इंतज़ार की कीमत भाग 20
उर्वशी की नज़र जैसे ही मालिनी पर पड़ी वह जल्दी से उठकर बैठ गई। अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान लिए धीरे से बोली " दीदी आंख जल्दी नहीं खुली इन्होने भी मुझे नहीं जगाया मुझे सोती छोड़कर बाहर चले गए।आप बैठिए मैं जल्दी से तैयार होकर आती हूं" इतना कहकर उर्वशी बिस्तर से उठने लगी पर उसे दर्द महसूस हुआ वह फिर बिस्तर पर बैठ गई तभी श्यामा चाय लेकर आई मालिनी ने चाय लेकर कहा " काकी आप जाइए मैं थोड़ी देर में बहू को लेकर नीचे आ जाऊंगी"
श्यामा के जाने के बाद मालिनी ने दरवाजा बंद किया उर्वशी को चाय दी उर्वशी ने फीकी मुस्कान के साथ चाय पी और बाथरूम की ओर जाने के लिए उठी मालिनी ने उर्वशी का हाथ पकड़कर उसे अपने पास बैठा और बहुत प्यार से कहा " उर्वशी मेरे सामने अपने दर्द को छुपाने की कोशिश न करो मुझे और चाचीजी को इसका आभास था कि, कैलाश भैया तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे वह तुम्हारे साथ कुछ ग़लत ही करेंगे। उन्होंने तुमसे बदला लेने के लिए तुम्हारे साथ दरिंदगी की है क्योंकि चाचीजी ने कैलाश भैया को धमकी दी थी कि, यदि वह तुम्हें अपनी पत्नी नहीं स्वीकार करेंगे तो चाचीजी उन्हें अपनी जायदाद से बेदखल कर देंगी।यह बात उन्हें बुरी लगी वह चाचीजी को तो कुछ कह नहीं सकते थे इसलिए उस बात का सारा गुस्सा तुम्हारे ऊपर निकाल दिया।
चाचीजी ने कैलाश भैया से कहा था कि तुम्हें उर्वशी को अपनी पत्नी का अधिकार देना होगा पर कैलाश जानवरों जैसा व्यवहार तुम्हारे साथ करेगा इसका आभास हम में से किसी को नहीं था।
उर्वशी मेरी बात मानो तो तुम कैलाश से तलाक लेकर यहां से चली जाओ क्योंकि मुझे नहीं लगता कि,वह तुम्हें कभी दिल से अपनी पत्नी स्वीकार कर पाएगा वैसे भी पुष्पा ने उसे अपने रूपजाल में फांस रखा है"
" दीदी मैं जानती हूं कि,वह मुझे अपनी पत्नी नहीं अपने शरीर की प्यास बुझाने वाली एक औरत समझते हैं उन्होंने मेरे साथ जो किया वह कोई प्यार करने वाला पति नहीं करेगा पर दीदी उन्होंने मुझसे कहा कि, मैं धन-दौलत की लालच में उनकी पत्नी बनकर आई हूं अगर सोचा जाए तो यह ठीक भी है मैं लालच का दामन थाम कर ही आई हूं वह धन-दौलत का लालच न सही संरक्षण का लालच अवश्य था। दीदी हमारे गांव में एक कहावत बहुत प्रचलित है जानती हैं क्या?
" निमरे की जोरु पूरे गांव की भौजाई"
इसका मतलब सीधा है जिसका पति धन और शरीर से कमजोर होता है उसकी पत्नी के साथ हर व्यक्ति मजाक का रिश्ता ही रखता है।
मेरे घर में तो कोई मर्द था ही नहीं ऊपर से मेरी सुन्दरता मेरी सबसे बड़ी दुश्मन थी गिरधारी जैसे दरिंदें हर क़दम पर मुझे नोचने के लिए खड़े थे उनकी पत्नियों की नज़रों में मैं ही दोषी थी।
दीदी मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं की कहीं कोई नौकरी कर सकती दीदी एक औरत होने के कारण आप मेरी मनःस्थिति को समझ सकतीं हैं।
मैंने सोचा था कि, शाय़द मेरा सौन्दर्य कैलाश जी को भी आकर्षित करे और मुझे पति का प्यार मिल जाएगा अगर प्यार नहीं मिलेगा तो पत्नी का अधिकार तो मिल ही जाएगा।पर उन्होंने तो मुझे न प्यार के काबिल समझा और न पत्नी बनने के काबिल समझा उन्होंने तो मुझे कोठे वाली कह दिया मुझे उतना दर्द तब नहीं हुआ जब उन्होंने मेरे शरीर को नोचा बल्कि मेरी आत्मा तो तब घायल होकर तड़प उठी जब उन्होंने मेरी तुलना पुष्पा से किया उस क्षण मुझे खुद पर ही शर्म महसूस हो रही थी" उर्वशी ने दर्द भरी आवाज में कहा उसकी आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी।
" बहू शर्म तुम्हें नहीं कैलाश को खुद पर करना चाहिए मुझे क्षमा कर दो मैंने सोचा था शायद तुम्हारे पवित्र सौंदर्य को देखकर कैलाश बदल जाए पर यह मेरी भूल थी कैलाश जैसे जानवर कभी बदलते नहीं है लेकिन अब तुम जानकी देवी की बहू हो तुम्हें कैलाश से डरने और उसकी दरिंदगी को सहने की जरूरत नहीं है। तुम्हें संस्था का कार्य देखना होगा अब तुम असहाय नहीं हो अब तुम अपने अनुसार अपना जीवन जीवो और कमजोर लड़कियों का सहारा बनो मैंने यह सब सोच समझकर ही तुम्हारी बात मान ली थी यह तो सच है उर्वशी एक असहाय अकेली औरत मर्दों की दरिंदगी का शिकार आसानी से बन जाती है पर अब न तुम अकेली हो और न ही असहाय हो इसलिए आज से अपना नया जीवन प्रारम्भ करो कैलाश अगर सुधर जाएगा तो ठीक है वरना मैं कैलाश से तुम्हारा तलाक़ करवा कर तुम्हारी दूसरी शादी करवा दूंगी"जानकी जी ने गम्भीर मगर कठोर शब्दों में कहा।
जानकी जी की बात सुनकर उर्वशी मां कहकर उनसे लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी जानकी जी उर्वशी को स्वयं से लिपटाकर उसके बालों को स्नेह से सहलाने लगी मालिनी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई•••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
25/7/2021