इंतज़ार की क़ीमत भाग 13
जानकी जी जैसे ही हाल में दाखिल हुई उन्होंने देखा सभी लड़कियां तैयार होकर अपने काम पर जाने की तैयारी कर रहीं हैं। जानकी जी को इतनी सुबह देखकर उनके चेहरों पर आश्चर्य और घबराहट के भाव दिखाई देने लगे। तभी एक लड़की ने डरते हुए पूछा "मैडम आप यहां इतनी सुबह आपने हम लोगों को अपने आफिस में ही बुला लिया होता आप ने यहां आने का कष्ट क्यों किया"??
" गीता गलती करने वाले को क्षमा मांगने वाले के पास ख़ुद जाना पड़ता है वह उन्हें अपने पास बुलाकर माफ़ी नहीं मांगता मेरे बेटे ने कविता के साथ जो किया उसके लिए मैं कविता से क्षमा मांगने आई हूं" जानकी ने गम्भीर और उदास लहज़े में कहा उनकी आवाज़ में दर्द साफ़ सुनाई दे रहा था।
जानकी जी कविता की ओर मुखातिब हुई उन्होंने कविता को बहुत ध्यान से देखा आज से पहले जानकी जी ने यहां रहने वाली लड़कियों को इतने ध्यान से देखा ही नहीं था। जानकी जी कविता को देखकर स्तब्ध रह गई उसका एक-एक अंग सांचे में ढला हुआ था वह अजंता की चलती-फिरती मूरत लग रही थी। उसके सौंदर्य को देखकर तो ऋषियों मुनियों की तपस्या भंग हो जाए कैलाश जैसे अय्याश का कविता के रूप को देखकर दरिंदगी दिखाना तो उसके लिए आम बात हो सकती है। लेकिन जानकी की परेशानी का कारण कुछ और था आज तक कैलाश ने किसी मज़बूर लड़की का नाजायज फायदा नहीं उठाया था तो कल उसने ऐसी हरकत क्यों की क्या कैलाश अब समाज के लिए खतरा बन गया है। क्योंकि कोठे पर जाना और बात है पर किसी शरीफ़ लड़की के साथ दुर्व्यवहार करना और बात है। जानकी जी ने लम्बी सांस ली फिर गम्भीर लहज़े में बोली " कविता सबसे पहले मैं अपने बेटे के किए व्यवहार के लिए तुमसे क्षमा मांगती हूं मैं जानती हूं यह तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा लेकिन मैं चाहती हूं कि, तुम मुझे माफ़ कर दो क्योंकि बेटे की गलतियों के लिए माता-पिता भी जिम्मेदार होते हैं। मैं तुम लोगों से आज यहां कुछ कहने आई हूं तुम लोग मेरी बातों को सुनकर समझ रहीं होगी कि, मैं तुम लोगों से कहूंगी कि, तुम लोग कैलाश को क्षमा कर दो, हरगिज़ नहीं मैं तुमसे यही कहने आई हूं तुम लोग कैलाश को कभी भी क्षमा नहीं करना कैलाश ही क्या कैलाश जैसे किसी भी व्यक्ति को कभी क्षमा नहीं करना उसे अपने तरीके से दंड देना जिससे ऐसे दरिंदों को यह सबक मिले की लड़कियां इतनी भी कमजोर नहीं हैं जितना उन्हें कमजोर समझने की भूल की जाती है"
जानकी जी की बात सुनकर सभी लड़कियों के चेहरे से डर गायब हो गया गीता ने गम्भीर मुद्रा में कहा " मैडम कल की घटना से हम लोग यह सोचकर डर गए थे कि,अब हम यहां भी सुरक्षित नहीं हैं हम लोग कहां जाएं लेकिन आपकी बातों को सुनकर हमारे मन का डर भाग गया है अब अगर कैलाश बाबू ने यहां आकर कोई भी बदतमीजी की तो हम उन्हें अच्छा सबक सीखाएंगे" गीता की बात सुनकर जानकी जी ने मुस्कुराते हुए कहा "बिल्कुल सही कहा तुमने गुनेहगार को सज़ा मिलनी ही चाहिए"
जानकी जी संस्था की गतिविधियों को देखने के बाद घर के लिए निकल पड़ी जब वह घर पहुंचीं तो उन्होंने देखा हाल में कैलाश के साथ एक वकील बैठा हुआ है। जानकी जी को देखते ही उसने कहा "मां मैं आपका ही इंतज़ार कर रहा था आप कहां चली गई थीं जो आने में इतनी देर लगा दिया"
" तुम मेरे पीए तो हो नहीं जो मैं अपनी गतिविधियों का व्यौरा तुम्हें बताऊंगी मैं कहां जाती हूं कब लौटूंगी तुम्हें यह सब जानने की क्या जरूरत आन पड़ी है तुम तो अपने विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं देते" जानकी जी ने गुस्से में भरकर कठोर शब्दों में पूछा।
" मैं आपसे बहस नहीं करना चाहता मुझे आपसे बहुत जरूरी काम है इसलिए मैं आपका इंतज़ार कर रहा था" कैलाश ने लापरवाही से जबाव दिया।
" तुम और जरूरी काम दोनों ही विपरीत बातें हैं तुम्हारे जरूरी काम क्या हैं मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूं शराब पीना, मारपीट करना कोठे पर जाकर अय्याशी करना अब तो तुमने एक नया शौक भी पाल लिया है शरीफ़ लड़कियों के साथ जबरदस्ती करना" जानकी ने आक्रोशित होकर कहा उनका चेहरा गुस्से में लाल हो गया था और उसकी आंखों में अंगारे दहक रहे थे।
अपनी मां का ऐसा रौद्र रूप कैलाश ने पहली बार देखा था वह जानकी जी को देखकर अन्दर तक हिल गया।
" वैसे तुम अपने साथ वकील लेकर आएं हो इन्हीं से पूंछ लो एक बलात्कारी को क्या सज़ा कानून देता है" जानकी जी ने गुस्से में व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा
जानकी जी की बात सुनकर कैलाश सकपका गया जानकी जी ने उसकी तरफ देखा और घृणा से मुंह मोड़कर अन्दर जाने लगी। जानकी जी को अन्दर जाते हुए देखकर कैलाश ने जल्दी से कहा
" मां रूकिए!! मुझे आपसे कुछ बात करनी है " कैलाश ने जानकी जी कहा।
" मेरे पास तुम्हारी फ़ालतू बातों के लिए समय नहीं है" इतना कहकर जानकी जी सीढियां चढ़ने लगी
" मां मुझे मेरा हिस्सा चाहिए" कैलाश ने गम्भीर लहज़े में कहा।
कैलाश की बात सुनकर जानकी जी के कदम सीढ़ियों पर ही ठिठक गए। उन्होंने पलटकर कैलाश को जलती हुई निगाहों से देखा••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
20/7/2021