इंतज़ार की कीमत भाग 8
जानकी जी फूट-फूट कर रो रही थी सभी नौकर नौकरानी बेबस होकर खड़े उन्हें देख रहे थे उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि,वह क्या करें। तभी एक आश्चर्य भरी आवाज सुनाई दी "चाचाजी •••!! चाचीजी ••••!! क्या हुआ आपको आप रो क्यों रहीं हैं"?? सभी ने आवाज की दिशा में देखा तो वहां जानकी के चचेरे जेठ का बेटा आलोक खड़ा था जो अभी-अभी वहां आया था और अपनी चाचीजी को रोता देखकर घबराकर उनसे पूछ रहा था।
आलोक तेज कदमों से चलता हुआ उनके पास आ गया आलोक को देखकर जानकी जी उससे लिपटकर रोने लगी आलोक को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि, यह क्या हो रहा है उसने श्यामा की ओर देखकर पूछा " श्यामा काकी क्या हुआ चाचीजी रो क्यों रहीं हैं कैलाश कहां है"??
" बेटवा छोटे मालिक नशे में चूर अपने कमरे में पड़े हुए हैं यह सब उन्हीं के कारण हो रहा है वह आज मां जी के न रहने पर कोठे वाली को लेकर घर में आ गए थे मालकिन ने आकर यह सब अपनी आंखों से देख लिया उसी बात का सदमा इन्हें लगा है" श्यामा ने आक्रोशित होकर बताया।
" यह कैलाश भी न पता नहीं उसे क्या होता जा रहा है वह किसी की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं है अगर कुछ कहो तो अपमानित करने लगता है मार-पीट पर उतर जाता है आज उसने घर की मान-मर्यादा को भी कलंकित कर दिया" आलोक ने गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहा और जानकी जी को सांत्वना देता रहा
थोड़ी देर बाद जब जानकी जी शांत हुई उन्होंने अपने आंसू पोंछे और आलोक की तरफ मुखातिब हुई उनकी आंखों में सूनापन साफ़ दिखाई दे रहा था उन्होंने फीकी मुस्कुराहट के साथ पूछा " तुम कब आए आलोक मैंने तो सुना था कि, तुम विदेश चले गए हो वहां तुम्हारी नौकरी लग गई है"??
" मैं कल ही अमेरिका से वापस यहां आया हूं मैं वहां बसने के लिए नहीं गया था चाचीजी मैं अपनी कम्पनी की तरफ़ से कुछ दिनों के लिए गया था वहां का प्रोजेक्ट पूरा हो गया तो मैं वापस आ गया" आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया।
" अकेला ही आया है कि,साथ में कोई गोरी मेम भी है"? जानकी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
" क्या चाचीजी आप भी कैसी बात कर रहीं हैं मैं वहां शादी करने नहीं गया था और फिर अपने खानदान में आज तक किसी ने भी तो प्रेम विवाह किया नहीं है तो मैं ऐसा करके अपने खानदान की परम्परा को क्यों तोड़ूंगा और क्या आप पिताजी को जानती नहीं हैं अगर मैं विदेशी लड़की लेकर यहां आता तो वह मुझे घर में घुसने न देते और जीवन भर मेरा मुंह नहीं देखते मैं ऐसा कोई काम करूंगा ही नहीं जिससे मां और पिताजी का अपमान हो और मेरे कारण उनका सिर समाज के सामने झुक जाए" आलोक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
आलोक की बात सुनकर जानकी जी के दर्द में कुछ चुभन महसूस हुई जिसका दर्द उनके चेहरे पर उभर आया उन्होंने अपने चेहरे के भाव को छुपाते हुए हंसकर कहा " तब तो मुझे दीदी से कहना पड़ेगा कि, आलोक के लिए कोई लड़की ढूंढे वह घर वालों की पसंद से ही शादी करेगा"
" चाचीजी आप मां से क्यों कहेंगी मेरे लिए लड़की आप ही ढूंढ लीजिए" आलोक ने मुस्कुराते हुए कहा।
" चल हट बेशर्म चाची से लड़की ढूंढने की बात कर रहा है" जानकी जी ने चुटकी लेते हुए कहा
" क्या करूं जब मेरी चाची को अपने बेटे के बारे में सोचने का समय ही नहीं है तो मुझे खुद कहना पड़ेगा कि,अब मेरे लिए लड़की ढूंढिए मैं शादी लायक़ हो गया हूं" आलोक ने भी मासूम सा मुंह बनाकर कहा।
जानकी जी ने आलोक का कान पकड़कर बनावटी गुस्से में कहा, "रूक बेशर्म अभी बताती हूं"
" अरे••• अरे•• चाचीजी मेरा कान छोड़िए वरना वह आपके हाथ में आ जाएगा तो आपको कोई अच्छी बहू नहीं मिलेगी क्योंकि लड़की कहेंगी यह तो कनकटा है मैं इससे शादी नहीं करूंगी लोगों की जब नाक कट जाती है तब शादी नहीं होती मेरी कान कटने के कारण नहीं होगी" आलोक ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।
आलोक का चेहरा देखकर जानकी जी ने उसका कान छोड़ दिया और मुस्कुराते हुए कहा "तू इतना बड़ा हो गया पर तेरी मसखरी करने की आदत नहीं गई"
" मैं बदलने वालों में नहींं हूं बदल देने वालों में आता हूं मैं ठीक कह रहा हूं न"? आलोक ने गम्भीर मुद्रा में कहा
आलोक का गम्भीर चेहरा देखकर जानकी जी की हंसी फूट पड़ी उनको हंसता देखकर आलोक ने गम्भीर लहज़े में कहा " चाचीजी आप हमेशा ऐसे ही हंसते रहा कीजिए आपकी आंखों में आसूं अच्छे नहीं लगते।
" मैं बहुत कोशिश करती हूं खुश रहने की पर कैलाश मुझे खुश रहने ही नहीं देता" जानकी जी ने धीरे से कहा।
"चाचीजी सब ठीक हो जाएगा समय का इंतज़ार कीजिए" आलोक ने समझाते हुए कहा।
" इसी इंतज़ार में तो बैठी हूं पर कहीं ऐसा न हो कि इस इंतज़ार की कीमत चुकानी पड़े" जानकी जी ने मायूसी से कहा उनकी आवाज़ में निराशा साफ़ झलक रही थी।
उनकी बात सुनकर आलोक भी खामोश हो गया वहां का वातावरण बहुत ही गमगीन हो गया था तभी श्यामा ने हंसते हुए पूछा " आज बातों से ही पेट भरने का इरादा है का सबका या चाय के साथ प्याज के पकौड़े खाना है"??
" श्यामा काकी आपके हाथों के प्याज़ के पकौड़े कौन बेवकूफ छोड़ना चाहेगा जल्दी से खिला दीजिए मुहं में पानी आ रहा है" आलोक ने जल्दी से कहा।
श्यामा हंसती हुई रसोई में चली गई जानकी आलोक से बातें करने लगी जानकी ने उर्वशी के विषय में बताया जानकी जी की बात सुनकर आलोक गम्भीर हो गया।
" चाचीजी मुझे ठीक नहीं लग रहा है यह सब मां कैलाश के विषय में बता रही थी कि,वह हर बुरी आदत को अपना चुका है ऐसे में जानबूझकर किसी लड़की का जीवन बर्बाद करना कहां तक उचित है"?? आलोक ने गम्भीरता से पूछा।
" तो क्या तू मेरी पत्नी से शादी करेगा उसकी जिंदगी संवारने के लिए वह मेरी पत्नी है मेरे बाप ने मेरी शादी उर्वशी से की है तो वह मेरे घर मेरी पत्नी बनकर ही तो आएगी मेरी मां को भड़काने की कोशिश न कर।तू कौन होता है उसके लिए हमदर्दी दिखाने वाला मैं जैसा भी हूं उसका पति हूं उसे मुझे स्वीकार करना ही होगा" तभी कैलाश की लड़खड़ाती हुई नफ़रत भरी आवाज सुनाई दी जो सीढ़ियों के ऊपर खड़ा आलोक को घूर रहा था।
" कैलाश तुम्हें इतनी भी तमीज़ नहीं है कि घर आए मेहमान से कैसे बात की जाती है" जानकी जी ने गुस्से में कहा।
" मुझे तमीज़ सिखाने की जरूरत नहीं है यह यहां क्यों आया है मैं तो इसके घर जाता नहीं यह क्यों मुंह उठाए यहां आ जाता है मैं जानता हूं यह यहां आपसे पैसे ऐंठने आता है" कैलाश यह बात गुस्से में कहता हुआ नीचे उतरने लगा।
आलोक ने कुछ कहना चाहता पर उसने जब देखा कि, कैलाश होश में नहीं है तो वह उठकर खड़ा हो गया और जानकी जी से आज्ञा लेकर वहां से जाने लगा।उसको जाते हुए देखकर कैलाश ने नफ़रत से चिल्लाकर कहा "आज के बाद मेरे घर नहीं आना नहीं तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा" इतना कहकर कैलाश ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल कर आलोक पर तान दिया। कैलाश को ऐसा करते हुए देखकर जानकी जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी वह दौड़कर आलोक के सामने आ गई और उससे कहने लगी कि,वह यहां से चला जाए। आलोक ने गुस्से में कैलाश को देखा कह कुछ नहीं चुपचाप वहां से चला गया आलोक के जाने के बाद जानकी जी गुस्से में आगे बढ़ी और कैलाश को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया और गुस्से में बोली " तू इतना नीचे गिर गया कि, घरवालों पर पिस्तौल निकालने लगा है"
"वह मेरे घर का नहीं है मैं उसे अपना भाई नहीं मानता आज के बाद वह मेरे घर में नही आना चाहिए नहीं तो उसकी मां को उसकी मौत पर रोना पड़ेगा पहले तो आप उन लोगों को पसंद नहीं करती थीं अब ऐसा क्या हो गया है जो उसकी इतनी तारीफ़ करने लगी हैं"? कैलाश ने घृणा भरी आवाज में कहा और घर के बाहर निकल गया।
कैलाश की बात सुनकर जानकी जी स्तब्ध रह गई और वही कटे वृक्ष की तरह सोफे पर बैठ गई।
कैलाश का आज का खूंखार रूप देखकर जानकी जी अपने ही निर्णय पर अफ़सोस करने लगी उसकी आंखों के सामने अतीत की यादें चलचित्र की तरह चलने लगी•••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
17/7/2021