इंतज़ार की कीमत भाग 4
अचानक अपने सामने उर्वशी को देखकर जानकी जी समझ गई कि, उर्वशी ने उनकी और अपने मां की सभी बातें सुन लीं हैं यह विचार आते ही जानकी जी ने गहरी नज़रों से उर्वशी को देखा उर्वशी को अपने सामने देखकर पार्वती जी ने खुश होकर कहा " बेटी अच्छा हुआ तुम आ गई मैं तुम्हें बुलाने वाली थी इधर आओ अपनी सासू मां के पैर छूकर आशीर्वाद लो वह तुमसे कुछ पूछना चाहतीं हैं"उर्वशी से बात करते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान साफ़ दिखाई दे रही थी।
उर्वशी सिर झुकाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ी उसके दिल की धड़कनें बेकाबू हो रहीं थीं क्योंकि उसने अपनी सास के चेहरे की कठोरता को देख लिया था। उर्वशी जानकी जी के पास आकर उनके कदमों में झुक गई। जानकी जी ने गहरी सांस लेकर गम्भीर लहज़े में आशीर्वाद की मुद्रा में कहा " ईश्वर तुम्हें सही निर्णय लेनी की सद्बुद्धि दें मैं तुम्हें आज यही आशीर्वाद दे सकतीं हूं"
अपनी सास की गम्भीर और कठोर आवाज सुनकर उर्वशी अंदर तक कांप गई तभी उसकी सास जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में कहा " आओ यहां हमारे पास बैठो मुझे तुमसे कुछ पूछना है"??
उर्वशी डरते हुए धीरे से उनके नज़दीक बैठ गई,
अर बिटिया तुम इतना संकोच क्यों कर रही हो यह वही जानकी चाची हैं जिनकी गोद में तुम्हारा बचपन बीता है इनसे कैसा संकोच यह तुम्हारी सास बाद में हैं पहले यह तुम्हारी चाची हैं" पार्वती ने उर्वशी को देखकर हुए हंसते हुए कहा उर्वशी ने जब अपनी मां की ओर देखा तो उन्होंने इशारे से समझा दिया कि,वह गौने के लिए हां कर दे पार्वती को इशारा करते हुए जानकी जी ने भी देख लिया था।
वह मन-ही-मन सोच रही थीं कि, पार्वती जी को क्या हो गया है क्या उसकी नज़रों मेंं पैसा और एशो-आराम ही सबकुछ है उनकी बेटी की भावनाएं और जज़्बातों की कोई अहमियत नहीं है वह पैसे की चकाचौंध में इतनी अंधी हो गई हैं की उन्हें अपनी बेटी की बरबादी दिखाई ही नहीं दे रही है या वह समाज के तानों से डर कर ऐसा कर रहीं हैं जानकी जी कोई निर्णय नहीं कर पा रहीं थीं।
उर्वशी जानकी जी के पास बैठ गई जानकी जी ने बहुत ध्यान से उर्वशी को देखा उर्वशी के सौन्दर्य को देखकर जानकी जी मंत्रमुग्ध हो गई।रंग ऐसा दूध में जैसे गुलाबी रंग मिला दिया गया हो बड़ी बड़ी कज़रारी आंखें जिसमें मासूमियत साफ़ दिखाई दे रही थी काले घुंघराले बाल जिसकी लटें उसके गोरे को छू रहीं थीं लम्बें बालों की चोटी कमर तक लटक रही थी।गुलाबी रंग की साड़ी उर्वशी के सौन्दर्य में चार चांद लगा रही थी उर्वशी का निष्कलंक सौंदर्य देखकर जानकी जी के दर्द में जैसे कुछ चुभ गया हो वह सोचने लगी पता नहीं इस मासूम सी लड़की के जीवन में विधाता ने क्या लिख दिया है क्या वास्तव में इसका पवित्र सौंदर्य मेरे बेटे के मन को भी पवित्र कर देगा।या इस निर्दोष बच्ची के जीवन पर मेरे बेटे की कलुषित काली छाया इसके जीवन की सारी खुशियां निगल जाएगी।
जानकी जी का मन बहुत ही विचलित था वह कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था तभी उन्हें पार्वती जी की आवाज़ सुनाई दी वह कह रहीं थीं "जानकी बहन आप खुद ही उर्वशी से पूछ लीजिए" पार्वती जी की आवाज़ सुनकर जानकी जी अपनी सोच से बाहर आई। कुछ देर वह चुपचाप उर्वशी को देखती रही फिर उनके चेहरे पर कठोरता दिखाई देने लगी उन्होंने बहुत गम्भीर लहज़े में पूछा " उर्वशी मैं जो तुमसे पूछने जा रही हूं वह प्रश्न तुम्हारी जिंदगी से जुड़ा हुआ है जिसका उत्तर तुम्हें ही देना होगा। तुम्हें किसी के दबाव में आकर कोई भी निर्णय लेने की जरूरत नहीं है जो तुम्हारी अंतरात्मा कहें जो तुम्हें ठीक लगे वही निर्णय तुम लेना मैं तुम्हारे निर्णय का दिल से स्वागत करूंगी। मैं जानती हूं तुमने हमारी सभी बातें सुन लीं हैं अब मुझे साफ़ साफ़ बताओ क्या तुम अपना जीवन कैलाश के साथ बिताने के लिए तैयार हो या नहीं यह फ़ैसला तुम्हें बहुत सोच-समझकर लेना होगा जल्दबाजी में नहीं क्योंकि तुम्हारा यह फ़ैसला तुम्हारी जिंदगी को आबाद भी कर सकता है और बर्बाद भी क्योंकि तुम्हारा पति और मेरा बेटा बर्बादी के रास्ते पर चल रहा है मैं यह भी कह सकतीं हूं कि, वह पूरी तरह बर्बाद हो चुका है। क्या तुम इस शादी को क़ायम रखना चाहती हो या नहीं यह बात मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहतीं हूं मुझे खुलकर बताओ तुम्हारा क्या निर्णय है"??
" समधन जी इसमें पूछ्ना क्या है इसका फ़ैसला हां में ही होगा" पार्वती जी ने उर्वशी के बोलने से पहले ही जबाव दे दिया।
" पार्वती बहन आप चुप रहिए यह प्रश्न मैंने आपकी बेटी से नहीं अपनी बहू से किया है उत्तर भी उसे ही देने दीजिए" जानकी ने गुस्से में कहा
जानकी जी का गुस्सा देखकर पार्वती जी डरकर चुप हो गई।
" मां जी यह आप भी जानती हैं और पूरा समाज भी जानता है कि,मेरा विवाह आपके बेटे से हो चुका है सिर्फ़ गौने की रस्म अदायगी करना है अगर अब मेरा गौना नहीं गया तो यहां के लोग ताने मार-मारकर हमारा जीना हराम कर देंगे पिताजी होते तो बात अलग थी अब अगर आपने मुझे अपनी बहू स्वीकार नहीं किया तो मेरा क्या होगा मुझसे कौन शादी करेगा अगर कोई करेगा तो वह भी दया दिखाकर और जो एक दो बच्चों का बाप होगा वह भी मुझे प्यार नहीं करेगा मेरी आत्मा और शरीर को ही रौंदेगा इस बात को आप भी नकार नहीं सकतीं।
अगर ऐसा ही होना है तो मैं किसी की दूसरी पत्नी बनकर अपने वज़ूद और स्वाभिमान को क्यों अपमानित करूं इससे ज्यादा अच्छा है कि, मैं अपने पहले पति के साथ ही रहूं। सभी कहते हैं कि,समय बदल गया है पर लड़कियों के लिए समय नहीं बदला है आज भी पति के द्वारा ठुकराई हुई लड़कियां समाज में सम्मान नहीं पाती लोग उनको आंधी का आम समझते हैं उन्हें हर कोई पाने के लिए दौड़ता है जैसे वह सार्वजनिक चीज़ हों मुझे आंधी का आम नहीं होना है मैं आपके बेटे के साथ सम्मान से रहना चाहती हूं।वह बाहर कुछ भी करें पर समाज में मुझे उनकी पत्नी का सम्मान मिलेगा। मैं यह जुआ खेलने को तैयार हूं यह मेरी किस्मत होगी मुझे जीवन में फ़ूल मिले या शूल मिले मैं दोनों के लिए तैयार हूं। मां जी मैं भाग्य पर विश्वास करती हूं माता सीता का विवाह तो राजघराने में पुरूषोत्तम श्री राम जी से हुआ था फिर भी उन्हें जीवनपर्यंत वन में निवास करना पड़ा। द्रौपदी को अपने परिवार वालों के हाथों अपमानित होना पड़ा यह सब क़िस्मत का खेल है जो मेरे भाग्य में होगा मुझे मिलेगा यह मेरा अपना फ़ैसला है और यही मेरा पहला और आखिरी फैसला भी है जो आजीवन अडिग रहेगा क्योंकि मैं लोगों से अपमानित होने की जगह अपने पति से अपमानित होना ज्यादा पसंद करूंगी। क्योंकि वह मेरा घर के अंदर अपमान करेंगे सार्वजनिक रूप से नहीं मां जी कुछ भाग्यशाली औरतों को छोड़कर आज भी ज्यादातर औरतें अपने पति से हर दिन अपमानित होती हैं फिर भी पति के साथ ही रहती हैं क्योंकि वह यह अच्छी तरह से जानती है कि,अगर उन्होंने घर के बाहर क़दम निकाल दिया तो उनका बाहर के भूखे भेड़ियों से बचना मुश्किल हो जाएगा समय बदला जरूर है पर इतना भी नहीं जितना लोग समझते हैं। आगे का फ़ैसला आपको करना है मैंने अपना फ़ैसला आपको बता दिया" इतना कहकर उर्वशी चुप है गई।
उर्वशी की बात सुनकर पार्वती जी की आंखों से आंसूओं की धारा बह निकली और जानकी जी आश्चर्यचकित होकर अपनी बहू को देख रही थीं।वह उर्वशी के फैसले पर गर्व करना चाह रही थीं पर पता नहीं क्यों उनका मन अभी भी डर रहा था वह सोच रही थीं कहीं उर्वशी का यह निर्णय जो भाग्य के भरोसे वह कर रही है यह सोचकर कि, उसके जीवन में भी शाय़द खुशियों की बहार आए कहीं ऐसा न हो कि, उसका यह फ़ैसला उसके जीवन में सिर्फ इंतज़ार बनकर न रह जाए और उसे उस इंतज़ार की बहुत भारी कीमत न चुकानी पड़ जाए।
" उर्वशी मैं जानती हूं कि,आज भी पति के द्वारा ठुकराई औरतों को समाज हेय दृष्टि से देखता है इस डर के कारण औरतें पति और ससुराल वालों के अत्याचारों को सहती हैं पर यह ठीक नहीं है समाज के डर से वह कब तक अपने आपको मिटाती रहेगी अब समय बदल रहा है पहले बहूओं का साथ उनके सास ससुर नहीं देते थे इसलिए बहूओं को अपने पति का अत्याचार सहना पड़ता था। पर तुम्हारे साथ मैं हूं तब तुम क्यों कुएं में कूदना चाहती हो" जानकी जी ने गम्भीर लहज़े में पूछा।
" मां जी मैं भी तो यही कहना चाहतीं हूं कि,जब आप मेरे साथ हैं तो मुझे डरने का क्या जरूरत है हो सकता है कि, आपके सहयोग से मैं अपने पति को सही रास्ते पर ले आऊं मां जी मैं अपना फ़ैसला बदल नहीं सकती अगर आप मुझे अपने घर की बहू स्वीकार नहीं करेंगी तो मुझे अपने लिए कोई कठोर निर्णय लेना होगा क्योंकि यदि मेरा गौना नहीं हुआ तो मुझे लोगों की गंदी निगाहों का सामना करना पड़ेगा वह तो अभी भी करना पड़ता है पर अभी सभी को यह लगता है कि, मैं विवाहिता हूं किसी और की अमानत हूं पर जब लोगों को यह पता चलेगा कि,आप लोगों ने मुझे ठुकरा दिया तो मैं उनकी नज़रों में सिर्फ एक औरत बनकर रह जाऊंगी।एक अकेली असहाय औरत और वह भी सुन्दर ऐसी औरत के साथ सामज में छुपे हुए वहशी दरिंदे उसका क्या हाल करेंगे यह आप अच्छी तरह से जानती और समझती हैं फिर भी ऐसा कह रही हैं" उर्वशी ने गम्भीरता से जवाब दिया।
उर्वशी का दृढ़संकल्प देखकर जानकी जी ने भी हथियार डाल दिए उनके मन में भी एक आशा की किरण जाग उठी हो सकता है कि, उर्वशी की अच्छाई और सौंदर्य उसके बेटे को बदल दे।
" आपने क्या निर्णय लिया जानकी बहन अब तो आपको उर्वशी के विचारों का भी पता चल गया है अब आप क्या कहती हैं"? पार्वती जी ने शंका भरी आवाज में पूछा।
" पार्वती बहन मैं उर्वशी के फ़ैसले से खुश तो नहीं हूं पर•••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
14/7/2021