इंतज़ार की कीमत भाग 1
उर्वशी अपने घर के बाहर बने छोटे से बागीचे में ग़ुलाब, और बेला के फूलों को ध्यान से देख रही थी जिसकी सुन्दरता उर्वशी की आंखों को बहुत सुकून दे रही थी।वह ग़ुलाब की सुन्दरता और बेला की महक में इतना खो गई कि, उसे अपने आसपास का भी होश नहीं रहा तभी किसी के हाथों को अपने कंधे पर महसूस कर उर्वशी चौंक गई।
" यहां ग़ुलाब बेला के फूलों के बीच बैठकर किसे याद कर रही हो बन्नो रानी"? आने वाली ने हंसते हुए पूछा
" नंदनी तू कब आई मुझे पता ही नहीं चला" ? उर्वशी ने नंदनी का हाथ पकड़कर अपने बगल में बैठाते हुए पूछा।
" मैं यहां तुम्हें एक खुशखबरी सुनाने आई हूं" नंदनी ने रहस्यमई हंसी हंसते हुए कहा।
" खुशखबरी!! कहीं तेरा गौना तो नहीं पक्का हो गया "? उर्वशी ने नंदनी को छेड़ते हुए पूछा।
" तूने कैसे जाना" नंदनी ने शरमाते हुए कहा
" तुम्हारे चेहरे पर जो शर्म की लाली फैली हुई है उसे देखकर कोई भी बता देगा की नंदनी जी अपने पिया के घर जाने की बात सुनकर कितनी बावरी हो गई हैं कि, उन्हें कुछ भी होश नहीं है अपनी आंखों से अपने पिया का संदेश सबसे कहती फिर रही हैं" उर्वशी ने फिर नंदनी को छेड़ा।
" अच्छी जी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जब मैं यहां आई थी तो तुम्हें भी तो कोई होश नहीं था अपने प्रियतम की यादों में खोई हुई थीं और अपने मनमीत को गुलाब और बेला के फूलों में ढूंढ रही थीं" नंदनी ने भी उर्वशी की खिंचाई करते हुए कहा।
फिर दोनों सखियां खिलखिला कर हंसने लगी उनको हंसता हुआ देखकर उर्वशी की मां पार्वती जी ने गुस्से में कहा "अरे लड़कियों ससुराल जाने वाली उम्र हो गई है और बचपना अभी तक नहीं गया लड़कियों को इतनी जोर से नहीं हंसना चाहिए तुम्हें दूसरे के घर जाना है पता नहीं इन छोरियों को कब अक्ल आएगी"
पार्वती जी की बात सुनकर दोनों सहेलियां मुंह पर हाथ रखकर अपनी हंसी दबाने की कोशिश करने लगी। फिर उर्वशी ने पूछा " मां क्या लड़कियों को हंसने और ख़ुश होने का अधिकार नहीं है"
पार्वती जी कुछ कहती तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और पार्वती जी से कहने लगा " चाची उर्वशी दीदी की सास आ रही हैं मैंने अभी उन्हें देखा है वह गाड़ी में बैठकर यहीं आ रही हैं"
" तुम मुझे चिढ़ा रही थी न अब देख तेरी ससुराल से भी तेरे गौने की बात करने तेरी सास आ रही हैं अब तू सास की सेवा कर मैं चली अपने घर" नंदनी ने हंसते हुए कहा और वहां से चली गई।
नंदनी के जाने के कुछ क्षण बाद ही उर्वशी की सास जानकी जी की गाड़ी आकर खड़ी हो गई।
पार्वती जी ने आगे बढ़कर जानकी जी का स्वागत किया " हमारे अहोभाग्य जो आपके चरण हमारे गरीब घर में पड़े समधिन जी" पार्वती जी ने हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा।
पार्वती जी ने अपनी समधिन जानकी जी की सेवा में जमीन आसमान एक कर दिया।
पार्वती जी की सेवा को देखकर जानकी जी ने कहा " पार्वती जी आपसे मैं कुछ कहना चाहती हूं" ऐसा कहते हुए जानकी जी के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे ।
" मुझे पता है समधिन जी आप उर्वशी के गौने का प्रस्ताव लेकर मेरे घर आई हैं" पार्वती जी ने हंसते हुए कहा।
" नहीं समधिन जी आपको गलतफ़हमी हुई है मैं गौने का प्रस्ताव नहीं लाई हूं बल्कि••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
12/7/2021