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नपुंसक योद्धा

30 जून 2016

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अल्लाऊदीन की सेना उफनती नदी की तरह बढ़ती ही जा रही थी। नुसरतखान के नेतृत्व में सल्तनत की विशाल सेना ने गुजरात की और कूच किया था। दिल्ली की सेना जिस और मुंह कर लेती उधर जाने कोई जलजला आ जाता था। उधर सिंध से लूगखान के साथ हजारों की संख्या में सैनिक रवाना हो चुके थे जो कि गुजरात के रास्ते में नुसरतखान की सेना से आ मिले और सेना का एक समंदर सा लहरा रहा था। दिल्ली की सेना ने गुजरात पर भयानक आक्रमण कर दिया। गुजरात के शासक चालुक्य भीमदेव ने बहुत ही बहादुरी से सामना किया लेकिन इस उफनते सैन्य समुद्र से वो पार नहीं पा सका। नुसरतखान ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण कर भारी लूट मचाई और राजा भीम की रानी कमलादेवी को कैद कर विजय के उपहार स्वरूप सुल्तान को भेंट किया।

सोमनाथ की लूट के बाद नुसरत और उलुग दोनों ही खंभात शहर में आए तो यहाँ पर एक विशाल मेला लगा हुआ था। नुसरत ने देखा कि यहाँ पर एक ऊंचे चौक पर कुछ लोगों को खड़ा कर रखा था और एक व्यक्ति ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था

-         जी हाँ भाइयों, ये है हूरे जमीं, नूरे नजर, लगाइए और दाम लगाइए और दुनिया के इस बेहतरीन गुलाम को ले जाइए।

-         सौ दिनार (एक बोला)

-         दो सौ दिनार (दूसरा बोला)

-         तीन सौ दिनार (पहले ने अपनी बोली बढ़ाते हुए कहा)

-         अरे यार ये ऐसी कौनसी बात है इस हिंजड़े में जो इसके इतने दाम लग रहे हैं (एक ने अपने पास खड़े दूसरे व्यक्ति से पूछा)

-         अरे क्या बताऊँ तुझे, ये तो कुदरत का अजीब इत्तफाक ही है कि ये हिंजड़ा है वरना तो किसी देश के राजा के महल की रानी भी इतनी खूबसूरत नहीं होगी जितना ये है (दूसरे ने अपनी राय प्रकट की)

-         पाँच सौ दिनार (इस बार एक रहीस सा दिखने वाला मारवाड़ी बोली में कूद पड़ा)

-         सेठजी आप भी इस मंडी में (एक जाना मारवाड़ी से पूछ बैठा)

-         क्या करूँ भाया घर पर जब से सेठानी सुरग गई है तब से कोई पानी लौटा झलाने और पंखा झलने वाला भी नहीं है (सेठ ने अपनी पीड़ा बताई)

-         तो सेठाँ ये हिंजड़ा ? (पूछने वाले की बोली में प्रश्न था)

-         क्या करूँ भाया, कोई इस उम्र में अपनी छोरी तो देने से रहा (सेठ ने अपनी पीड़ा फिर कही)

-         पर सेठाँ भोरा-भोर में इसका मुंह भी देखे तो ही पाप लगे, और आप इसे घर में ले जाना चाहते हैं (एक दूसरे व्यक्ति ने सेठ को हतोत्साहित किया)

-         सात सौ दिनार (एक ऊंचे कद का पठान बोली लगा बैठा)

पठान की बोली सुन कर सेठ ने और बोली बढ़ाने का मन त्याग दिया और मन ही में सोचा कि लोग ठीक ही कह रहे है, अच्छे घर का कोई ब्राह्मण रख लूँगा पास में तो कम से कम ये पाप तो नहीं लगेगा।

-         आठ सौ दिनार (एक व्यक्ति ने और बोली लगा दी)

आठ सौ दिनार की बोली सुन कर नुसरतखान की नजर चौक पर खड़े उस व्यक्ति पर पड़ी जिसके लिए सब बढ़-बढ़ कर बोली लगा रहे थे। नुसरत ने उलुग को दिखाते हुए मन ही मन सोचा अजब बात है इस हिंजड़े को क्या रूप पाया है साले ने।

उलुग भी उसे बस देखता ही रह गया। तीखे नैन-नक्स और बिल्कुल दूधिया रंग कि नाखून लगे तो खून निकल पड़े। पूरे ऊंचे कद के इस व्यक्ति को यदि महिला की पोशाक पहना दी जाए तो किसी भी महिला को शर्म से हटना पड़े, इतनी खूबसूरती। गदराया भरा-भरा शरीर और मदमत्त आँखें जो किसी भी व्यक्ति को नशे में लाने के लिए काफी थी।

-         नुसरत मियां ये तो खुदा करीम का अजीब मज़ाक है इसके साथ (उलुग कह उठा)

-         हाँ उलुग मियां है तो ये खुदा बंद का मज़ाक ही जो उसने इतना रूप देकर भी इसे औरत नहीं बनाया (नुसरत ने कहा)

-         खैर अब आप क्या सोच रहे हो जनाब (उलुग ने पूछा)

-         जाओ उलुग और इसके मालिक को एक हजार दिनार देकर कहो ये हमारा हुआ (नुसरत ने कहा)

उलुग गया और उस बोली लगाने वाले को एक तरफ ले जाकर एक मखमली थैली पकड़ा कर पूरी बात बता दी। उस आदमी ने मन ही मन सोचा कि ये तो मेरा भाग्य अच्छा है कि मुझे एक हजार दिनार मिल तो रहे हैं वरना तो ये लोग मुझसे यूं ही इसे छीन सकते थे। वो बिना किसी हील-हुज्जत के उसे उलुग को सौंप कर चुप-चाप वहाँ से चल पड़ा। बोली लगाने वाले को यूं गुप-चुप सौदा करते देख पठान ने हल्ला मचाने की कोशिस की तो उलुग ने तलवार निकाल ली और उच्च स्वर में घोषणा कर दी कि ये अब सल्तनत की अमानत है। सल्तनत का नाम सुनते ही सब लोग अपनी जगह पर बुत से बन गए और उलुग उस को लेकर नुसरत के पास आ गया।

सुल्तान आज बहुत खुश था। सिर्फ इसलिए नहीं कि गुजरात पर उसका कब्जा था, बल्कि इसलिए भी था कि कमलादेवी जैसी खूबसूरत औरत उसके हरम में आ गई थी। सुल्तान ने आज बड़ा भारी दरबार सजाया था, और नुसरत और उलुग को इस दरबार में सम्मानित किया था। अपने सम्मान के बाद दोनों ही सेनापतियों ने सुल्तान से कहा –

-         ऐ जहां के मालिक आपकी नजर करने के लिए हमारे पास एक बेश कीमती तोहफा है, आपकी इजाजत हो तो पेश किया जाये।

-         आज हम बहुत खुश है, पेश किया जाये (सुल्तान ने कहा)

नुसरत ने उलुग की तरफ एक गहरी नजर से देखा ही था, कि उलुग चुप-चाप दरबार से बाहर गया और लौटकर आया तो एक पर्दादार पालकी ले कर लौटा था।

-         क्या है इसमें (सुल्तान ने व्यग्रता के साथ पूछा)

-         मेरे मालिक इस पालकी में आपकी नजर करने के लिए खुदाया-करीमी का एक नायाब लेकिन अजीब शाहकार है (नुसरत ने कहते हुए पालकी का पर्दा हटा दिया)

पालकी का पर्दा हटते ही उसमें से उतर कर आने वाले उस पुरुष भेष धारी व्यक्ति को पूरे दरबार ने देखा और सब देखते ही रह गये। जैसे नुसरत ने बताया था वैसा ही दिखाई दिया। लेकिन सुल्तान अभी तक अप्रभावित नजर आया।

-         ये क्या बेहूदापन है नुसरत। एक आदमी को तुम औरतों की पर्दादारी वाली पालकी में लेकर आए हो (सुल्तान गुस्से में था)

-         हाँ जहांपनाह क्योंकि ये भेष से पुरुष है और रूप से पूरी औरत है (नुसरत ने कहा)

-         क्या मतलब है तुम्हारा (सुल्तान ने क्रोध करते हुए कहा)

-         मेरे मालिक ये न तो आदमी है और न ही औरत है, ये एक हिंजड़ा है (नुसरत ने खुलासा किया)

-         क्या ? (सुल्तान स्तब्ध रह गया)

-         हाँ मेरे मालिक, इसीलिए इसे इस पालकी में लाया गया था (नुसरत ने कहा)

-         ठीक है इसे हमारे हरम में तैनात कर दिया जाये और यहाँ के कायदे बता दिये जाये (सुल्तान ने दरबार खत्म करने की घोषणा करते हुए कहा)

सुल्तान उसे पिछले छै महीनो से देख रहा था और परख रहा था। वो न सिर्फ खूबसूरत ही था बल्कि तलवारबाजी में भी बहुत ही अच्छा था। सुल्तान अब रोज उसके साथ एकांत में तलवारबाजी करता था। धीरे-धीरे वो सुल्तान का एकदम खास व्यक्ति बन गया था। सुल्तान ने उसे इस्लाम धर्म कबूलवा दिया था और उसे नाम दिया था मलिक काफ़ूर। सुल्तान उसे हजार दिनार काफ़ूर कहने लगा था।

सुल्तान पिछले काफी दिनों से देवगिरि पर आक्रमण करने की सोच रहा था, लेकिन उसे कोई अच्छा सिपाहसालार नहीं मिल रहा था। एक दिन सुल्तान इसी उधेड़बुन में खोया अपने हरम में चक्कर लगा रहा था कि –

-         जहांपनाह कुछ परेशान हैं ? (मलिक काफ़ूर ने पूछा)

-         हाँ मलिक, देवगिरि के रामदेव को सबक सिखाने की जरूरत है और फौज को संभालने वाला कोई नहीं दिख रहा (सुल्तान ने कहा)

-         मेरे मालिक यदि अपनी नजर-ए-इनायत कर दे तो गुलाम इस काम को करने में फ़क्र महसूस करेगा (मलिक ने हिम्मत कर के कहा)

-         तुम ? मलिक तुम ? (सुल्तान हंसने लगा)

-         मेरे मालिक आपका हंसना बजा है, एक हिंजड़े को फौज की कमान कैसे दी जा सकती है ? लेकिन मेरे आका आपको देवगिरी और रामदेव दोनों आपके कदमों में मिलेंगे (मलिक ने फिर से हिम्मत दिखाई)

-         तुम अच्छे लड़ाके हो मलिक ये मैं जानता हूँ, लेकिन तलवारबाजी के कुछ हुनर सीखना और बात है, फौज का नायक बनना और बात है (सुल्तान ने कहा और उसे शराब लाने का आदेश देकर फिर से चक्कर लगाना शुरू कर दिया)

दूसरे दिन तलवारबाजी के अभ्यास के दौरान मलिक ने सुल्तान को अपना असली रूप दिखाया। इतने दिनों तक तो वह सुल्तान को सिर्फ अभ्यास करवाता रहा था, पर आज उसने सुल्तान को एकदम विवश कर दिया और अंतिम वार में तो उसने सुल्तान की तलवार के दो टुकड़े कर दिये थे। सुल्तान उसके इस करतब से बहुत प्रभावित हुआ और उछल कर उसके नजदीक गया और धीरे से उसके होठों को चूम लिया।

दरबार खचा-खच भरा हुआ था, तिल धरने को भी जगह नहीं थी, आज सुल्तान देवगिरी अभियान के लिए सेनानायक की घोषणा करने वाला था। सभी दरबारी खुसर-फुसर कर रहे थे कि, -

-    होशियार (अचानक से दरबान चिल्लाया और उसके चिल्लाते ही पूरे दरबार में खामोशी फैल गई कि सुई गिरे तो भी टंकार सुन जाए)

        सुल्तान भारी कामदार लबादा ओढ़े, पन्ने और माणिकों से जड़ी पगड़ी पहने अपनी गंभीर चाल में चलता हुआ दस सीढ़ियों को चढ़ कर बनाए गए शानदार तख्त पर बैठ गया। सुल्तान अल्लाऊदीन खिलजी एक भरा-पूरा और मजबूत      कद-काठी का व्यक्ति था। उसकी आँखें हरदम लाल रहती थी, और काली लंबी दाढ़ी भी उसके व्यक्तित्व को एक अलग ही शान प्रदान कर रही थी।

-    देवगिरी पर चढ़ाई करनी है और वहाँ के राजा रामदेव को बताना है कि सल्तनत के खिलाफ हथियार उठाने का क्या अंजाम होता है। इस अभियान के लिए सल्तनत की फौज की कमान हम हजार दिनारी काफ़ूर को सौंपते हैं (सुल्तान के ये घोषणा करते ही पूरे दरबार में फिर से कोलाहल सा मच गया)

-    आलमपनाह इजाजत हो तो एक इल्तजा करूँ (मुज्जफर बेग नाम के एक दरबारी ने कहा)

-    कहो (सुल्तान मन ही मन समझ तो गया कि बेग क्या कहने वाला है, उसने जलती सी नजर डालते हुए कहा)

-    शाहे-जहां आपके जलाल से पूरी दुनियाँ खौफ खाती है, पठान और मंगोल दिल्ली की तरफ मुंह करके सोना भी नहीं चाहते, ऐसे में आपकी फौज की कमान एक हिंजड़े के हाथ में सौंपना आपकी शान के खिलाफ होगा मेरे मालिक (बेग डरता-डरता कह गया)

-    जंग का हुनर और बहादुरी किसी के बाप की जागीर नहीं है, ही बहादुरी के लिए आदमी या औरत होना जरूरी है। इस सल्तनत ने रज़िया बेगम जैसी शूरवीर औरत को इसी गद्दी पर देखा है। मलिक काफ़ूर की तलवार का मुक़ाबला करने की इस दरबार में किसी की भी हिम्मत नहीं है, हमारा फैसला इस सल्तनत के लिए फख्र का मौका लाएगा इसका हमें यकीं है (सुल्तान ने बात को खत्म करते हुए कहा)

        सभी दरबारी चुपचाप चले गए। मलिक मन ही मन बहुत खुश था। सुल्तान के लिए आज उसने राजपूताना से खास मँगवाई गई शराब को सुराही में ठंडा कर रखा था। बकरे का भुना हुआ गोश्त और भांति-भांति के पकवान भी सोने-चांदी के थालों में सजाये हुए थे। पलंग पर मखमली चद्दर और गाव-तकिये लगाए हुए थे। पूरे कमरे में भीनी-भीनी गुलाबी खुशबू फैली थी। मलिक भी आज गुलाबी अचकन पहने हुए था। सुल्तान कमरे में घुसा तो उस पर नशा तारी हो गया था। सुल्तान ने अपने भारी-भरकम लबादे को एक तरफ फेंक दिया और पगड़ी भी उतार कर मलिक के हाथों में सौंप दी।

-    जहांपनाह आज कुछ थके से लग रहे हैं (मलिक ने अदा से पूछा)

-    हाँ काफ़ूर, आज शिकार पर बहुत दूर तक निकल गए थे तो थकान कुछ ज्यादा हो रही है (सुल्तान ने कहा)

-    मेरे मालिक आपके लिए आज खास इंतजामात किए है

     कहते हुए काफ़ूर ने एक चाँदी के गिलास में इलायची की सुगंध वाली शराब का जाम तैयार कर दिया और सुल्तान उसे एक ही झटके में पी गया। ठंडी-ठंडी तेज शराब ने अपना असर दिखाया, सुल्तान ने एक जाम और मांग लिया। मलिक ने दूसरा जाम दिया और भुना हुआ गोश्त सुल्तान के सामने कर दिया। सुल्तान ने एक टुकड़ा उठा लिया और धीरे-धीरे खाता रहा। मलिक सुल्तान के पीछे खड़ा हो कर धीरे-धीरे उसके कंधे दबा रहा था। सुल्तान पर नशा पूरी तरह हावी हो गया था। सुल्तान ने मलिक का हाथ पकड़ लिया और उसे चूम लिया। मलिक के पूरे शरीर में रौंकटे खड़े हो गए थे। सुल्तान बिल्कुल भी हो में नहीं था, रात मलिक पर भारी पड़ी।

     फौज किले के सामने मैदान में अपने पूरे साजो-सामान के साथ खड़ी थी। ऊंचे मंच पर सुल्तान एक सिपाही का बाना पहने, बख्तरबंद पहने, ढाल और तलवार लिए खड़ा था। सुल्तान के पास में ही मलिक काफ़ूर खड़ा था। वहीं पर और भी कई सिपहसालार खड़े थे। सुल्तान ने अपनी सेना को संबोधित किया और सेना को मलिक काफ़ूर में सुल्तान की छाया देखने का आदेश दिया। सुल्तान ने मलिक को अपनी तलवार और ढाल सौंपी और सबके सामने उसके माथे को सूंघा और चुंबन किया। मलिक ने भी सुल्तान को पाबौस किया और सुल्तान के हाथ पर एक चुंबन किया।

-    हमने देवगिरी पर फतह कर ली है जहांपनाह (एक सैनिक अदब से सुल्तान के सामने झुककर पाबौस करते हुए उसे देवगिरी विजय की सूचना दे रहा था)

-    और क्या खबर है (सुल्तान ने पूछा)

-    जहांपनाह देवगिरी का राजकुमार शंकरदेव युद्ध में मारा गया और सल्तनत की फौज ने पूरे देवगिरी पर कब्जा कर लिया है (सैनिक ने कहा)

-    मलिक की क्या खबर है ? (सुल्तान ने व्यग्रता से पूछा)

-    जहांपनाह वो जल्द ही दिल्ली पहुँचने वाले हैं (सैनिक ने अदब से कहा। सुल्तान ने इस सूचना के लिए अपने गले में पहनी हुई तीनलड़ी मणियों की माला सैनिक को बख्सीस में दे दी)

     पूरी दिल्ली आज दुल्हन की तरह से सजी हुई थी। देवगिरी पर विजय करने के बाद मलिक काफ़ूर आज पहली बार दिल्ली में लौट रहा था। सब जगह उसी का चर्चा था।

-    कहते हैं काफ़ूर बहुत वीरता से लड़ा और रामदेव के बेटे को युद्ध में अपने भाले के एक वार से ही खत्म कर दिया था (एक जन कह रहा था)

-    हाँ भाई मैंने भी ये सुना है (दूसरे ने बात को प्रमाणित किया)

-    पर भाई एक बात समझ में नहीं आई, सुल्तान ने इतने सारे सिपहसालारों के होते हुए एक हिंजड़े को फौज का नायक क्यों बनाया (तीसरे ने प्रश्न किया)

-    अरे यार मरवाओगे क्या ? (पहले ने कहा)

     सुल्तान खुद चल कर शहर के बाहर तक आया अपने शूरवीर योद्धा का स्वागत करने के लिए। शाही लवाजमें के साथ पहली बार किसी सेनानायक का स्वागत किया जा रहा था। विशेष दरबार का आयोजन किया गया और मलिक काफ़ूर को नायब की उपाधि दी गई। किसी भी हिंजड़े को दिया गया ये अब तक का सबसे बड़ा सम्मान था। कुछ ही दिनों में मंगोलों ने आक्रमण कर दिया तो मलिक मंगोलों को दबाने के लिए भेजा गया और अमरोहा के युद्ध में मलिक ने मंगोलों को भी धूल चटा दी। मलिक की सुंदरता पर तो सुल्तान मुग्ध था ही, अब उसकी वीरता का भी वो कायल हो गया था। सुल्तान ने मलिक को अब दक्खन को जीतने के लिए भेजा। मलिक ने वारंगल पर आक्रमण किया और भयंकर लूट मचाई। वारंगल के खजाने से उसने दुनिया का सबसे नायाब हीरा कोहिनूर लूटा जो उसने सुल्तान को भेंट किया और सुल्तान का सबसे चहेता बन गया था।

     होयसलों को पराजित करने के बाद उसने अंतिम यादव राजा हरपाल को भी युद्ध में खत्म कर दिया। सुल्तान ने मलिक को ताज-उल-मलिक-कफूरी की उपाधि दी। दक्खन की अपार सफलता के बाद तो मलिक सुल्तान पर पूर्ण रूप से हावी हो चुका था। उसने सुल्तान को हर वक्त शराब के नशे में चूर रखना और दरबार में भी अपनी ही चलाना शुरू कर दिया। मलिक ने सुल्तान को उसकी पत्नी मालिका-ए-जहां और उसके बेटों के खिलाफ भड़का दिया कि वो सुल्तान को मारना चाहते हैं और उन्हे कैद करवा दिया।

     एक दिन उसने सुल्तान को बहुत ज्यादा शराब पिला दी, सुल्तान को बिल्कुल भी होश नहीं रहा, अगले ही दिन सुबह सुल्तान की मौत हो गई और पूरी सल्तनत में ये बात फैल गई कि मौत से पहले सुल्तान के साथ सिर्फ मलिक ही था। दिल्ली की गलियों में मलिक के खिलाफ माहौल बन रहा था।

-    हो सकता है मलिक ने ही सुल्तान को मार डाला हो (एक सैनिक ने कहा)

-    लेकिन भाई सुल्तान को तो मलिक से बेहद प्यार था (दूसरे सैनिक ने कहा)

-    हाँ पर सत्ता और गद्दी के लिए तो इस दिल्ली में लोगों ने अपने बाप तक को नहीं छोड़ा भाई (एक बूढ़े से सैनिक ने अपना अनुभव सुनाया)

 

     दिल्ली में ये चर्चा हो ही रही थी कि, मलिक ने सुल्तान की मौत का फायदा उठाया और सुल्तान कैद दोनों बेटों खिज़्रखाँ और शादखाँ को अंधा करवा दिया। मलिक ने सुल्तान की बेगम मलिका-ए-जहां से निकाह कर लिया और सुल्तान के तीन साल के बेटे उमरखान को सिंहासन पर बैठा दिया था और खुद उसके संरक्षक के रूप में दिल्ली पर राज करने लगा।

     दिल्ली के मुख्य बाजार में आज गहमा-गहमी नहीं थी। सभी लोग अपने घरों में दुबके पड़े थे। सल्तनत में सुल्तान की मौत को अभी चालीस दिन भी नहीं बीते थे कि, छत्तीसवें ही दिन किसी ने काफ़ूर की हत्या कर दी। बाजार में किसी भी अनहोनी से बचने के लिए लोग छुपे पड़े थे। कुछ ज्यादा ही बहादुर थे वो ही बाहर निकल रहे थे, उन्हीं में से कुछ बातें कर रहे थे –

 

-    अरे सुना तुमने मलिक नायब की हत्या हो गई (एक जने ने कहा)

-    हाँ भाई सुना मैंने बड़ी बेदर्दी से मारा बेचारे को (दूसरे ने कहा) 

-    अरे यार मारा किसने है उसे कुछ पता चला (एक और व्यक्ति पूछ बैठा)

-    सुना है सुल्तान के ही किसी खास अंगरक्षक ने उसे मारा है (पहले ने फुसफुसाते हुए कहा)

-    था तो हिंजड़ा पर बहुत बहादुर था वो, सल्तनत को ठीक दक्खन तक फैला दिया उसने, आज तक उस जैसा बहादुर कोई नहीं हुआ सल्तनत में (चुप-चाप बैठे एक व्यक्ति ने इधर-उधर देखते हुए अपनी जुबां खोली)

-    हाँ भाई खुद सुल्तान ने भी तो कहा था कि बहादुरी पर किसी के बाप की जागीरी थोड़े होती है, ये तो जन्मजात ही होती है (पहले ने समर्थन किया)

-    सही कहा तुमने (दूसरे ने हाँ में हाँ मिलाई)

 

सभी यूं बातें करते हुए चुप-चाप अपने-अपने रास्ते चल पड़े। सूरज पूरब से पश्चिम की तरफ बढ़ चला था, दिल्ली के किले पर सल्तनत का हरा झण्डा लहरा रहा था। ठंडी हवा चल रही थी, वहीं गद्दी और राज के लिए हो रही हत्याओं का मूक गवाह बना झण्डा हवा से फड़फड़ा रहा था, और देख रहा था एक नपुंसक बहादुर के उठते जनाजे को जिसने दिल्ली की सरहदों को हिमालय से समुद्र तक और हिंदुकुस से बंगाल तक फैला दिया था। एक ऐसा सिपाही जो न सिर्फ  बहादुर ही था बल्कि बहुत ही सुंदर व्यक्तित्व का धनी और सुल्तान अल्लाउदीन के एकांत का भी साथी था। 

 

मनोज चारण (गाडण) कुमार

लिंक रोड़, वार्ड न.-3, रतनगढ़ (चूरु)

मो. 9414582964

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झुर्रियों वाला वो कांतिहीनचेहरा मुझे आज तक याद है। झुकी हुई कमर, हाथ में बल खायी लकड़ी और सर पर सरकंडे सेबना खरिया लिए, बकरियों को हाँकते हुए जब ज्याना खेत जाती तोलगता मानो खुद गरीबी साकार हो धरती पर आ गयी है। एक काला मरियल सा बैल और टूटी हुईसी गाड़ी भी थी ज्याना के पास जिसे हांक कर पदमाराम खेत जया कर

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राजस्थानी साहित्य के शिखर-पुरुष थे किशोर कल्पनाकान्त

4 अगस्त 2016
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किसीभी भाषा का सौभाग्य होता है जब उसमे लिखने वाला उस भाषा को जीने लग जाता है।हिन्दी का सौभाग्य था कि भारेंतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद और जयशंकरप्रसाद हिन्दी को जीते थे। अंग्रेजी का सौभाग्य था कि शेक्सपियर ने उसको जीना शुरूकर दिया था। उसी तरह राजस्थानी का भी सौभाग्य ये था कि उसे जीने वाला एक विलक्षणव

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राजस्थानी साहित्य के शिखर-पुरुष थे किशोर कल्पनाकान्त

9 अगस्त 2016
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किसीभी भाषा का सौभाग्य होता है जब उसमे लिखने वाला उस भाषा को जीने लग जाता है।हिन्दी का सौभाग्य था कि भारेंतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद और जयशंकरप्रसाद हिन्दी को जीते थे। अंग्रेजी का सौभाग्य था कि शेक्सपियर ने उसको जीना शुरूकर दिया था। उसी तरह राजस्थानी का भी सौभाग्य ये था कि उसे जीने वाला एक विलक्षणव

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कवित्व की शक्ति

9 अगस्त 2016
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नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा। कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा॥                     -  अग्निपुराण             अर्थात इस लोक में मनुष्य होना बहुत ही दुर्लभहोता है, उसमें भी मनुष्यहोकर विद्या-अर्जन करना और भी दुर्लभ काम होता है, विद्यावान होकर कवि होना उससे भी दुर्लभ और कवि हो

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क्या सांस्कृतिक पतन हो गया है युवाओं का ?

9 अगस्त 2016
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आज के दौर में हरदूसरा व्यक्ति युवा वर्ग पर एक गंभीर आरोप बड़े छिछले तरीके से मढ़ देता है। युवापीढ़ी में संस्कार नहीं है,युवा पीढ़ी संस्कृति के पतन में अपना योगदान दे रही है, युवा पीढ़ी पश्चिम का अंधानुकरण कर रहीहै, युवा पीढ़ी ये कर रहीहै युवा पीढ़ी वो कर रही है। हर सामाजिक विचलन के लिए युवा पीढ़ी को दोषी ठह

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क्रान्तिकारी केशरीसिंह बारठ

11 अगस्त 2016
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   क्रांति शब्द को सुनते ही ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने कानो में गरम-गरम  अंगारे डालें हैं , जैसे शांत वातावरण में अचानक आंधी आ गई है, या जैसे किसी ने शांत मंदिर में तेज घंटा बजा दिया है और नाद से पूरा मंदिर गूँज उठा हो। वास्तव में क्रांति शब्द में बेहद   आकर्षण है, जो खींचता है अपनी  ओर लेकिन यह खि

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कच्चे धागे की डोरी

19 अगस्त 2016
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इतिहासों से जाना जिसको, परम्परा से माना है। सूत वाला कच्चा धागा, रिश्तों का ताना-बाना है। इस धागे ने बांध लिया था, वचन बलि बलशाली का। यही धागा चाबी बना था, नारायण की ताली का। यही बना था मरहम पट्टी, कटी तर्जनी कान्हा की। पांचाली का चीर बना यह, शान बना फिर कान्हा की। भरी सभा में लाज बचायी, बस इक

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कहने को आजाद हैं हम

19 अगस्त 2016
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हम आजाद हैं सिर्फ, सरकारों को कोसने में, रिश्वतखोरी फैलाने में, खाली जमीने हथियाने में, कुर्सियां कब्जाने में। हम आजाद हैं, बस कचरा फैलाने को, दूजों की गलतियां बताने को, मयखाने सजाने को, झूठ को बचाने को। हम आजाद हैं, बस बस्तियां जलाने को, झूठा हल्ला मचाने को, सांम्प्रदायिकता फैलाने को,

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गरीबी पाप नहीं

22 अगस्त 2016
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मेरे हिस्से की गरीबी झेल रहा हूं, जबसे पैदा हुआ बस मिट्टी से खेल रहा हूं। माना कि गरबी पाप नहीं है, यह कोई बहुत घिनोना श्राप नहीं है, पर इसको कैसे पून्य बता दूं, क्या बीत रही है गरीबी में मुझ पर, सबको सब कुछ कैसे बता दूं। बचपन में तरसा था हरदम, कॉपी, पेंसिल, बरते,

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मौन

23 अगस्त 2016
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मौन भले ही बेहतर होता, पर हर बार मौन नहीं चलता है, कुरूखेत आबाद हो जाता, दुर्योधन मौन से पलता है। सही समय पर मौन रह जाना, भले हमारी नीति हो, पर बने जब हथियार पाप का, मौन रहना बङी अनीति है। मौन मौन में द्रोपदी लुट गयी, भिष्म-द्रोण जब मौन रहे, मौन रहा जब यदुकुल सारा, कस के हाथों छले गये। म

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नागदमण : कालीयै मर्दन

24 अगस्त 2016
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जन्माष्टमी पर विशेष रूप से मेरे खंड-काव्य से कुछ घनाक्षरीनटखट नंदलाला खेलत है गैंद तीर, गैंद जाय मारी देखो जमुना के नीर में। तुमहि अब जाओ लाला, गैंद हमारी लाओ, मार दई कालीयै के दह वाले नीर में। कस लई कछनी तो कूद गए दह मांही, तरन लगे है कान्हा जमुना के नीर में। श्याम सलौने को जो देखा नागिन भय भई,

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लुप्त हो चुके है भारत के मूल खेल

29 अगस्त 2016
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आज 29 अगस्त है, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिवस। आज के दिन को ज़ोर-शोर से हमारे देश में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। खेल, जो जीवन का एक अभिन्न अंग है। खेल, जो हमारे खून में समाया हुआ है। हमारे तीज-त्योंहार से खेल जुड़े हुए हैं। मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरे ननिहाल में गण

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कश्मीर से सवाल

31 अगस्त 2016
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तुम रजधानी में आये आकर माता को गाली दी। उस माँ को गाली दे डाली, जिसने तुमको थाली दी। भरी हुई थाली में तुमने छेद किया है बोली से। इससे बेहतर हत्या कर देते बंदूक की गोली से।सीमा पार के आतंकी सीने पे हमने झेले है। कौन बचाये सांपो से बांहो में जो फन फैले हैं। जिनकी बातें जहरीली, सांसो में गरल उफनता

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स्वप्न वो जो हमें सोने न दे !

31 अगस्त 2016
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अक्सर हम खुली आँखों से भी सपने देखने लगते हैं। आखिर क्यों कहते हैं कि सपने तो सिर्फ नींद में ही आते हैं। अक्सर व्यक्ति देखते-देखते अचानक कहीं ख्यालों में खो जाता है। दरअसल बात कुछ यूं है कि जब अचानक हम भविष्य के प्रश्न पर विचार करने लगते हैं तो वर्तमान में हमारे पास क

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दोहरी छद्म-धर्मनिरपेक्षता की राजनीति क्यों ?

1 सितम्बर 2016
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आज के अखबारों में एक छोटी लेकिन वास्तव में बहुत बड़ी खबर पढ़ी। खबर थी गोवा की। गोवा जो कि भारत के एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात है। कुछ कामों के लिए कुख्यात भी है, उन पर हम चर्चा नहीं करेंगे। आज चर्चा कुछ नई बात पर होनी चाहिए। जिस गोवा से मनोहर

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सजा नहीं सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए

2 सितम्बर 2016
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हमाम में सब नंगे हैं। कहावत बहुत पुरानी है, शायद इतनी कि उस वक्त जब ये बनी होगी तब तो हमारे पूर्वजों के भी पूर्वज भी पैदा नहीं हुए होंगे। कहावतों की बातें तो होती रहेगी हमेशा लेकिन ये कहावत कुछ अलग ही है। क्रिकेट देखते हुए लोग अक्सर आपस में उलझ जाते हैं दो टीमों को लेकर, दोस्तों में मन-

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समर्पण ! क्यों करें हम ?

7 सितम्बर 2016
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अक्सर हमारा लोगों से मतभेद क्यों हो जाता है ? क्यों हम समय से समझौता नहीं कर सकते ? अपने आपको समयचक्र में समाहित क्यों नहीं कर लेते? आखिर हर जगह, हर वक्त और हर किसी व्यक्ति पर हम अपने फैसले थोंप तो नहीं सकते। तो फिर क्यों हम हर बार यही चाहते हैं कि सामने वाला

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नजरिया अपना-अपना

9 सितम्बर 2016
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जीवन के बारे में, जीवन शैली के बारे में, किसी का भी अपना एक अलग फलसफा हो सकता है, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम हर किसी के दर्शन को अक्षरस ग्रहण कर लें। आखिर क्यों ? हमें भी सोचने, समझने, तर्क करने और अपने तर्कों को प्रकट करने कि शक्ति प्राप्त है। भगवान ने हमें यह सब इसलिए इनायत किया है कि हम हर उस

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भारतीय धर्म और दर्शन की घोषयात्रा क शंखनाद थी शिकागो की धर्म-सभा

10 सितम्बर 2016
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भारतीय धर्म और दर्शन की घोषयात्रा का शंखनाद थी शिकागो धर्म-सभा मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से विदेशी गुलामी से ग्रसित हुए भारतीय राष्ट्र-सूरज पर अंग्रेजी साम्राज्य का यूनियन जैक रूपी राहु ग्रहण लगा रहा था। भारतीय जन मानस में ये बात घर कर चुकी थी कि अंग्रेज़ हमसे शायद श्रेष्ठ हैं। एक तरफ जहां भार

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हिन्दी

14 सितम्बर 2016
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हिन्दी हिन्द में हुई पराई, लोग अपनाते अंग्रेजी। नित नये बदलते चोले, पूत हो गये रंगरेजी। तुलसी-सूर-मीरां की भाषा, क्रंदन करती दिखती है। कवि चंद के छंदो में भी, अब अग्रेजी बिकती है। मैथिल कोकिल नहीं कूकती, मौन साध कर बैठी है। सौतन बनी परायी भाषा, सिंहासन पर ऐंठी है। प

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युद्ध का उन्माद बंद करो

20 सितम्बर 2016
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पिछले तीन दिनों से सब जन एक ही भाषा बोल रहे हैं की पाकिस्तान को मुंह तोड़ जबाब देना चाहिए। मेरा भी ये ही कहना है।परन्तु ये जबाब किस भाषा में हो, कैसा हो ? ये समझ नहीं पा रहा हूँ। कुछ लोग जोश में चिल्ला रहे है कि आर-पार की लड़ाई हो जानी चाहिए, कुछ म्यांमार जैसे ऑपरेशन की बात कर रहे है। सब के सब रक्ष

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