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कहने को आजाद हैं हम

19 अगस्त 2016

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हम आजाद हैं सिर्फ,

सरकारों को कोसने में,

रिश्वतखोरी फैलाने में,

खाली जमीने हथियाने में,

कुर्सियां कब्जाने में।

हम आजाद हैं,

बस कचरा फैलाने को,

दूजों की गलतियां बताने को,

मयखाने सजाने को,

झूठ को बचाने को।

हम आजाद हैं,

बस बस्तियां जलाने को,

झूठा हल्ला मचाने को,

सांम्प्रदायिकता फैलाने को,

सच्चाइयों को दफनाने को।

हम आजाद हैं,

बस रेलगाड़ियां तोड़ने में,

सभाओं में जुमले छोड़ने में,

नियमों को बस तोड़ने में,

दहशती बमों को फोड़ने में।

हम आजाद हैं,

बस गांधीजी की फोटो में,

गांधीजी छपे नोटों में,

जातियों के लोटो में,

गुंडो वाले सोटों में।

हम आजाद हैं,

बस सिर्फ झंडा लहराने को,

कुछ मीठे गीत गुनगुनाने को,

सरकारी मिठाईयां खाने को,

और

चुपचाप घर चले जाने को।

हम आजाद हैं,

क्यों और कैसी है आजादी,

कहां खो गये चरखे खादी,

कहां बसंती चोला गुम है,

बुंदेला हरबोला गुम है,

गौरे गये तो भूरे तन बैठे,

सब के सब डायर बन बैठे,

आजादी की दुल्हन मौन है,

सच में यहाँ आजाद कौन है?

कैसी और किसकी आजादी ?

चिंतन बहुत जरूरी है,

सच पूछो तो देश के प्यारों,

आजादी अभी अधूरी है,

आजादी अभी अधूरी है।।


- मनोज चारण 'कुमार'

रतनगढ़ (चूरू)

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