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कवित्व की शक्ति

9 अगस्त 2016

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नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा।

कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा॥

                     -   अग्निपुरा 

    

       अर्थात इस लोक में मनुष्य होना बहुत ही दुर्लभ होता है, उसमें भी मनुष्य होकर विद्या-अर्जन करना और भी दुर्लभ काम होता है, विद्यावान होकर कवि होना उससे भी दुर्लभ और कवि होकर कवित्व की शक्ति प्राप्त करना तो महान दुर्लभता है।

 

सीधा सा अर्थ है, की चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद हमे ये मनुष्य शरीर मिलता है और हमारा विद्या-ग्रहण करना भी एक महानता का काम होता है। विद्यावान तो इस दुनिया में बहुत से मिल जाते है लेकिन उन लोगों में कवि बनने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है। हाँ कुछ लोग अभ्यास करके कवि बन जाते है, लेकिन कवि बनना और कवि होना बहुत अलग होता है। किसी भी भाव को जीवंत करना कवि ही कर सकता है, उगते सूर्य को करोड़ों लोग देखते है, ढलते भी देखते है, पंछियों का कलरव बहुत लोग सुनते है, लेकिन इस सबके साथ तादात्म्य सिर्फ कवि ही कर सकता है। किसी के आंसुओं को अपनी आँखों से बहाने का काम कवि ही कर सकता है। किसी के दुख को बांटने का काम तो बहुत से लोग कर सकते हैं, लेकिन किसी के दुख से खुद को साझा करने का जो हुनर कवि के पास होता है वैसा हुनर होना ही उसे समाज में अलग मुकाम पर खड़ा कर देता है। आम जन को नहीं दिखता, आमजन को नहीं महसूस होता वो कवि को दिखता है, महसूस होता है। इसलिए कवि इस समाज में हमेशा से श्रद्धा का पात्र रहा है।

लेकिन आज के मंचों के कुछ खिलंदडों ने कवि का मतलब मज़ाक बना के रख दिया है। ठीक वैसे ही जैसे कुछ लोभी और लालची अध्यापकों ने शिक्षक को मज़ाक बना दिया है। इसमें सुधार भी हमे ही करना होगा और फिर से कालीदास और तुलसीदास के चरित्र को जीवंत करना होगा।


मनोज चारण 'कुमार'   

लिंक रोड़, वार्ड नं.-3,  रतनगढ़ (चूरू) राज.  

    

मो.  9414582964 

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