इतिहासों से जाना जिसको, परम्परा से माना है।
सूत वाला कच्चा धागा, रिश्तों का ताना-बाना है।
इस धागे ने बांध लिया था, वचन बलि बलशाली का।
यही धागा चाबी बना था, नारायण की ताली का।
यही बना था मरहम पट्टी, कटी तर्जनी कान्हा की।
पांचाली का चीर बना यह, शान बना फिर कान्हा की।
भरी सभा में लाज बचायी, बस इक छोटा सा धागा था।
इस धागे की लाज की खातिर, केशव पैदल भागा था।
इस धागे पर छोङ दी चंवरी, पाबू* ने सम्मान किया।
खूब निभाया कौल राठौङी, रणखेतों में बलिदान दिया।
राखी की लाज बचाई भाई ने, जब भी बहनों ने याद किया।
संभल़ी** बन के दौङी करनल*** , शेखा**** कैद आजाद किया।
ये मौल नहीं था राखी का, पर कौल बहिन का भारी था।
सदा बचाते भाई लेकिन, अबकी बहन की बारी था।
ले उङी पीठ पर पूंगल़ राव को, करणी कौल निभाने को।
भाभी को दिया वचन था, चंवरी शेखा पहुंचाने को।
तो राखी की कीमत नहीं होती, है प्राण भी छोटे राखी से।
नारायण तक बंधते आये, इस पावन पूनिता साखी से।
भारत भू पर रहने वाले, हर भाई की जिम्मेदारी है।
जो है बहन हमारी यहां पर, वैसी ही कहीं तुम्हारी है।
तो अरज करूं बस इतनी, सब बहनो का मान करो।
जहां जरूरत पङे किसी को, रक्षा देकर प्राण करो।।
- मनोज चारण 'कुमार'
रतनगढ़ (राज.)
विशेष
*राजस्थानीलोकदेवतापाबूजीराठौड़
**राजस्थानीभाषामेंचीलपक्षी
***राजस्थानीलोकदेवीश्रीकरणी(चूहोंवाली)काएकनाम
****बीकानेररियासतकेएकठिकानेपूगलकाराजा