किनारों का नसीब
नहीं होता नसीब में मिलन किनारों के,
मगर धाराओं को मिलाते हैं किनारे,
दूर रह कर भी इस तरह से पास आते हैं किनारे,
माना हम दूर है, मिलने को मजबूर हैं,
ये जहां की रवायतें भी कितनी अजीब हैं,
मिलने भी नहीं देते, मिलने का जरिया भी बक्शते हैं।
रखते हैं किनारों को दूर-दूर,मगर धारा को
मिलने का जरिया खुद बनाते हैं।
चाहने वालों को हमेशा जुदा किया जाता है,
शब-भर तड़पता है परवाना जिस शमां में जलने
को, उसी को बुझा दिया जाता है।
एक जन्म का किसी को पता नहीं होता, सात जन्म के लिए वचन लिया-दिया जाता है। क्या कभी किसी किनारे से भी पूछा है किसी ने, कितने जन्मों से वो मिलन की राह तकते हैं।
मिलाते रहते हैं जल की धारा को मार जल में रह कर भी खुद मिलन को प्यासे रह जाते हैं। नहीं समझ सकता कभी कोई प्यास उनकी, अगर कोई समझ पाता तो उन्हें मिलाने की कोशिश तो करता।
एक जन्म ना सही अगले जन्म में उनके मिलने की दुआ ज़रूर करता। मगर किनारो का सब्र तो देखिए, नसीब में मिलन ना सही, दूर से एक- दूजे को ताका करते हैं, इस तरह से वो मिलन की प्यास बुझाया करते हैं।
कराते हैं मिलन धारा का और उसी में सुकून-ओ-चैन पाया करते हैं, अपने नसीब पे इतराया करते हैं।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)