अगली सुबह प्रेम जल्दी उठ जाता है और मां के पास जाकर कहता है, "मां, आपको आपके जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई! आप हमेशा खुश रहो और मेरा हमेशा ध्यान रखो।"
प्रेम की मां कहती हैं, "बेटा, मैं कब तक तेरा ध्यान रखूंगी? अब तो तू बस जल्दी से शादी कर ले, फिर तेरी पत्नी तेरा ध्यान रखेगी।"
प्रेम के पिता कहते हैं, "अरे, पहले उसको अपने पैरों पर सही से खड़ा हो जाने दो, तब कर लेगा शादी भी।"
प्रेम हंसते हुए कहता है, "देखा मां, पापा मेरे लिए कितना अच्छा सोचते हैं।"
प्रेम की मां: "अच्छा ये बाद में बताना, ये बता आज खाना क्या बनाऊं तेरे लिए?"
प्रेम: "आज जो तुमको पसंद हो, वही बना लो।"
प्रेम के पिता: "साफ-साफ बोल प्रेम, तेरी खीर खाने का मन है क्योंकि यही एक चीज है जो तुझे और लता (प्रेम की मां) दोनों को पसंद है।"
प्रेम की मां: "ठीक है, मैं खाने के साथ खीर भी बना लूंगी।"
प्रेम: "मां, एक काम करना, आज लंच में ज्यादा खीर रखना। आज मैं जमकर खाऊंगा।"
प्रेम की मां: "ठीक है, अब चल तैयार हो जा, ऑफिस भी जाना है तुझे, तब तक मैं खाना तैयार कर देती हूं।"
थोड़ी देर बाद प्रेम ऑफिस के लिए तैयार होकर निकल जाता है। उसको शाम को घर जल्दी आने की उत्सुकता थी। आज प्रेम को अलग सी खुशी मिल रही थी। प्रेम ऑफिस पहुंचकर लिफ्ट की तरफ जाता है और वहां देखता है कि सागर लिफ्ट के अंदर जा रहा है। प्रेम पीछे से आवाज लगाता है, "रुको, मैं भी हूं।"
सागर पीछे मुड़कर देखता है और प्रेम को हाथ से इशारा करके बुलाता है और लिफ्ट के अंदर चला जाता है। प्रेम भी लिफ्ट में आ जाता है और कहता है, "गुड मॉर्निंग सर।"
सागर उसकी तरफ हेलो के लिए हाथ आगे बढ़ाता है। प्रेम थोड़ा सा झिझकता है लेकिन हाथ मिला लेता है। प्रेम सोचता है, "ये आज क्या हो गया, मुझसे हाथ क्यों मिला रहा है? तबियत तो ठीक है इसकी?"
सागर: "पता है, मुझे तुम क्या सोच रहे हो। मेरी तबियत ठीक है, ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो।"
प्रेम: "जी।"
सागर: "वैसे तुम आज बहुत खुश लग रहे हो, क्या खास बात है?"
प्रेम: "वो आज मेरी मां का जन्मदिन है, बस इसलिए ही।"
सागर: "अरे, यह तो बहुत अच्छी बात है। मेरी तरफ से भी बधाई देना आंटी जी को।"
प्रेम: "नहीं, आपको आज मेरे साथ चलना होगा और खुद बधाई देनी होगी।"
सागर: "लेकिन..."
प्रेम: "लेकिन वेकिन कुछ नहीं सर, चलोगे बस आप।"
सागर: "ठीक है, लेकिन यहां किसी को नहीं बताओगे।"
प्रेम: "ये हम दोनों का सीक्रेट है।"
सागर: "अच्छा, मतलब अब हम दोनों के बीच भी सीक्रेट रहेंगे, चलो ये भी सही है।"
प्रेम: "मेरा वो मतलब नहीं था सर।"
प्रेम यह सोचकर खुश हो जाता है कि सागर सर भी साथ चलेंगे। सागर उसको खुश देखकर मुस्कुरा देता है। फिर दोनों ऑफिस में आकर अपना काम करने लगते हैं। थोड़े समय बाद मिली काम के सिलसिले में प्रेम के पास आती है और उससे बात करने लगती है। प्रेम बातों-बातों में कल के बारे में पूछने लगता है, "तुम कल कहां गायब हो गई थीं?"
मिली: "वो मुझे घर जाना पड़ गया था, कुछ जरूरी काम था।"
प्रेम: "ऐसा तो नहीं था, तुमने तो कल सागर सर की ज्वाइनिंग पार्टी की इतनी तैयारी की थी, लेकिन तुम बिना केक खाए चली गई थीं। तुम्हें पता है, सागर सर ने तुम्हारा कितना इंतजार किया था और तुम बिना बताए चली गई थीं।"
मिली: "प्रेम, मैं क्या करती, बताया तो कुछ जरूरी काम था।"
प्रेम: "तुम कुछ छुपा रही हो। मुझे सच बता सकती हो, मैं तुम्हारी बात को समझने की पूरी कोशिश करूंगा।"
मिली: "प्रेम, तुम मुझे गलत मत समझना, लेकिन सागर मेरा बचपन का दोस्त है और शुरू से हम दोनों एक दूसरे के लिए सबसे पहले रहे हैं। कल जब सागर ने तुम्हें पहले से अहमियत दी तो मुझे कहीं न कहीं बुरा लगा, लेकिन मुझे तुमसे कोई परेशानी नहीं है।"
प्रेम: "मैं समझ सकता हूं। जब आपका कोई खास इंसान दूसरे को खास बना लेता है, तब कैसा लगता है।"
मिली: "अच्छा, तुम्हारे साथ भी ऐसा हुआ है?"
प्रेम: "हां, हुआ है न।"
मिली: "कब?"
प्रेम: "आज! देखो, मैं तुम्हें अपना खास दोस्त समझता हूं और तुम सागर सर को खास दोस्त मानती हो। इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुम्हें बुरा मानने लग जाऊं।"
मिली: "मैं कब से तुम्हारी खास दोस्त बन गई?"
प्रेम: "इंटरव्यू वाले दिन से। तुम्हारी और मेरी सोच बड़े सर के लिए एक जैसी जो है। इसी वजह से मुझे तुम अच्छी लगीं।"
मिली: "तारीफ के लिए शुक्रिया, लेकिन अब काम की बात करें।"
प्रेम: "हां।"
दोनों ने मिलकर ऑफिस के रोजाना का काम खत्म किया और मिली अपनी जगह पर वापस जा ही रही थी कि प्रेम ने मिली से कहा, "आज मैं खीर लेकर आया हूं, तो क्या आज तुम मेरे साथ लंच करोगी?"
मिली: "हां, बिल्कुल।"
फिर काम करते-करते लंच टाइम हो जाता है। प्रेम और मिली एक साथ लंच के लिए जाते हैं। तभी सागर भी प्रेम के पास आता है और कहता है, "क्यों, तुम दोनों कहां जा रहे हो मेरे बिना?"
मिली इठलाते हुए: "सागर जी, मैं और प्रेम लंच पर जा रहे हैं, वो भी एक साथ।"
सागर: "अच्छा, तो बात यहां तक आ गई है।"
प्रेम: "अरे नहीं, नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। हम दोनों बस एक साथ लंच कर रहे हैं।"
मिली: "हां, क्योंकि प्रेम आज खीर लेकर आया है। और सागर, तुम तो खीर नहीं खाओगे, क्योंकि तुम्हें अनहेल्दी लगता है ये सब।"
प्रेम: "हां सर, आप ओट्स ही खाओ, क्यों खीर को बदनाम करोगे।"
सागर: "ऐसा कुछ भी नहीं है, तुम दोनों अकेले-अकेले खीर खाना चाहते हो, इसलिए ऐसा बोल रहे हो। एक काम करो, अपने लंच मेरे केबिन में आ जाओ, वहां लंच करते हैं।"
प्रेम और मिली सागर के साथ केबिन में लंच शुरू करने लगते हैं। प्रेम सागर का खाना देख कर मिली से बोलता है, "ये क्या, उबला हुआ खाना? मसाला खत्म हो गया था क्या? और ये सब्जी के नाम पर घास फूस बस।"
मिली प्रेम से फुसफुसाते हुए: "अमीरों के चोंचले हैं ये, तुम क्या लाए हो, ये बताओ?"
प्रेम: "मैं छोले की सब्जी और नमक की पूरियाँ और खीर तो है ही।"
मिली: "अरे वाह, ये होता है खाना, लेकिन मैं तो कढ़ी चावल लाई हूं।"
सागर: "प्रेम, क्या बात है, खाना तो शुरू करो या बात ही करते रहोगे।"
प्रेम: "सर, आप खीर टेस्ट करो पहले, क्योंकि मां ने सुबह मेरी फर्माइश पर ये बनाई थी।"
सागर: "अरे, आंटी ने बनाई है तो पहले बताना था, मैं बस थोड़ा ही खाऊंगा।"
प्रेम ने थोड़ी खीर पहले सागर को दी और फिर मिली ने भी खीर ले ली। सागर ने एक चम्मच खीर खाई और उसके बाद सागर का हाथ रुकना बंद हो गया। उसने देखते ही देखते चार बार खीर लेकर खा ली। मिली भी सागर को देखकर चकरा गई कि सागर कभी ऐसे नहीं खाता, लेकिन खीर सच में बहुत स्वादिष्ट बनी थी, इसलिए देखते ही देखते खीर खत्म हो गई। अब बारी थी पूरियों की, सागर इस बार बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाया और पूरी और सब्जी पर भी धावा बोल दिया।
प्रेम ने मिली से पूछा, "क्या हुआ है, ये ऐसे क्यों खा रहे हैं?"
मिली: "वो क्या है, इनके घर पर ऐसा खाना कभी नहीं बनता है। ये रूखा-सूखा और उबला हुआ ही खाते हैं और वो भी सिर्फ शेफ के हाथ का। और तो और, घर का कोई भी सदस्य खाना नहीं बनाता, इसलिए ऐसे मजे लेकर खा रहे हैं।"
प्रेम: सागर सर, आप खाना खाओ, मैंने खाना खा लिया है।
मिली: हां, मैंने भी।
सागर: प्रेम, आंटी से कहना मेरे लिए रोज ऐसी खीर बना दें।
प्रेम: आज आप चलकर खुद बोल देना, सर।
मिली: सागर, तुम आज प्रेम के घर जा रहे हो क्या?
सागर: हां, क्यों? नहीं जा सकता क्या?
मिली: बड़े सर को थोड़ी सी भी भनक पड़ी तो पता है ना क्या होगा?
प्रेम: और उनको यह बात बताएगा कौन?
सागर मजाकिया अंदाज में: कौन? कौन? कौन?
मिली: तो ठीक है, लेकिन फिर भी ध्यान से, कोई गड़बड़ न हो।
प्रेम: मैं हूं तो कोई गड़बड़ नहीं होगी।
सागर: यह साथ है, इससे ज्यादा और क्या गड़बड़ होगी।
मिली: अभी तो बड़े सर से प्रेम मिला भी नहीं है। आगे देखो क्या होता है।
सागर: अभी से इस बारे में मत सोचो, प्रेम पर मुझे पूरा भरोसा है, वह पापा को अपने काम से खुश कर लेगा।
मिली: काश ऐसा ही हो।
प्रेम: मिली, तुम भी आज मेरे घर चलो, मेरी मां बहुत खुश होंगी तुम्हें देखकर।
मिली: मैं तुम्हारे साथ जरूर चलती, लेकिन मुझे आज आगरा के लिए जाना है।
प्रेम: आगरा?
सागर: हां, मिली हर वीकेंड पर अपने नाना के पास चली जाती है। वहां अब वह अकेले रहते हैं और मिली का उनसे ज्यादा लगाव भी है।
प्रेम: कोई बात नहीं, किसी और दिन तुम्हें जबरदस्ती लेके चलूंगा घर और सबसे मिलवाके लाऊंगा।
मिली: हां, बिलकुल, अगली बार पक्का।
सागर: तो प्रेम, आज बस मैं तुम्हारे साथ जाऊंगा। इसी बात पर सब अपने काम पर वापस चलो।
फिर सब अपने अपने काम में वापस लग जाते हैं। काम करते करते समय का पता भी नहीं चलता और 5 बज जाते हैं। मिली भी काम करके ऑफिस से चली जाती है, लेकिन प्रेम अभी भी काम में लगा हुआ था। तभी सागर आकर प्रेम से बोलता है:
सागर: क्यों, घर नहीं चलना है क्या?
प्रेम: अभी तो 5 बजे हैं और अभी पूरा स्टाफ भी काम कर रहा है, मैं जल्दी कैसे जाऊं? और आप मेरे साथ यहां से कैसे जाओगे?
सागर: तो हमारे दो रास्ते हैं, या तो मैं निकल जाता हूं अभी, तुम बाद में आ जाना। और दूसरा रास्ता है कि स्टाफ जब चला जाए तब हम दोनों एक साथ जा सकते हैं।
प्रेम: पहला वाला सही है।
सागर: तो दूसरा प्लान पक्का है।
प्रेम: मैंने पहला वाला बोला, दूसरा नहीं।
सागर: लेकिन मुझे दूसरा वाला पसंद है।
प्रेम: ठीक है, सर, जैसी आपकी मर्जी।
थोड़ी देर बाद छुट्टी का समय हो जाता है और पूरा स्टाफ धीरे-धीरे करके चला जा रहा था। सागर और प्रेम सबके जाने का इंतजार कर रहे होते हैं। जैसे ही सब चले जाते हैं, प्रेम और सागर फटाफट अपना सामान उठाकर लिफ्ट के अंदर चले जाते हैं। प्रेम लिफ्ट चालू कर देता है और सागर से कहता है:
प्रेम: आज तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं चोरी करके भाग रहा हूं।
सागर: सही बोल रहे हो, मुझे खुद ऐसा ही लग रहा है जबकि मेरा ही ऑफिस है।
लिफ्ट नीचे आ रही होती है कि लिफ्ट झटके से बंद हो जाती है और प्रेम और सागर एक दूसरे का मुंह देखने लग जाते हैं। तब प्रेम बोलता है:
प्रेम: इसको भी अभी खराब होना था।
सागर: हमारे साथ ही ऐसा होना था।
इस समय सागर प्रेम को एक टुक नजर से देख रहा था और प्रेम नजर से बचने के लिए इधर-उधर देख रहा था। तभी सागर बोल पड़ा:
सागर: अरे, अब बॉस नहीं हूं तुम्हारा, ऑफिस टाइम खत्म हो गया है, ऐसे नजर चुराने की जरूरत नहीं है।
प्रेम: ऐसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन मैं खुश हूं कि इसी बहाने तुम्हारे साथ हूं।
सागर: आप से तुम पर आ गए।
प्रेम: अभी तो बोला आपने, अब बॉस नहीं हो, तो तुम बोल दिया।
सागर: हां, हां, ठीक है, अब क्या लिफ्ट में लड़ोगे मुझसे?
प्रेम: बॉस नहीं होते तो शायद हां।
सागर यह बात सुनकर हंसने लगता है, इतने में लिफ्ट दुबारा शुरू हो जाती है। दोनों लिफ्ट से बाहर आने के बाद पार्किंग की तरफ जाते हैं और प्रेम सागर से कहता है:
प्रेम: मैं बाइक से आता हूं, तुम कार से चलो।
सागर: बाइक को यहीं रहने दो, तुम मेरे साथ ही चलो।
प्रेम: सोमवार को मैं ऑफिस कैसे आऊंगा?
सागर: उसकी चिंता मत करो, मैं अपने साथ सुबह ले आऊंगा, बस।
प्रेम: देख लो, अगर नहीं आए और उस दिन मैं देर से ऑफिस आया तो मेरी गलती नहीं होगी।
सागर: हां, बस ठीक है, अब चलो भी।
दोनों कार में बैठकर प्रेम के घर के लिए निकल जाते हैं। सागर कार चला रहा होता है और प्रेम तब प्रिया को फोन लगाता है और कहता है:
प्रेम: प्रिया, कहां है? (उत्तर मिलने के बाद) तू कब तक घर आ जायेगी? (फिर से उत्तर मिलने के बाद) देख प्रिया, आज तुझे घर पर किसी से मिलवाना है, तो तू समय से घर आ जा।
इतना कहकर प्रेम फोन कट कर देता है। सागर को प्रिया के बारे में जानने की इच्छा तो होती है, लेकिन वह सोचता है कि वही चलकर सब पता चल जायेगा। थोड़ी देर में सागर और प्रेम घर पहुंच जाते हैं और कार से बाहर निकलकर सागर देखता है कि प्रेम एक सामान्य से घर में रहता है, जहां आंगन में काफी सारे पौधे लगाए हुए हैं, एक प्यारा सा कुत्ता जिसके गले में जिम्मी लिखा हुआ है, एक बूढ़े से इंसान जो शाम को बाहर कुर्सी पर बैठे हुए हैं। यह सब देखकर सागर प्रेम से कहता है: तुम तो मस्त जगह में रहते हो।
प्रेम: यह मेरा घर है और यह मेरे बाबा (दादा जी) हैं।
इतने में प्रेम की मां बाहर देखने आ जाती है कि कौन है जो कार से आया है।
बाकी अगले भाग में..........