8 जुलाई 2017 हमारे देश के लिए एक बड़ा दिन रहा. इस दिन जोइता मंडल बंगाल के उत्तर दिनाजपुर ज़िले के इस्लामपुर लोक अदालत की जज नियुक्त की गईं. देश के इतिहास में वो पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो किसी लोक अदालत की जज बनी हैं.
एक समय में जोइता BPO में नौकरी किया करती थीं, लेकिन वहां उनका बहुत मज़ाक उड़ाया जाता था. दो महीने में ही उन्हें इतना मजबूर कर दिया गया कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी. इतनी मजबूर हो गईं कि ज़िंदगी जीने के लिए भीख मांगने लगीं.
जिस अदालत में आज वो जज हैं, उससे बस पांच मिनट की दूरी पर एक बस स्टैंड है. 2010 में नौकरी छोड़ने के बाद एक समय ऐसा भी आया कि उन्हें इस बस स्टैंड पर सोना पड़ा, क्योंकि धर्मशालाओं ने उन्हें पनाह देने से मना कर दिया था. ये कहकर कि वो हिजड़ा हैं. लेकिन वो इन्हीं रोड के किनारे बस स्टैंड पर भीख मांगती नहीं रहीं. जोइता को पता था कि उन्हें अपने और अपनी कम्युनिटी के लिए लड़ना है.
अपने BPO में बिताए बुरे वक्त के बारे में वो कहती हैं, ‘मुझे किसी ने सेक्शुअली या फिज़िकली परेशान नहीं किया था, लेकिन लोग मेरे बारे में बातें करते, मुझे घूरते, मेरा मज़ाक उड़ाते थे. स्थिति इतनी खराब थी कि मैं वहां काम करके डिप्रेस हो चुकी थी. फिर मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया.’
2011 से ही जोइता ने अपनी कम्युनिटी के लोगों के लिए काम करना शुरू कर दिया. सिलीगुड़ी में उनकी एक संस्था चलती है. इसका नाम ‘मंशा बंगला’ है. जोइता ने समाजसेवा की शुरुआत ‘मंशा बंगला’ से की थी. इसी क्रम में आगे चलकर उन्होंने दिनाजपुर नोतुन आलो सोसाइटी (DNAS) खोली. ये सोसाइटी LGBQ के लिए काम करती है. LGBTQ मतलब लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्विर. DNAS में जेंडर डिफरेंस नहीं देखा जाता. कोई भी यहां रह सकता है. लोग अपनी ज़िंदगी बेहतर बना सकें, इसके लिए यहां बहुत रिसोर्स मौजूद हैं.
ये सोसाइटी दिनाजपुर की हर सरकारी संस्था से जुड़ी है. इस सोसाइटी को 93 ग्रुप्स का सपोर्ट है, जो हिजड़ों, ट्रांसजेंडर और समलैंगिकों के मुद्दों पर काम करते हैं. जोइता ने LGBTQ कम्युनिटी के लिए तो बहुत कुछ किया है. इसके अलावा उन्होंने एक ओल्ड एज होम भी खोला. सेक्स वर्कर रहे लोग, जो अब अपनी ज़िंदगी सुधारना चाहते हैं, उनके लिए भी बहुत काम किए.
जोयिता का जन्म कोलकाता में हुआ था. उनका नाम पहले जयंत मंडल था. जोयिता ने ग्रेजुएशन के दूसरे साल तक ही पढ़ाई की है. अब जज बनने के बाद वो अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हैं.
जोइता से पहले मानबी बंदोपाध्याय ने उदाहरण सेट किया था. वो कृष्ण नगर की पहली ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल हैं. ये दोनों जिस तरह से सारी मुश्किलों को पार कर आगे बढ़ीं. उससे पता चलता है कि हमारे समाज की सोच में कहीं न कहीं तो बदलाव आ रहा है. समाज ट्रांसजेंडर को भी आम इंसान समझने लगा है, जो कि वो पहले नहीं समझता था.