इबादत में भी इंतजार मिला
सुना है वो हर किसी पे मेहरबान रहते हैं,
इस कदर दो खुदा का दर्जा रखते हैं।
मिले होंगे वो औरों को बिन मांगे,
हमें तो इबादत करके भी उनका इंतजार ही मिला।
सुनते हैं उनके दर पे लाखों लोग खैरात पाया करते हैं,
जो आ जाए दर पर उनके वो कभी ना ख़ाली उसे लौटाते हैं,
देखा जो आंचल हमने अपना सदा ख़ाली ही हम पाया करते हैं।
बिन बुलाए, मूक आवाज़, कहते जिसे धड़कन, उसे भी सुनकर दर्द का अंदाज वो लगाया करते हैं,
बड़े प्यार से ज़ख्मों पर फिर मरहम भी लगाया करते हैं।
ज़ख्मों का इलाज हमारा वो क्या करेंगे,
हमें तो वो दर्द पे दर्द ही दिया करते हैं,
ना हो इलाज जिसका किसी भी वैध के पास, ऐसा रोग उन्होंने हमें लगा दिया।
देकर ज़हर हाथों में, ना गिराने दिया, ना पीने दिया, इस तरह से खड़े हैं हम दोराहे पे, ना जीने दिया ना मरने दिया।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)