इंतज़ार की कीमत भाग 11
कमरे का दरवाजा बंद करने के बाद जानकी जी सीधे अपने पति सुरेश की तस्वीर के पास गई जो मेज़ पर रखी हुई थी उसे हाथो में उठा लिया और बिस्तर पर बैठकर तस्वीर को देखने लगी उसकी आंखें आंसूओं से भर गई वह तस्वीर से बातें करने लगी " आप मुझे माफ़ कर दीजिए मैंने आपके साथ विश्वासघात किया है अपनी बहन के प्रेम और अपनी ज़िद्द के कारण मैंने आपके पवित्र प्रेम का अपमान किया जो मुझे नहीं करनी चाहिए थी मैं अपनी बहन के बच्चे की सहायता बिना उसे गोद लिए भी कर सकती थी।
आज मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि, व्यक्ति की महानता में संस्कार के साथ-साथ ख़ून का भी असर होता है हमारे पूर्वजों का कहना ठीक है की यदि रईस व्यक्ति का धन छिन जाए तो भी उसके मन से और रहन-सहन से उसकी रईसी सात पीढ़ियों तक नहीं जाती इसी प्रकार यदि माता-पिता का आचरण गलत है तो उसका प्रभाव बच्चे पर जरूर पड़ता है कुछ अपवादों को छोड़कर। इसीलिए पहले लोग शादी ब्याह उच्च कुल और कुलीन खानदान में करते थे मैंने आधुनिकता में अंधी होकर इस तथ्य को नकार दिया मैं गांव वालों को हेय दृष्टि से देखती थी मैं कितनी ग़लत थी आज शहरी संस्कार और ग्रामीण संस्कार दोनों का ही ज्वलंत उदाहरण मेरे सामने है एक मेरा लड़का जो शहरी वातावरण में पला-बढ़ा वह कितना निकृष्ट निकला और दूसरी तरफ़ गांव में पले आपके भतीजे कितने सभ्य और संस्कारों से युक्त हैं।इसका सबसे बड़ा कारण है उनकी रगो में दौड़ने वाला खून उनकी रगो में एक कुलीन खानदान का ख़ून है तो वह लोग भी अपने परिवार की कुलीनता बनाए हुए हैं एक मेरा दत्तक पुत्र है जिसकी रगो में एक दरिंदे का खून है तो वह भी दरिन्दा बन गया है मेरे संस्कार भी कुछ काम नहीं आया पर इसमें मेरी ही गलती थी मैं ही उसकी गलतियों को सुधारने के स्थान पर नज़र अंदाज़ करती रही। मैं आपसे नज़रें नहीं मिला पा रही हूं आप ही बताइए मैं क्या करूं अब अगर मैं लोगों से कहूंगी कि, कैलाश मेरा बेटा नहीं है तो लोगों का विश्वास मुझ पर से उठ जाएगा और कैलाश और भी बागी हो जाएगा क्योंकि उसमें यह डर बैठ जाएगा कि, कहीं उसके हाथों से दौलत निकल न जाए यह विचार आते ही वह आलोक के परिवार का दुश्मन बन जाएगा कैलाश उन लोगों के साथ कुछ भी कर सकता है इसलिए मेरे चुप रहने में ही भलाई है। मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगती हूं मुझे मेरे गुनाह के लिए क्षमा कर दीजिए मेरी हालत तो सांप छछूंदर जैसी है न निगलते बन रहा है न उगलते बन रहा है आप मुझे रास्ता दिखाइए मैं क्या करूं !! मैं क्या करूं!! मुझे बताइए" इतना कहकर जानकी जी रो पड़ी उनके सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो गई थी वह रोते-रोते कब नींद के आगोश में चली गई उन्हें पता ही नहीं चला
नींद में उन्हें ऐसा लगा की सुरेश उनके पास खड़े हैं उनके चेहरे पर गम्भीरता साफ़ दिखाई दे रही थी उन्होंने गम्भीर लहज़े में कहा " कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जिनके लिए क्षमा नहीं किया जा सकता इसलिए मैं तुम्हें क्षमा नहीं करूंगा। लेकिन हो सकता है जो हो रहा है वह ईश्वरीय इच्छा हो यही मानकर तुम उर्वशी को बहू बनाकर ले आओ यदि यह ईश्वर की इच्छा न होती तो तुम्हारे समझाने के बाद उर्वशी कैलाश को छोड़ सकती थी पर उसने ऐसा नहीं किया यह ईश्वर का कोई संकेत है जो तुम्हें यह बता रहा है कि, उर्वशी के जीवन में अभी बहुत कुछ होने वाला है उसे बहुत दुःख झेलना है उससे वह बच नहीं सकती इसलिए जो हो रहा है वह होने दो तुम उसे रोक भी नहीं सकतीं। इससे दो बातें सामने आ जाएगी कि,या तो उर्वशी का जीवन खुशियों से भर जाएगा या दुखों में डूब जाएगा। जो लोग गलत को सही साबित करने के लिए समय की धारा के विपरीत चलने की कोशिश करते हैं वह लोग या तो इतिहास रचते हैं या स्वयं इतिहास बन जाते हैं उर्वशी वही करने की कोशिश कर रही है उसे करने दो पर तुम हमेशा उसके साथ खड़ी रहना क्योंकि गलत उर्वशी नहीं तुम्हारा बेटा है।जिस तरह एक गलती के कारण सीता जी को वन में रहने के लिए बाध्य होना पड़ा और अंत में स्वयं ही पृथ्वी में समा गई वही गलती उर्वशी करने जा रही है सीता जी ने अंजाने में गलती की थी पर उर्वशी जानबूझकर कर रही है इसका नतीजा भी वही होगा। शाय़द यही विधि का विधान हो उर्वशी के जीवन में कुछ अलग विशेष होने वाला हो इसलिए तुम सब ईश्वर पर छोड़कर अपना कर्म करो फल क्या मिलेगा यह सोचना तुम्हारा काम नहीं है" इतना कहकर सुरेश वहां से चले गए तभी जानकी जी की नींद खुल गई वह बिस्तर पर उठकर बैठ गई और आश्चर्य से चारों ओर देखने लगी लेकिन वहां कमरे में उन्हें सुरेश नहीं दिखाई दिए।वह समझ गई कि,वह सपना देख रहीं थीं उनके पति ने नाराज़ होते हुए भी सपने में आकर अपना पति धर्म निभाया उनका मार्गदर्शन किया जानकी जी की आंखों से आंसूओं की धारा बह रही थी पर होंठों पर दर्द भरी मुस्कुराहट फैलीं हुई थी।
उन्होंने सोच लिया कि वह उर्वशी को इस घर में बहू बनाकर लाएगी पर उस पर कोई अत्याचार नहीं होने देगी पर जानकी जी की यह सोच कितनी सफल होने वाली थी यह तो समय ही बता सकता था जानकी जी नहीं••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
18/7/2021