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इंतज़ार की कीमत भाग 9

25 नवम्बर 2021

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इंतज़ार की कीमत भाग 9

   जानकी अतीत की गहराइयों में उतरती चली गई जानकी जी के पिता शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित बिजनेस मैन थे उनकी दो बेटियां थी जानकी और निर्मला दोनों कालेज में पढ़ रहीं थी दोनों ही आधुनिकता के रंग में पूरी तरह रंगी हुई थी। निर्मला कुछ ज्यादा ही आधुनिक थी आधुनिक कपड़े पहनना क्लबों पार्टियों में जाना अपने कालेज के दोस्तों के साथ विशेषकर पुरुष दोस्तों के साथ टूर पर जाना उसका शौक था। निर्मला की आदतों का असर जानकी पर भी पड़ने लगा था। निर्मला का लड़कों के साथ घूमना फिरना जब ज्यादा बढ़ने लगा तो शहर में जानकी के पिता की बदनामी होने लगी तब जानकी के पिता धनश्याम जी ने अपनी दोनों बेटियों पर अंकुश लगाना शुरू किया तब जानकी और निर्मला इसका विरोध करने लगी लेकिन पिता का क्रोध देखकर जानकी तो संभल गई पर निर्मला ने विरोध करना शुरू किया जब पानी सिर से ऊपर चला गया तो घनश्याम जी ने अपनी पसंद के लड़के से निर्मला का विवाह पक्का कर दिया जब यह बात निर्मला को पता चली तो उसने शादी करने से मनाकर दिया और कहा कि वह अपने पसंद के लड़के से शादी करेगी।पर घनश्याम जी इसके लिए तैयार नहीं हुए क्यों वह उस अमीर अय्याश लड़के को जानते थे। इसलिए उन्होंने निर्मला को सख्ती से मना कर दिया कि,वह उस लड़के से उसका विवाह नहीं करेंगे घनश्याम जी ने अपनी पसंद के लड़के से निर्मला की शादी तय कर दिया था शादी की तैयारियां जोर-शोर से प्रारम्भ हो गई। लेकिन निर्मला  शादी के दिन ही अपने प्रेमी के साथ भाग गई निर्मला के घर से भागने के कारण घनश्याम जी और उनके परिवार की बहुत बदनामी हुई। उसके बाद जानकी के विवाह में भी अड़चन आने लगी शहर का कोई भी शरीफ़ परिवार घनश्याम जी के परिवार से रिश्ता जोड़ने के लिए तैयार नहीं था।

तब घनश्याम जी को अपने कालेज के दोस्त बलराम का ध्यान आया जिसका  परिवार गांव में रहता था कालेज के बाद दो चार बार ही दोनों की मुलाकात हुई थी तभी घनश्याम को पता चला था कि बलराम का लड़का है जो जानकी से उम्र में थोड़ा बड़ा है। बलराम की याद आते ही घनश्याम के मन में आशा की किरण जागी की अगर जानकी की शादी बलराम के बेटे से कर दी जाए तो ठीक होगा क्योंकि दूर गांव में उनके परिवार की बदनामी का पता नहीं चलेगा यह सोचकर घनश्याम बलराम के गांव गए वहां बलराम के परिवार से मिलकर उन्हें बहुत ख़ुशी हुई क्योंकि बलराम के पिता उनकी पत्नी और बेटा सुरेश सभी बहुत सीधे-सादे थे। घनश्याम ने जानकी के रिश्ते की बात की और कहा की उनका पूरा बिजनेस सुरेश को ही देखना है पर बलराम ने सख़्ती से कहा कि तुम्हारे जिंदा रहते हम तुम्हारी जायदाद नहीं लेंगे जब तुम नहीं रहोगे तो फिर तुम्हारी बेटी उस जायदाद की मालकिन होगी मेरा बेटा उसका संरक्षण करेगा लेकिन तुम्हारे जीते-जी हमें तुम्हारी जायदाद नहीं चाहिए।

अपने दोस्त बलराम की बात सुनकर घनश्याम उनकी शराफ़त देखकर स्तब्ध रह गए की आज भी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो धन-दौलत से ज्यादा रिश्तों को अहमियत देते हैं।

  घनश्याम जी ने यह रिश्ता पक्का कर दिया जानकी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी क्योंकि वह गांव में नहीं रहना चाहती थी पर अपने पिता के क्रोध के आगे उसे झुकना पड़ा उसकी शादी सुरेश से हो गई। बलराम ने घनश्याम से कहा शादी में मेरे यहां बहू की विदाई नहीं होती हम गौने की रस्म करके बहू को विदा कराते हैं लेकिन आपकी बेटी छोटी नहीं है बड़ी है मेरा बेटा भी युवा है इसलिए गौने की रस्म 15 दिन बाद ही कर लेंगे घनश्याम ने बलराम की बात मान ली क्योंकि उन्हें बलराम को नाराज़ नहीं करना था शादी के 15 दिन बाद बलराम अपनी बहू जानकी को विदा कराने शहर गए। दूसरे सेदिन जानकी शहर की चकाचौंध से दूर  अपने पति के साथ अपनी ससुराल के लिए विदा हुई विदाई के समय वह फूट-फूट कर रो रही थी। जानकी को रोते देखकर सुरेश और बलराम बहुत दुखी थे उन्होंने घनश्याम से कहा आप जब चाहें अपनी बेटी को अपने पास बुला सकते हैं हम जानते हैं यह आपकी इकलौती बेटी है इसके बिछड़ने का दुःख आप लोगों को होगा। घनश्याम ने अपनी दूसरी बेटी निर्मला के विषय में उन्हें कुछ नहीं बताया था और जानकी को भी सख्ती से मनाकर दिया था कि,वह भी अपनी ससुराल में निर्मला का कोई जिक्र कभी न करे।

  पर जानकी के रोने का कारण अपने माता-पिता से बिछड़ने के लिए नहीं था वह तो इसलिए रो रही थी कि अब उसे शहर की रंगीनियों से दूर गांव में रहना पड़ेगा।

  ससुराल पहुंचकर जानकी का बहुत भव्य स्वागत हुआ सभी ने वहां बहुत प्यार और अपनेपन से उसका स्वागत किया रात को जानकी को उसके सुहागकक्ष में पहुंचा दिया गया कमरे में कोई सजावट नहीं थी लेकिन कमरा बहुत साफ-सुथरा और व्यवस्थित था। जानकी के मन में सुहागरात को लेकर कोई भी सुनहरे सपने नहीं पल रहे थे, क्योंकि यह शादी उसकी इच्छा के विरुद्ध हुई थी लेकिन परम्परा को निभाते हुए वह घुंघट काढ़कर पलंग पर बैठी हुई थी तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और कुछ औरतों ने हंसते हुए सुरेश को कमरे के अंदर धकेल दिया सुरेश कमरे में आ गया उन औरतों ने मज़ाक करते हुए दरवाजा बंद कर दिया सुरेश ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद किया और पलंग की ओर बढ़ा जानकी के दिल की धड़कन तेज हो गई••••

क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
17/7/2021


Jyoti

Jyoti

क्या बात

29 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया

29 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌 👌

26 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
इंतज़ार की कीमत
5.0
इस उपन्यास में एक औरत की सहनशक्ति को दर्शाते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि,एक औरत को अपने पति पर विश्वास करना चाहिए पर अंधविश्वास नहीं क्योंकि किसी भी रिश्ते पर किया गया अंधविश्वास आगे चलकर स्वयं के ही विश्वास को खंड-खंड कर देता है जो एक औरत की आत्मा तड़प कर अंदर-ही-अंदर छटपटा उठती है और उस तड़प की आवाज उसके अतिरिक्त दूसरा कोई सुन ही नहीं पाता।
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