इंतज़ार की कीमत भाग 2
जानकी जी की बात सुनकर पार्वती जी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया उनके मन में तरह-तरह आशंका उठने लगी पार्वती जी ने डरते हुए धीरे से पूछा "आप गौने की बात करने नहीं आई हैं तो आपके आने का क्या कारण है आप बिना किसी विशेष कारण के नहीं आएगी इतना तो मैं समझती ही हूं"
" हां मेरे यहां आने का विशेष ही कारण है मैं यहां गौना मांगने नहीं बल्कि इस शादी को ख़त्म करने आई हूं" जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।
जानकी जी की बात सुनकर पार्वती जी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई दरवाजे की ओट में खड़ी उर्वशी ने जब अपनी सास की बात सुनी तो उसका भी दिल बैठ गया।उसकी आंखों में तैरने वाले हसीन सपने धरासाई हो गए आंखों के आगे अंधेरा छा गया वह गिरने ही वाली थी पर उसने दरवाज़े को पकड़ लिया और आगे की बात कान लगाकर सुनने लगी।
" समधन जी हमसे ऐसी क्या गलती हो गई जो आप मेरी बेटी को अपने घर नहीं ले जाना चाहतीं मेरी बेटी की शादी पूरे रीति-रिवाज के साथ आपके बेटे से हुई है यह भाई साहब और मेरे पति ने अपने सामने की थी। शादी के समय दोनों बच्चे छोटे से शादी का सही मतलब नहीं समझते थे इसलिए मेरी बेटी की विदाई नहीं हुई थी और उस समय यही निर्णय लिया गया था कि,जब बच्चे बड़े हो जाएगे तो गौने की रस्म के साथ मेरी बेटी अपनी ससुराल जाएगी।
आज दोनों घर के मुखिया इस दुनिया में नहीं हैं तो यह जिम्मेदारी मेरी और आपकी है पर आप अब इस रिश्ते को तोड़ने की बात कर रही हैं।आप तो बेटे की मां हैं आपका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर हमारी तो समाज में बहुत बदनामी होगी हम कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रह जाएंगे। अगर आपने गौना नहीं किया तो मेरी बेटी न सुहागन रहेगी न विधवा वह तो सुहागिन विधवा बनकर रह जाएगी। आपने मेरी बेटी के बारे में ऐसा क्या सुन लिया कि,आप उसको अपनी बहू नहीं स्वीकार कर पा रही हैं मेरी उर्वशी सीता और सावित्री तो नहीं है पर उससे कम भी नहीं है वह बहुत सीधी और सरल है उसकी सुन्दरता के विषय में तो पूरे गांव को पता है कि,वह अप्सरा की तरह सुन्दर है। मैं आपके हाथ जोड़ती हूं मेरी बेटी को अपनी बहू स्वीकार कर लीजिए अब तो उसका दूसरा विवाह भी नहीं हो सकता वह अपना पूरा जीवन अकेले कैसे काटेगी दुनिया की गंदी निगाहों से मैं उसे कैसे बचा पाऊंगी आप इतना बड़ा अन्याय मेरी बेटी के साथ न कीजिए वरना वह जीते-जी मर जाएगी जानकी बहन अगर दान-दहेज की कोई बात है तो मैं अपनी बेटी की खुशी के लिए अपना सबकुछ बेच दूंगी पर आपकी सभी मांग पूरी करूंगी" पार्वती जी जानकी जी के कदमों में झुककर फूट-फूट कर रो पड़ी।
अपनी मां को रोता हुआ देखकर उर्वशी से रहा नहीं गया वह दौड़कर अपनी मां के पास आ गई वह अपनी मां को अपनी सास के कदमों से उठाती उससे पहले जानकी जी ने पार्वती जी को कंधे से पकड़कर उठा लिया और दुखी स्वर में बोली " पार्वती बहन यह आप क्या कर रहीं हैं आप मेरे कदमों में क्यों झुक रहीं हैं झुकना तो मुझे आपके कदमों में चाहिए"? ऐसा कहते हुए उनकी आवाज़ दर्द में डूबी हुई थी और आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी।
जानकी जी को रोता हुआ देखकर उर्वशी और पार्वती दोनों के चेहरे पर आश्चर्य के भाव दिखाई देने लगे••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
13/7/2021