इश्क की तलब
इश्क की तलब जितनी है मुझे तुम्हें भी कुछ कम नहीं, प्यार का ख़ूमार चढ़ा मुझे जितना, नशा मोहब्बत का तुम्हें भी कम नहीं।
मैं तुम्हारी चाहत हूं, ज़रूरत हूं, आरज़ू हूं, जुस्तजू हूं, तुम हो रूह में मेरी, मैं जिस्म तुम जान हो, हैं परछाई हम दोनों एक-दूजे की, ना तुम मुझसे जुदा, ना मैं तुमसे जुदा।
तुम हो खुदा मेरे, मैं तुम्हारी नमाज़ हूं, तुम हो मन्दिर मेरे मैं तुम्हारी मूरत हूं , तुम शब्द प्रार्थना का मैं सुगन्धित अगर हूं, मैं बजती सुंदर मंदिर की घंटी सी, तुम नाद हो, मैं हूं जल तुम शिवलिंग पर बहती जल की धार हो।
तुमसे मैं जुदा कहां , मैं सांस तुम प्राण हो, मैं दिल तुम दिल की धड़कन बन धड़कते हो, मैं लहू तुम लहू में रवानी हो, मैं हूं मन्नत तुम्हारी, तुम मेरी दुआ हो।
मैं हूं अरमान तुम्हारा, तुम मेरा एहसास हो, जिस्म से भले हम हों जुदा मगर रूह से तुम मेरे पास हो, नहीं चाहत जिस्मों के मिलन की रूह का रूह से मेल ही काफी है, इश्क में यार हो दिल में, ना हो सामने नज़र के कोई ज़रूरी तो नहीं।
रखना है हमें इश्क को ताज़ा सदा, इसके लिए तुम ज़ख़्म देते रहो, मैं दर्द सहती रहूं, है प्यार की आबरू इसी में, तेरे दिए हर ज़ख्म को कर दिल से कबूल, सी कर लबों को जीऊं, उफ़्फ तक ना करूं।
बस मुझसे मैं प्यार करूं, इश्क की तलब हर बार करूं।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)