मूक प्यार को जीने दो ( श्रृंगार रस)
करके दिल को बेकरार यूं तुम जाने की ज़िद्द ना करना,
आए हो तो, थोड़ी देर और तुम रूक जाओ, अभी जाने की बात ना करना।
करके इंतजार सुबह से शाम हो जाती है,
जब नहीं आती तुम तो मेरी जान निकल जाती है।
तुम क्या जानो ये फुरकत की घड़ी मुझे कितना
तड़पाती है, विसाले- यार की तलब और बढ़ जाती है।
नहीं, अभी नहीं जाना, भूल कर ग़म सारे जहां का लेने
दो पनाह कुछ देर तो अपने प्यार भरे आंचल में।
जब चलती है तेरी नर्म उंगलियां मेरे बालों में, ना
मिलता कहीं सुकून जो मिलता हाथों में।
नहीं चाहत जिस्मों के मिलन की बस यूं ही सामने तुम
बैठी रहो, तुम्हारी खनकाती हंसी कानों में मेरे यूं गूंजा
करे, मैं पलकें मूंदे यूं तेरी गोद में लेटा रहूं, इससे
बढ़कर जन्नत का नज़ारा क्या होगा, यही सम्पूर्ण इश्क
हमारा होगा।
नही करना कोई गिला-शिकवा मुझे तुमसे, ना तुम कोई
शिकायत करना, बस जो दो पल मिले हैं, उन्हें सुकून
से यूं एक-दूसरे की धड़कनें सुनने दो, दो दिलों को
आपस में चंद बातें करने दो।
ना कहो तुम कुछ, ना मैं सुनूं, मूक प्यार को जिंदगी
जीने दो।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)