पिछले
दिनों में प्रतिलिपि वेबसाइट पर मैंने एक कहानी पढ़ी थी “पराई जमीन पर उगे पेड़”
कहानी मुझे पसंद आई और मैंने कहानी की लेखिका को इस कहानी के बाबत टिप्पणी लिखी थी। लेखिका
ने बताया कि उनका इसी
नाम से एक कहानी संग्रह छप चुका है। मेरे द्वारा इस कहानी संग्रह के बारे में ये जिज्ञासा
की गई कि, मुझे ये कहानी संग्रह
किस जगह से उपलब्ध हो सकता है कि मैं इसे खरीद सकूँ। ये बात हो चुकी थी और मैं इसे
भूल चुका था लेकिन एक दिन मुझे वाहट्सअप पर संदेश मिला कि लेखिका महोदया ने मुझे ये
कहानी संग्रह कूरियर द्वारा भेज दिया है,
ये उनका मेरे प्रति स्नेह था। मैंने इस कहानी संग्रह को कुछ दिन रखे-रखा क्योंकि मेरी
परीक्षा थी सो मैं पढ़ नहीं पाया इसे। आज परीक्षा खत्म होने के तीन दिनों में मैंने
इस कहानी संग्रह की सारी कहानियाँ पढ़ी तो मुझे लगा कि कुछ इस संग्रह पर भी लिखना चाहिए।
इस कहानी संग्रह में लेखिका ने कुल सोलह कहानियाँ
संग्रहीत की है। पहली ही कहानी पर इस संग्रह का नाम रखा गया है “पराई जमीन पर उगे पेड़”।
अपने कथ्य और कथानक से ये कहानी वाकई खूबसूरत रचना बन पड़ी है। कहानी में युवा पीढ़ी
में हो रही
रिश्तों की टूटन,
विवाहेत्तर संबंध,
युवा मन विपरीत लिंगी आकर्षण और भटकन को इस कहानी का विषय बनाया गया है। कथा नायक और
नायिका दोनों ही अपने-अपने समय में भटक रहे है, अपने रिश्तों को नकार रहे हैं, परंतु जब दोनों ही एक-दूसरे से अलग होते हैं तो उन्हे ज्ञात होता
है कि, यौनिक जीवन से इतर भावनाओं
का भी एक संसार होता है। कहानी अपनी सरल भाषा और प्रवाह के साथ बहती है, जो कि इस कहानी को ममता कालिया, उषा प्रियंवदा की कहानियों के समकक्ष खड़ी
करती है।
संग्रह में ठकुराईन, अनुत्तरित प्रश्न दो ऐसी कहानियाँ है जिनमें
संतान की चाहत में कथा नायक दूसरी शादी कर लेता है और फिर पहली पत्नी द्वारा भोगे जाने
वाले मनःसंताप को रेखांकित किया गया है। ठकुराईन द्वारा अपनी सौत के बेटे को अपनाना
और सावित्री द्वारा अपने पति की अर्थी पर छाती पीट कर रोना इस बात को प्रदर्शित करता
है कि, नारी मन हमेशा कोमल होता
है। लेकिन एक और कहानी “दिखावे की काट” को पढ़ने पर पता चलता है कि वही नारी जब अपने विवेक से काम लेती
है तो वह एक बड़ा फैसला भी कर सकती है। पिता कि मौत के बाद भाई-भाभी के व्यवहार से आहत
अंकिता अंत में फैसला लेती है कि वो अपने भाई-भाभी को अपने
पिता-माता की स्मृतियों को मिटाने नहीं देगी और वह उस घर में अपने हिस्से के रूप में
एक कमरा जो पिता का था उसे ठीक वैसे ही पुनः सजाती है जैसे पिता के समय में था। इसी कहानी में आजकल के
सामाजिक टूटते ढांचे और कर्मकांड पर भी चोट की गई है।
“तुम्हारी
कोई गलती नहीं” कहानी में लेखिका का आदर्शवाद लेखन पर प्रभावी होता
दिखता है जो कि सही भी है। बलात्कार पीड़िता का एक डॉक्टर बनना और फिर एक डॉक्टर का
उससे विवाह करना कहानी को एक अलग मोड़ देता है जो कि समाज कि वर्तमान जरूरत है। इसी
प्रकार की दूसरी कहानी में भी एक डॉक्टर के समझाने पर अपने मृत पुत्र की आँख और हृदय
को दान कर मीनल-प्रशांत के मध्यम से लेखिका पूरे समाज से एक अपील करती दिखाई देती है
कि, कर्मकांड के नाम पर भले
ही अंतिम संस्कार करो परंतु मृत शरीर के उन हिस्सों को दान जरूर करो जो किसी दूसरे
की ज़िंदगी बचाने के काम आए।
शेष कहानियाँ भी अपनी सार्थकता सिद्ध करती है।
कहानी संग्रह का आवरण-पृष्ठ खुद लेखिका का ही तैयार किया हुआ है जो कि नारी मन की विभिन्न
भाव-भंगिमाओं को व्यक्त करने में सफल होता है। कहानी संग्रह का कागज बहुत उत्तम श्रेणी
का और छपाई भी शानदार है जिसके लिए अरुणोदय प्रकाशन बधाई के पात्र है। मैं अपनी बड़ी
बहन और इस कहानी संग्रह की लेखिका श्रीमती विनीता राहुरीकर को बहुत बधाई देता हूँ इस
संग्रह के लिए और धन्यवाद भी ज्ञापित करता हूँ मुझे ये संग्रह भेंट करने के लिए। एक
और इसी प्रकार के संग्रह के इंतजार में..................शेष कुशल।
मनोज
चारण (गाडण) “कुमार”
लिंक
रोड़, वार्ड न.-3, रतनगढ़
(चूरु) राज.
पिन. 331022