ जाता तो आप मुझे कामिनी से शादी नहीं करने देती क्योंकि कामिनी का सम्बन्ध भी कोठे से ही है।
जानकी जी बहुत ध्यान से कैलाश की बातें सुन रहीं थीं उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया तभी वहां उर्वशी आ गई उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था।
" कैलाश बाबू मुझे आपसे कुछ सवाल पूछने हैं" उर्वशी ने गम्भीर लहज़े में कहा।
" मैं तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दूंगा मेरा अब तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं है मैंने कभी भी तुम्हें अपनी पत्नी नहीं समझा था अब तो मुझे तुमसे कोई भी मतलब नहीं है क्योंकि अब तुम मेरे लिए बेकार का सामना बन गई हो। अब तुम मुझे कोई खुशी नहीं दे सकती मैं पिता बनना चाहता हूं वह सुख तो अब तुम देने से रही क्योंकि अब तुम्हारी उम्र मां बनने की नहीं रही हां तुम मेरे बच्चे की आया जरूर बन सकती हो अब तुम बूढ़ी हो गई हो मुझे पत्नी का सुख नहीं दे सकती इसलिए तो मैंने एक जवान लड़की से शादी कर ली है जो मुझे पत्नी का सुख भी देगी और बाप बनने की खुशी भी जो तुम मुझे कभी नहीं दे सकतीं इसलिए अब तुम्हारा मेरे जीवन में कोई स्थान नहीं है। तुम अब इस घर में मेरी पत्नी के रूप में नहीं रह सकती अगर तुम रहना चाहती हो तो इस घर की बहू नहीं नौकरानी बनकर रह सकती हो तुम अब बूढ़ी हो गई हो कहां जाओगी चाहो तो इस घर के एक कोने में रह सकती हो" कैलाश ने अहंकार में भर कर कहा क्योंकि वह यह जान चुका था कि,अब उसकी मां जानकी जी उसके साथ हैं।
उर्वशी कैलाश के मुख से अपने लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों को सुनकर स्तब्ध रह गई उसने चौंककर जानकी जी की तरफ़ देखा उन्होंने उर्वशी की ओर से मुंह मोड़ लिया। जानकी जी का यह नया रूप देखकर उर्वशी का कलेजा फट गया।
आलोक भी अपनी चाचीजी के व्यवहार को समझ नहीं पा रहा था उसके चेहरे पर आक्रोश दिखाई दे रहा था।
उर्वशी के चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कुराहट फ़ैल गई उर्वशी वहां से जाने के लिए मुड़ी तभी वहां वकील साहब आ गए वकील साहब को देखकर उर्वशी समझ गई कि, जानकी जी ने वकील साहब को बलाया होगा हो सकता है मुझे तलाक़ दिलवाने के लिए।
" मैडम मैंने आपके अनुसार कागज़ात तैयार कर लिया है यह लीजिए तलाक़ के कागज़ तैयार हो गए हैं अब आप कैलाश जी और उर्वशी जी के हस्ताक्षर ले लीजिए उसके बाद उर्वशी जी कैलाश जी की पत्नी नहीं रहेगी" वकील ने कहा
वकील की बात सुनकर कैलाश का चेहरा खुशी से चमकने लगा उसने जल्दी से बिना पढ़े सभी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिया जानकी जी ने वही कागजात उर्वशी की तरफ़ बढ़ा दिया उर्वशी ने भी चुपचाप हस्ताक्षर कर दिया।
जब दोनों के हस्ताक्षर हो गए तो जानकी जी के चेहरे पर अचानक कठोरता दिखाई देने लगी।
" वकील साहब मैंने जो वसीयत बनवाई है उसको पढ़कर हमारे बेटे कैलाश को सुना दो वह बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है उसके इंतज़ार को ख़त्म कीजिए वकील साहब" जानकी जी ने गम्भीर मुद्रा में कठोर शब्दों में कहा
उनकी सर्द आवाज सुनकर कैलाश के साथ सभी चौंक गए।
" मिस्टर कैलाश जानकी जी ने आपको अपनी जायदाद और अपने जीवन से बेदखल कर दिया है अब आपका इस घर और जानकी जी की धन-दौलत पर कोई अधिकार नहीं रहा उन्होंने अपनी सभी ज़मीन जायदाद धन-दौलत अपनी बहू उर्वशी जी के नाम कर दिया है।आप उर्वशी जी को तलाक़ दे चुके हैं इसलिए उर्वशी जी के पास जो जमीन जायदाद अब है उस पर आपका कोई अधिकार नहीं है आप अभी इस घर से बाहर निकल जाइए दोबारा कभी भी आप इस घर में क़दम नहीं रख सकते जानकी जी ने आपसे अपनी चिता में अग्नि देने का अधिकार भी छिन लिया है" वकील ने वसीयतनामे को पढ़कर सुनाया
वसीयत सुनकर कैलाश के पैरों तले जमीन खिसक गई उसने घबराकर हकलाते हुए कहा,
" मां यह सब क्या है आप ऐसा कैसे कर सकतीं हैं मैं आपका इकलौता बेटा हूं अभी थोड़ी देर पहले तो आप मेरी बातों का समर्थन कर रहीं थीं अब आपको क्या हो गया इस घर और जायदाद पर मेरा भी अधिकार है। आपने जो वसीयत की है इसके खिलाफ मैं कोर्ट में जाऊंगा आपको मेरा हिस्सा मुझे देना ही पड़ेगा मैं यह घर छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा" कैलाश ने आक्रोशित होकर चिल्लाते हुए कहा।
" यह जायदाद मेरे पिताजी ने मुझे दी थी इस पर किसी का कोई अधिकार नहीं है अपनी इस जायदाद को मैं जिसे चाहूं दूं यह तुम्हारे पिताजी की सम्पत्ति नहीं हैं यह सिर्फ़ मेरी सम्पत्ति है इसके लिए तुम हाईकोर्ट जाओ या सुप्रीम कोर्ट जाओ वहां से भी तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा मैं जब चाहूंगी तभी तुम्हें मेरी जायदाद में कुछ मिल सकता है अन्यथा नहीं। तुमने अभी थोड़ी देर पहले उर्वशी से कहा कि,वह तुम्हारे काबिल नहीं है वह तुम्हें बच्चा नहीं दे सकती पर इसकी क्या गारंटी है कि,यह औरत जिसे तुम अपनी पत्नी कह रहे हो वह तुम्हें बच्चा दे ही देगी हो सकता है कि, तुम ही इस काबिल न हो उर्वशी बूढ़ी हो गई है वह तुम्हारे लायक़ नहीं है।
यह तू नहीं तेरा गंदा खून बोल रहा है जैसा तेरा बाप नीच और अय्याश था तू भी वैसा ही है मैंने तूझ जैसे जानवर को अपने बच्चे जैसा पाला यह मेरी भूल थी। मैंने अपने देवता जैसे पति और सास-ससुर से झूंठ बोला की तूझे मैंने जन्म दिया पर तूझे मैंने अपनी कोख से जन्म नहीं दिया तू मेरी बहन का पाप है तेरे बाप ने अपना गंदा अंश मेरी बहन की कोख में डाल दिया और ख़ुद मुंह छुपा कर भाग गया मैंने अपनी बहन और माता-पिता की इज्ज़त बचाने के लिए तुझे अपना बेटा बना लिया पर मैं यह भूल गई कि, गंदगी को सिर पर रखने से वह चंदन नहीं बन सकती।
तूने क्या कहा कि, उर्वशी तेरे काबिल नहीं हैं अरे राक्षस तू उस देवी के काबिल नहीं है जिस देवी ने इतने सालों तक तेरा इंतज़ार किया उसे तू गाली दे रहा है अरे तूझ जैसा व्यक्ति तो नफ़रत के भी लायक़ नहीं है निकल जा मेरे घर से आज के बाद कभी अपनी मनहूस सूरत मुझे नहीं दिखाना वरना मैं फ़िर से तूझे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दूंगी।
आज तेरी आंखों के सामने एक काम मैं और करने जा रही हूं जिसे देखकर तू तिलमिला जाएगा जानना चाहेगा कि,वह कौन-सा सा काम है चल मैं ही बता देती हूं अपनी बहू उर्वशी का विवाह मैं आलोक के साथ करने जा रही हूं" जानकी जी ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ बताया।
" मां जी मैं•••• उर्वशी कुछ और कहती उससे पहले ही जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में कहा "नहीं उर्वशी आज मैं कुछ भी नहीं सुनूंगी तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी तुमने देखा कि, तुम्हारे इस नीच पति ने तुम्हारे इंतज़ार की क्या कीमत दी है वह है विश्वासघात उसने तुम्हारे त्याग का यह सिला दिया तुम्हारे लिए एक सौतन ले आया।
अब आलोक को भी उसकी तपस्या का फल मिलना चाहिए वह आज तक तुम्हारे प्यार के इकरार का इंतज़ार कर रहा है तुम भी उसे उसके इंतज़ार की कीमत दे दो ऐसा प्यार करने वाला प्रेमी और पति बहुत भाग्यशाली लोगों के नसीब में होता है वह भाग्यशाली औरत तुम हो उर्वशी यह मेरी इच्छा भी है और आदेश भी यदि तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं घर छोड़कर कहीं दूर चली जाऊंगी" जानकी जी ने कठोरता से कहा।
उर्वशी जानकी जी की बात सुनकर मौन हो गई और अपना सिर झुका लिया यह उसकी स्वीकृति थी यह देखकर जानकी ने खुश होकर कहा " आलोक खड़ा खड़ा देख क्या रहा है अपनी दुल्हन की मांग सिंदूर से सजा दे"
आलोक के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कुराहट फ़ैल गई तभी जानकी जी ने सिंदूर की डिबिया आगे बढ़ा दी आलोक ने मुस्कुराते हुए उर्वशी की मांग में सिंदूर भर दिया जानकी जी श्यामा और सभी नौकर नौकरानियां उन दोनों प्रेमियों पर फूलों की बरसा करने लगे।
कैलाश यह सब देखकर स्तब्ध रह गया वह कामिनी को लेकर बाहर की ओर जाने लगा उसे अभी भी उम्मीद थी कि,शायद जानकी जी उसे रोक लेगी पर ऐसा नहीं हुआ।
तभी जानकी जी की कठोर आवाज सुनाई दी
" दरबान आज के बाद किसी भी अंजान व्यक्ति को घर के अंदर घुसने नहीं देना तुमने आज जिन व्यक्तियों को बिना मेरी अनुमति के घर के अंदर आने दिया है उन्हें तुरंत मेरे घर से बाहर निकालो उनकी उपस्थिति में मुझे घुटन महसूस हो रही है"
जानकी जी की बात सुनकर कैलाश घर के बाहर निकल गया और अन्दर आलोक उर्वशी के साथ जानकी जी के पैरों में आशीर्वाद लेने के लिए झुक गया।बाहर दुःख के बादल छाए थे और अंदर घर खुशियों से महक रहा था।
समाप्त
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
29/7/2021