पिछले तीन दिनों से सब जन एक ही भाषा बोल रहे हैं की पाकिस्तान को मुंह तोड़ जबाब देना चाहिए। मेरा भी ये ही कहना है।परन्तु ये जबाब किस भाषा में हो, कैसा हो ? ये समझ नहीं पा रहा हूँ। कुछ लोग जोश में चिल्ला रहे है कि आर-पार की लड़ाई हो जानी चाहिए, कुछ म्यांमार जैसे ऑपरेशन की बात कर रहे है। सब के सब रक्षा विशेषज्ञ बने हुए है, किसी को भी पूरा पता नहीं कि हमारी फ़ौज कितनी है, असला कितना है, युद्ध कैसे होगा, कहाँ होगा, कितने दिन चलेगा ? बस सलाह दिए जा रहे है, वीर-रस के मेरे मित्रो को तो जैसे कारूं का खजाना मिल गया है। दे दना दन
कविता एँ लिख रहे हैं और वाह-वाही लूट रहे है। माफ़ कीजिये पर मेरे मन ने अभी तक हां नहीं भरी है कविता लिखने के लिए। मैं न तो डर में हूँ न शोक में, पर कुछ बात है जो मुझे शहीदों की चिताओं से हाथ तापने से रोक रही है। मेरा एक साधारण सा सवाल है उन सब कवियों से जिन्होंने युद्ध की मांग की है, कि भाई आपके बेटे,भाई, पिता, जमाई, पोते,मित्र यहाँ तक कि कोई पड़ोसी भी सेना में है क्या ? यदि है तो पुरे जोश के साथ युद्ध की मांग करो, पर यदि इनमे से आपका कोई भी सेना में नहीं है तो ये प्रलाप बन्द करो। जानते हो आप कि युद्ध अंतिम विकल्प होता है। पाकिस्तान के साथ आपको क्रिकेट
खेल ना है,चीनी मंगवानी है, लेदर जैकेट मंगवानी है, वहां पान भेजना है, सिंधु, व्यास, झेलम का पानी देना है, बस भेजनी है, ट्रेन भेजनी है, खवाजा की दरगाह का बीजा देना है। इन पर तो रोक नहीं लगाएंगे और सीधे युद्ध ? क्यों भाई हमारे सैनिक किसी के बच्चे नहीं, बाप नहीं है ? माफ़ करना दोस्तों लेकिन युद्ध की बात ही आसान है,करना बहुत मुश्किल है। एक बार दस मिनट के लिए फ्रीज में बैठ कर सियाचिन की ठण्ड को महसूस करने की कोशिश करना पता चल जायेगा कि हमारे सैनिक वहां किस ठण्ड को झेलते हैं। जरा घर पर लगे गैस चूल्हे को जलाकर उस पर पानी गर्म करके पीने की कोशिश करना पता चल जाएगा कि रेगिस्तान में मेरे सैनिक भाई कैसे जी रहे है। बात करना आसान है दोस्तों, युद्ध कोई भागवत कथा नहीं है जो सुन ली और सराह बैठे। मंच पर लड़ने, गोली और बंदूको और तोपों की बात करने वालों कभी थ्री नॉट थ्री को चला कर देखना पता चल जाएगा कि आपके बाजू और कंधो में कितना दम है। सामने से 50 मील की रफ़्तार से जब पत्थर भी आता है तो ताऊजी की तबेले चढ़ जाती है। सिर्फ मंचो पर गर्जन करने से कुछ नहीं होगा। सब लोग अपने स्थानीय सांसद को पत्र लिखो और उसे मजबूर करो कि वो पीएम को मजबूर करे पाकिस्तान से सब तरह के
व्यापार बंद करे। तुरंत इस देश की सेना को जो हथियार चाहिए वो खरीद कर दे। विकास कार्य भले रुक जाए पर सेना को मजबूत किया जाए। इसलिये इस विकट समय में युद्ध के उन्माद में कलपने वाले मेरे मित्र चिंतन करे और पहले खुद बलिदान धरा पर बढे फिर कहे की युद्ध करो। माफ़ करे लेकिन जितने भी लोगों ने कविता लिखी है किसी ने भी पहल करते हुए ये नहीं कहा कि मोदीजी ये मेरी एक माह की कमाई का चैक भेज रहा हूँ मेरी सेना के लिए इससे हथियार खरीदिए। अगर ये नहीं किया तो आपको युद्ध की बातें करने का कोई हक़ नहीं, शहीदों की चिताओं से चांदी कूटने की कोशिश बंद करो। - मनोज चारण "कुमार" रतनगढ़