आंख भर आई
आज आंख भर आई और दिल रो दिया क्योंकि,
तुम हुए जुदा तो लगा जिस्म से मैंने जान खो दिया,
वो इस तरह हुए जुदा मुझसे जैसे मैं उनका लम्हा भी
नहीं, मैंने तो उनको अपनी पूरी ज़िन्दगी का तमगा दे दिया।
चाहा बहुत कि पकड़ कर रखूंगा उन्हें, मगर वो रेत की
तरह हाथ से फिसलते गए। मरता तो उन पर मैं पहले
भी था, बस आज तो उनके संग जीने की ख़्वाहिश की
थी।बेशक ज़िंदगी उनके बिना चल रही है अभी, मगर सांसें उस ज़िन्दगी में नहीं।
ऐ खुदा यार को बनाना था पाषाण अगर तो मुझे शीशे
का बनाया क्यूं। यार को बनाना था शमां तो मेरा दिल
मोम का बनाया क्यूं, वो जलते रहे और हम पिघलते रहे।
तन - मन में एक आग उठ रही है , मिलन की तड़प
बढ़ रही है , इस तरह से वो दिल - दिमाग पर छा गए।
तोड़ कर दिल को फिर से वफ़ा निभाने का वादा कर
गए, मेरी मूक मोहब्बत को खुद्दारी का नाम दे गए।
वो जाते-जाते अलविदा कह गए, और फिर से मिलने
का वादा भी कर गए।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)