प्रीत का जाम
हया ने भी दिया साथ हमारा, लब से जब लब हमारे मिलने लगे,
पलकें झुक गई शर्म से, थरथर्राहट लबों मे होने लगी, प्रणय-पुष्प से हम खिलने लगे।
वो चूमते हुए मेरे पलकों के बादल, लगा चूमने फिर होंठों के पाटल,
जब छू गए उसके होंठ मेरी गर्दन के तिल को, खुशी के अश्कों से ढलक गया काजल।
रखें जो होंठ मेरे गालों पे, लगे धुलने सब, जो लगे थे जंग उर के तालो पे,
कस्तूरी पर मेरी उसने लबों से प्यार लिखा था, मैंने भी चूम कर जताया था प्यार उस के गालों पे।
ना रही मैं होश में पीकर लबों की मय, नशा मेरी मय-ए-लब का उस पर भी चढ़ चुका था,
बिक गया था वो मेरे प्यार में, उसका इश्क भी मुझे खरीद चुका था।
था नशा नैनों में इश्क का, लुट गई थी मैं भी उसके प्यार में,
छुप गी आगोश में यार की, टूट कर बिखर गई मैं कूचा-ए-यार में।
वो पी रहा था घूंट-घूंट मुझे, मैं भी ले रही थी चुस्कियां उसके प्यार की,
खेलने लगा वो गेसुओं से मेरे, उंगलियां भी चल रही कमर पर मेरी यार की।
खुद को कर दिया नाम उसके इस तरह प्यार का कर्ज अदा किया,
परोस दिया खुद को उसके प्याले में, उसने मेरी प्रीत का जाम पिया।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर) 215