
अक्सर हम खुली आँखों से भी सपने देखने लगते हैं। आखिर क्यों कहते हैं कि सपने तो सिर्फ नींद में ही आते हैं।
अक्सर व्यक्ति देखते-देखते अचानक कहीं ख्यालों में खो जाता है। दरअसल बात कुछ यूं है कि जब अचानक हम भविष्य के प्रश्न पर विचार करने लगते हैं तो वर्तमान में हमारे पास कौन खड़ा है? क्या हो रहा है? कुछ भी पता नहीं रहता, पता नहीं उस वक्त व्यक्ति इन सबसे इतना निर्लिप्त क्यों हो जाता है? मगर वास्तव में अगर वो उस वक्त ये सब नहीं सोचे, भविष्य के प्रश्न पर ध्यान न दे तो उसका जीना निरर्थक है।
वे लोग जो कहते हैं, “जो होना है वही होगा।” या फिर, “होगा वही जो मंजूरे खुदा होगा।” वे लोग अकर्मण्य होते हैं असल में, जिन्हे अपने पुरुषार्थ पर भरोसा नहीं होता। विश्वास नहीं होता जिन्हे अपनी बुद्धि पर, अपने पुरुषार्थ पर, अपने सामर्थ्य पर, अक्सर वही लोग भविष्य को भगवान के भरोसे छोड़ कर जीने की कोसिस करते हैं।
वास्तव में जो व्यक्ति इस प्रकार सोचते हैं हैं वे अपने भविष्य तो बर्बाद करने वाले ही हैं लेकिन उनका वर्तमान व भूत भी कम तकलीफदेह नहीं होता। क्यों ? आखिर क्यों होता है ये सब ? दरअसल वर्तमान को देखते हुए जो लोग भविष्य की नींव नहीं रखते वे लोग इस स्थिति का सामना करते हैं। हमें यदि भविष्य की लड़ाई लड़नी है तो फिर अभी जिस वर्तमान में हम जी रहे हैं इस वर्तमान में ही हमे उस आने वाले भविष्य के लिए नींव डालनी होगी। उस लड़ाई के लिए जो आने वाले कल में होने वाली है के लिए हमें अपने हथियार अभी से तैयार करने होंगे।
वे लोग जो कहते हैं कि खुली आँखों से सपने नहीं देखने चाहिए वो वास्तव में काम करने से डरते हैं। हमारे पूर्व राष्ट्रपति कलाम साब ने कहा था कि, “सपने वो नहीं होते जो हम सोते में देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं जो हमे सोने नहीं देते।” हमें खुली आँखों से ही सपने देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए अपनी तरफ से भरसक प्रयास करना चाहिए, चाहे सफलता मिलने की आशा हो या न हो।
तो उठो और देश को फिर वही सोने की चिड़िया बनाने का सपना देखो और जुट जाओ अपने आने वाले भविष्य के निर्माण में। तुममें वो आग है जिसका कोई जबाब दुनियाँ के किसी भी कोने में नहीं है................।
- मनोज चारण ‘कुमार’