मौन भले ही बेहतर होता,
पर हर बार मौन नहीं चलता है,
कुरूखेत आबाद हो जाता,
दुर्योधन मौन से पलता है।
सही समय पर मौन रह जाना,
भले हमारी नीति हो,
पर बने जब हथियार पाप का,
मौन रहना बङी अनीति है।
मौन मौन में द्रोपदी लुट गयी,
भिष्म-द्रोण जब मौन रहे,
मौन रहा जब यदुकुल सारा,
कस के हाथों छले गये।
माना मौन जरूरी लेकिन,
बोलना भी बहुत जरूरी है,
बात अङे जब आकर हक पे,
तब चिल्लाना मजबूरी है।
मौन रहे थे शंकर भी जब,
माँ सती ने भुगतान किया,
हक के लिए स्वयं उन्होने,
यज्ञ में अग्निस्नान किया।
मौन से बेहतर अस्त्र नहीं पर,
मौन हमेशा काम नहीं आता,
जब सभा जमी हो बहरों की,
तब बम विस्फोट किया जाता।।
मनोज चारण 'कुमार'