इंतज़ार की कीमत भाग 21
जानकी जी ने उर्वशी को अपने से अलग किया और कहा अपने आंसू पोंछ लो, तुम जानकी देवी जैसी दृढ़संकल्प वाली औरत की बहू हो तुम्हें भी मेरी जैसी बनना होगा अपने जैसी आत्मविश्वासी औरत तुम्हें मैं बनाऊंगी अब तैयार होकर नीचे डाइनिंग हॉल में आओ नाश्ता करने के बाद हम दोनों को संस्था चलना है वहां के लोगों से तुम्हें मिलवाना है मालिनी तुम भी मेरे साथ चलना लौटते समय मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगी अभी अकेली न जाना" जानकी जी ने मुस्कुराते हुए उर्वशी और मालिनी को देखते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गई।
जानकी जी के जाते ही मालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा अब जल्दी से तैयार हो जाओ तुम्हारे दुःख भरे दिन बीते रे बाबा कहते हुए कमरे से बाहर निकल गई मालिनी के कहने के अंदाज़ को देखकर उर्वशी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।
थोड़ी देर बाद उर्वशी नीचे डाइनिंग हॉल में जब पहुंची तो उसके सौंदर्य को देखकर सभी स्तब्ध रह गए आज उर्वशी ने कांजीवरम की गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी माथे पर मैरून बिंदी मैरून लिपस्टिक हाथों में मैचिंग चूड़ियां खनक रही थीं गले में रानी हार उर्वशी का व्यक्तित्व किसी महारानी की तरह गर्वीला लग रहा था उर्वशी के चेहरे पर आज आत्मविश्वास की चमक भी दिखाई दे रही थी क्योंकि वह आज गांव की निर्बल उर्वशी नहीं जानकी देवी की बहू उर्वशी थी।
" आओ उर्वशी आज तुम्हारे चेहरे की चमक और आत्मविश्वास देखकर मैं बहुत खुश हूं अपने आत्मविश्वास को कभी टूटने नहीं देना" जानकी जी ने मुस्कुराते हुए कहा
" औरतों का आत्मविश्वास टूटना भी नहीं चाहिए वरना वह स्वयं भी टूटने लगती हैं मैं ठीक कह रहा हूं न चाचीजी" तभी अन्दर आते हुए आलोक ने कहा उसकी नज़र जब उर्वशी के चेहरे पर पड़ी तो वह उसके सौंदर्य को देखता रह गया पर जल्दी से अपने मनोभावों को छुपाकर वह अपनी भाभी मालिनी से बात करने लगा आलोक के चेहरे के भाव को मालिनी ने देख लिया था वह मन-ही-मन सोच रही थी काश उर्वशी आलोक की पत्नी होती तो आलोक उसके जीवन को खुशियों से भर देता पर ईश्वर के आगे किसका वश चलता है।
" चाचीजी आप लोग कहीं जा रहें हैं क्या"? आलोक ने उर्वशी को कनखिंयो से देखते हुए जानकी जी से पूछा
" हां आलोक हम लोग संस्था जा रहें हैं तुम भी चलो मैं ड्राइवर को मनाकर देती हूं तुम कार चलाकर हमें लेकर चलना" जानकी जी ने कहा
आलोक तो यही चाहता ही था उसने तुरंत हामी भर दी और थोड़ी देर बाद कार शहर की सड़क पर दौड़ रही थी आलोक ने कार का मिर्र ऐसा सेट कर लिया कि, उसे उर्वशी का चेहरा दिखाई दे उर्वशी इन बातों से बेखबर कार से बाहर देख रही थी जबकि उसे पता ही नहीं था कि, आलोक उसके सौंदर्य को लगातार निहार रहा है।
थोड़ी देर बाद कार संस्था के कंपाउंडर में खड़ी थी जानकी जी के साथ सभी कार से बाहर आए संस्था की सभी लड़कियां वहां हाथ में फ़ूल लिए उर्वशी के स्वागत के लिए पहले से ही खड़ी हुई थीं।
उर्वशी वहां सभी से मिलकर बहुत खुश हुई उसे अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया उसने जानकी जी से कहा " मां जी आप ठीक कह रही थीं अब मैं हर दिन यहां आकर इस संस्था को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दूंगी"
" चाचीजी अगर आप कहें तो मैं भी इस संस्था से जुड़ना चाहता हूं" आलोक ने कहा वह इसी बहाने उर्वशी के निकट रहना चाहता था जबकि उसे पता था कि उर्वशी किसी और की अमानत है फिर भी उसे उर्वशी का सानिध्य अच्छा लगने लगा था।
" ठीक है अगर तुम हमारे काम में हाथ बंटाने लगो तो हमें बहुत खुशी होगी क्योंकि कुछ काम ऐसे होते हैं जो मुझे करने में परेशानी होती है अगर तुम यहां काम करने लगोगे तो मुझे बहुत बड़ा सहारा मिल जाएगा" जानकी जी ने ख़ुश होकर कहा।
आलोक भी खुश हो गया क्योंकि उसको मनमांगी मुराद जो मिल गई थी।
मालिनी यह सब देख और समझ रही थी आलोक का उर्वशी के लिए आकर्षण देखकर मालिनी के चेहरे पर गम्भीरता छा गई।
थोड़ी देर वहां रहने के बाद सभी घर लौट आए जानकी जी और उर्वशी को छोड़ने के बाद आलोक ने मालिनी को साथ लिया और अपनी कार से अपने घर की ओर निकल पड़ा।
रास्ते में मालिनी ने गम्भीर लहज़े में कहा "आलोक भैया आप आग से खेलने की कोशिश कर रहें हैं इस आग में आप स्वयं को जला बैठेंगे क्योंकि सूरज को छूने की कोशिश में तुम अपने ही पर जला लोगे"
" भाभी मैं जानता हूं कि मैं चांद को पा नहीं सकता पर उसको देखने का अधिकार तो मेरे पास है मेरे मन में उर्वशी जी के लिए कोई कलुषित भावनाएं नहीं हैं मैं तो उनसे प्रेम करने लगा हूं मेरा प्रेम गंगा जल की तरह पवित्र है यह मैं जानता हूं" आलोक ने गम्भीर लहज़े में जबाव दिया।
" ठीक है तुम्हारा प्रेम पवित्र है तुम जानते हो मैं मान लूंगी पर यह दुनिया नहीं मानेगी तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा पर उर्वशी बदनाम हो जाएगी इसलिए तुम ऐसी कोई हरकत नहीं करना जिससे उर्वशी की बदनामी हो मैं यही चाहती हूं हो सकता हो इसमें ईश्वर की कोई मर्ज़ी शामिल हो तभी उन्होंने तुम्हारे मन में उर्वशी के लिए प्रेम की भावना उत्पन्न कर दी है" मालिनी ने कहा तबतक उनकी कार अपने घर के सामने पहुंच गई थी•••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
26/7/2021