कैसे कह दूं
तुम किसी ग़ैर के हो, मैं भी किसी और की अमानत हूं, मगर इस दिल को कैसे समझाऊं, जो मुझसे करके बग़ावत तुम्हारे आगोश में जा बैठा।
करती हूं प्यार तुमसे मगर मैं बेग़ैरत नहीं, मैं किसी को धोखा नहीं दे रही बस दिल से मजबूर हूं।
मेरा प्यार बेग़ैरत है अगर,तुम भी चाहते हो मुझको, क्या तुम बेग़ैरत नहीं?
नहीं तुम मर्द हो ना इसलिए, सात खून भी तुम्हें माफ़ हैं, मैं एक कदम भी चौखट के बाहर रखूं तो पाप है।
कैसे कहूं कि मुझे तुझसे मोहब्बत है, मैं मर्यादा की ज़ंज़ीरों में बँधी , लाज के पर्दे में छुपी, नहीं कर पाऊँगी हिम्मत तुमसे वो सब कहने की।
नहीं कह सकती कि मुझे तुमसे प्यार है, नहीं कह सकती कि मेरे सीने में जो दिल धड़कता है उसमें धड़कन तुम्हारी है।
क्या चाहते हो तुम , क्यूँ मेरे मूक शब्दों को ज़ुबाँ देना चाहते हो , जो तुम चाहते हो नहीं.... मै नहीं कह सकती।
नहीं कह सकती कि मेरी नसों में थो लहु बह रहा है उसमें रवानी तुम्हारी है , मैं ले रही हूँ जो साँसे उसमें महक तुम्हारी है।
नहीं कह सकती कि मुझे तुमसे प्यार है, नहीं कह सकती कि मेरे सीने में जो दिल धड़कता है उसमें धड़कन तुम्हारी है।
जानती हूं, मैं चाहत हूँ, हसरत हूँ , ज़िन्दगी हूँ तुम्हारी, मुझे सब मालूम है , लेकिन.... लेकिन मैं कैसे कह दूँ वो सब जो तुम चाहते हो।
बोलो क्या तुम कह पाओगे, क्या तुम हिम्मत कर पाओगे, क्या तुम क्या ले जाओगे मुझे अपना बना कर ,इस बेदर्द ज़माने से छीन कर...बोलो ....कुछ तो बोलो ....अब यूँ ना चुप रहो... कुछ तो कहो......
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)