इश्क की लज्ज़त में
क्या-क्या दिन ना देखे तेरे इश्क की लज्ज़त में,
ना जी सके, ना मर सके जानम तेरी गुरबत में।
ज़ख़्म-ए-दिल पर आंसू के मरहम लगाया किए हम,
हर शब रो-रो कर गुजारी है हमने तो तेरी फुरकत में।
याद आते हैं वो लम्हें, चुभते हैं तीर सीने में यादों के,
जब शर्म से लाल हो जाया करते थे हम तेरी शरारत में।
तेरी बेरूखी भी सहा किए हम, उफ़ तक ना किया,
कहीं दूर ना हो जाएं, बस चाहत है,रहें तेरी सोहबत में।
ग़ैरों को आगोश में बैठा के लेते रहे आप बोसे पे बोसे
इक प्रेम को ही ना नसीब हुआ रहना तेरी कुरबत में।
प्रेम बजाज
गुरबत,( विदेश निवास)
फुरकत ( जुदाई)
कुरबत ( नज़दीकियां)