आज लिखने को कुछ खास नहीं,
मन अस्थिर है, उदास नहीं,
क्या करूँ
कोई शक्ति मेरे पास नहीं,
जो संभाल
सकूँ इस देश को,
पर कुछ नहीं
कर पाता हूँ,
और कुछ होने
की भी आस नहीं।।
मेरा देश
तरक्की कर रह है,
हम बाईसवी
सदी मे जा रहे है,
कल तक हमारे
पास रिस्तों की भरमार थी,
आज अकाल है
रिस्तों का,
खो गए है,
मुहल्ले के दादा-दादी, ताऊ-ताई,
बडिया-बाबा, काका-काकी, भाई-भौजाई,
हम विकसित हो
रहे है,
मेरा देश
तरक्की कर रहा है।।
कभी मेरे देश
का किसान,
सुबह-सुबह एक
किलो पानी पीकर,
दो किलो पानी
लेकर,
तीन किलोमीटर
दूर अपने खेत मे जाता था,
निवृत होने, खेत संभालने,
परिण्डो मे पानी डालने,
अब सम्पूर्ण
स्वछ्ता अभियान है,
खेत से दूर
किसान है।
क्योंकि खेत
मे जाने से गंदगी फैलती है,
घर मे ही
रसोई और
कमरे के बीच
ही जाना है,
घर मे ही शौचालय बनाना है,
गंदगी बाहर
से घर मे आ गई,
मेरे देश की
परंपरा को तो ये तरक्की खा गई,
देश का किसान
घर से बाहर जाए तो जुर्माना,
और देश की
राजधानी मे रोज सुबह रेलवे पटरी के किनारे
दूर-दूर
राज्यों से पधारे,
लोगो की कोशिस हमे बताती है,
कि दिल्ली
कैसे हमे भरमाती है,
राजधानी मे
सब चलता है,
पर किसान जाए तो प्रदूषण
करता है,
देश का किसान
खेत से दूर हो रहा है,
हम विकसित हो
रहे है,
मेरा देश
तरक्की कर रहा है।।
देश मे भूकंप
आए तो,
बाढ़ आए तो,
हमला हो तो,
सरकारों को
देश कि जनता,
कर्मचारी और विद्यार्थी याद
आते है,
पर सरकारी
सांड इस देश को जाने कितना चुना लगाते है,
मंत्रीजी
को चढ़ने के
लिए गाड़ी, विमान चाहिए,
सरकारी बंगला
और फोन के साथ नौकर भी,
वोटो को लिए
तो पैसे लगाते है, पानी की तरह,
योजनाएँ ऐसी
ऐसी,
पेन्सन, लैपटाप, छात्रवृति, साड़ी, कंबल, संबल,
जाने क्यों
नेताजी हो जाते है इतने हंबल,
पर जब आपदा
आती है,
तो सरकारों की सांस फूल जाती
है,
तब इस देस को
बचाने सिर्फ सेना आती है,
पर सैनिक भी
तो किसी के लाल है,
यही तो बड़ा
सवाल है,
क्या किसी
नेता का सेना में लाल है,
सुभाष जैसे
नेता इस देश ने खो दिये है,
हम विकसित हो
रहे है,
मेरा देश
तरक्की कर रहा है।।
बंद हो चुके
विश्वविद्यालय फर्जी डिग्रियाँ बांटते है,
बेरोजगारों
से नोटों की फसल काटते है,
बेरोजगार भी
इसे बढ़ा रहे है,
देश की
तरक्की में अपना हिस्सा बटा रहे है,
राजा लूटने
में,
जनता ठगने में,
शासन बिकने में,
और सरकारें
सिर्फ टिकने में,
ही व्यस्त है,
देश की फिक्र
किसे है,
हम तो बस
जीने को जिये जा रहे है,
खून के आँसू
पिये जा रहे है,
जनता जानती
सब है,
पर मौन है,
जाने इस देश
का धनी-धोरी कौन है,
देश हमारा है,
इसके संसाधन
हमारी संपति है,
हमने अपना
हिस्सा ले लिया है,
अब बाकी जाये
भाड़ में,
हमे क्या,
हम तो इसी बात पर इतराते है,
कि,
मेरा भारत
चमक रहा है,
इंडिया
साईनिंग,
भारत निर्माण
हो रहा है,
पर झांक के
देखो तो सही देश के गलियारों में,
सिसकती माँ
भारती मिल जाएगी,
आँसू पोंछती, पूछोगी तो कहेगी, कि,
हम विकसित हो
रहे है,
मेरा देश
तरक्की कर रहा है।।