अद्भुत, अनन्य भक्त था,
माँ भारती का लाल वो।
रखता उज्जवल चेतना,
भारतीय मेधा का भाल वो।
थी गजब की जिजिविषा,
क्या गजब थी चाल वो।
छोङ पृथ्वी आज चला,
नक्षत्र बङा विशाल वो।।
थी
ह्रदय में एक लगन,
बस एक लक्ष्य था अटल।
भारत फिर से बने गुरू,
पूजे सारा विश्व सकल।
उसकी अग्नि की मार से,
गूंज दिशाएं जाती थी,
व्योम थर्राता आकाश से,
और हिल उठता था पटल।।
आज
अपनी धरा छोङ वो,
दूर चल दिया अनन्त में।
हंस उङा ज्यों त्याग सरोवर,
उङ चला त्यों ही दिगन्त में।
हे अद्भुत महामानव तुझको,
सदियों तक न भूल पायेंगे हम।
मनोज करे प्रणाम हे अब्दुल,
तुझको हर पल याद रखेंगे हम।।
- मनोज चारण (गाडण) 'कुमार'