होटल पहुंचकर सागर रिसेप्शन से कमरे की चाबी लेता है, जिस पर लिखा होता है "आठवीं मंजिल, कमरा नंबर 86"। सागर चाबी लेकर प्रेम से लिफ्ट में चलने को कहता है और फिर दोनों लिफ्ट से अपने कमरे तक पहुंच जाते हैं। फिर सागर प्रेम से कहता है, "चलो, अब तुम अपनी आंखें बंद करो।"
प्रेम: "ये क्या मजाक है? तुम तो ऐसे कर रहे हो जैसे तुमने फिल्मों की तरह कमरा फूलों से सजा रखा है।"
सागर: "अरे, तुम बहुत बोलते हो। पहले मुंह और आंखें दोनों बंद करो।"
प्रेम: "ठीक है, लो कर ली अब।"
सागर चाबी से दरवाजा खोलता है और प्रेम को आंखें बंद करके ही अंदर चलने के लिए कहता है। दोनों कमरे के अंदर आ जाते हैं। फिर सागर प्रेम से कहता है, "अब तुम अपनी आंखें खोल सकते हो।"
प्रेम आंखें खोलकर देखता है और चौंक जाता है क्योंकि कमरे को बहुत सारे सुंदर फूलों से सजाया गया था, और पूरा फर्श लाल और सफेद गुब्बारों से भरा हुआ था। प्रेम यह सब देखकर हैरान हो ही रहा था कि सागर उससे कहता है :"लग रहा है बिलकुल फिल्मों जैसा।"
प्रेम: "हां! सच में ऐसा ही लग रहा है।"
सागर: "तो बताओ, तुम्हें ये सब कैसा लगा?"
प्रेम: "मुझे ये पसंद आया, लेकिन इतना सब क्यों किया?"
सागर: "हम दोनों के लिए।"
प्रेम: "अगर ज्यादा पैसे थे, तो मुझे दे देते। ऐसे बर्बाद करने की क्या जरूरत थी?"
सागर: "तुम मेरे काम की तारीफ नहीं कर सकते? इतनी मेहनत और इतने प्यार से तुम्हारे लिए किया और तुम इसे बर्बाद बता रहे हो!"
प्रेम: "मेरा वो मतलब नहीं था कि मुझे ये पसंद नहीं आया। लेकिन अब बताओ, इन सबका हम करेंगे क्या?"
सागर: "करना क्या है, सब तुम्हारे लिए है, जो करना है करो।"
प्रेम: "पहले मुझे कपड़े बदलने हैं, फिर बाहर घूमने चलेंगे।"
सागर, खिड़की की तरफ इशारा करते हुए: "मुझे नहीं लगता कि आज हम बाहर घूम पाएंगे, थोड़ी देर में बारिश होने वाली है।"
प्रेम: "नहीं होगी कोई बारिश, मैं जल्दी से कपड़े बदल लेता हूँ।"
सागर: "ठीक है, तब मैं नहाकर दूसरे कपड़े पहनता हूँ।"
प्रेम: "अब तुम नहाओगे, तब तो हमें और देर हो जाएगी।"
सागर: "बस दो मिनट दो, यूं गया और यूं आया।"
इतना कहकर सागर अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चला जाता है, और प्रेम कमरे में ही अपने कपड़े बदलने लगता है। थोड़ी देर बाद प्रेम बाहर जाने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन सागर अभी तक बाथरूम से बाहर नहीं आता। इस पर प्रेम सागर को आवाज़ लगाता है और कहता है, "और कितना समय लगेगा?"
सागर: "अभी तो मैंने नहाना शुरू ही किया है।"
प्रेम: "तुम्हें बीस मिनट हो गए हैं, और कितना समय चाहिए तुम्हें नहाने के लिए?"
दरअसल, सागर बाथरूम में नहाने के बजाय खिड़की से बाहर आसमान देख रहा था कि बारिश कब शुरू होगी।
प्रेम फिर से सागर को आवाज़ देता है, "बारिश होने ही वाली है, लगता है आज बाहर नहीं जा पाएंगे।"
सागर बाथरूम में बैठे-बैठे बारिश का इंतजार कर रहा होता है कि तभी जोर से बारिश पड़नी शुरू हो जाती है। यह देखकर सागर खुश हो जाता है और फटाफट नहाकर और कपड़े पहनकर कमरे में वापस आता है और प्रेम से कहता है, "चलो, मैं तैयार हूं।"
प्रेम सागर का हाथ पकड़कर उसे खिड़की के पास ले जाता है और कहता है, "अब जितना मन हो उतना नहा लो।"
सागर: "मैं तो नहाने ही गया था, बस इतने में बारिश आ गई। इसमें मेरी क्या गलती है?"
प्रेम: "अब यहीं बैठना पड़ेगा।"
सागर: "कोई बात नहीं, यह कमरा इतना भी बुरा नहीं है।"
सागर बोल ही रहा होता है कि इतने में प्रेम फर्श से एक गुब्बारा उठाता है और उसे सागर के कान के पास फोड़ देता है, जिससे सागर चौंक जाता है और भागकर बेड पर चढ़ जाता है।
सागर: "मेरे साथ मजाक करना तुम्हें महंगा पड़ेगा।"
प्रेम: "बहुत हिम्मत है मुझमें, मैं तुमसे डरता नहीं हूँ।"
सागर ये सुनकर प्रेम को पकड़ने के लिए उसके पीछे भागने लगता है, लेकिन प्रेम सागर से बचकर बिस्तर से नीचे उतर जाता है और सागर को बिस्तर पर धक्का दे देता है, जिससे सागर संभल नहीं पाता और बिस्तर पर ही गिर जाता है।
जैसे-तैसे सागर फिर से उठकर प्रेम को पकड़ने के लिए भागता है, लेकिन प्रेम तकिया लेकर सागर के ऊपर फेंक देता है, जिससे सागर फिर से गिर जाता है। सागर की ये हालत देखकर प्रेम जोर-जोर से हंसने लगता है और कहता है, "बोला था, मैं तुमसे डरता नहीं हूँ।"
सागर सर को नीचे किए हुए जोर से चिल्लाता है, "मेरी नाक में लग गई है, शायद खून निकल रहा है। तुम्हें देख तो लेना चाहिए, किसी को लग भी सकती है।"
प्रेम को लगता है कि शायद सागर की नाक में सच में चोट लग गई है, इसलिए वह सागर को देखने के लिए उसके पास जाने लगता है।
जैसे ही प्रेम सागर के पास पहुंचता है, सागर उसे कसकर पकड़ लेता है। प्रेम समझ जाता है कि सागर ने यह बहाना बनाया है और इसलिए प्रेम सागर के पैर पर अपना पैर मार देता है, जिससे सागर को जोर से चोट लगती है और वह लड़खड़ा जाता है, लेकिन फिर भी प्रेम को नहीं छोड़ता।
इसलिए दोनों संभल नहीं पाते और बिस्तर पर गिर जाते हैं।
सागर और प्रेम कुछ पल के लिए एक-दूसरे को देखते रहते हैं। सागर के लिए जैसे समय रुक सा गया था, और यह पहली बार था जब प्रेम को सागर के साथ किसी तरह की कोई असहजता महसूस नहीं हुई। इसलिए प्रेम ने उठने का प्रयास नहीं किया। सागर अपनी ही दुनिया में खो सा गया था; उसे ऐसा लग रहा था जैसे चारों ओर ठंडी-ठंडी हवाएं चल रही हों और वह प्रेम के साथ पहाड़ों में हो। यह पहली बार था जब दोनों ने एक-दूसरे को इतनी देर तक देखा था।
दोनों अपनी ही ख्यालों में खोए हुए थे कि तभी फर्श पर पड़ा हुआ एक गुब्बारा फूट जाता है, जिससे प्रेम और सागर चौंक जाते हैं और अपनी ख्यालों की दुनिया से बाहर आ जाते हैं। प्रेम देखता है कि सागर ने उसे अभी भी कसकर पकड़ रखा है, जिसे देखकर प्रेम कहता है, "ये सही नहीं है।"
सागर हड़बड़ाते हुए प्रेम को छोड़ देता है और कहता है, "हां, तुम सही कह रहे हो।"
प्रेम: "मैंने क्या सही कहा?"
सागर: "जैसा तुम सोच रहे हो, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।"
प्रेम बात को घुमा देता है और कहता है, "एक मिनट रुको, मेरा मतलब यह है कि तुमने नाक पर चोट लगने का बहाना बनाया, लेकिन तुम्हारा क्या मतलब था और तुम कौन से इरादे की बात कर रहे हो?"
सागर: "झूठ मैं बोलूंगा नहीं, और सच तुम सुन नहीं पाओगे, इसलिए रहने दो।"
प्रेम: "अगर ऐसी बात है, तो अच्छा है रहने दो।"
सागर: "तुम ये बताओ, बाहर तो नहीं जा सकते, तो खाना यहीं करना है। तुम क्या खाओगे?"
प्रेम: "जो भी हो, तुम मंगा लो।"
सागर कॉल करके खाना ऑर्डर कर देता है, जिसे आने में कम से कम एक घंटा लगेगा। यह बात जब सागर ने प्रेम को बताई, तो प्रेम ने कहा, "तब तक हम दोनों क्या करेंगे?"
सागर: "चलो, जब हमारे पास समय भी है और हम दोनों अकेले भी हैं..."
प्रेम मजाकिया अंदाज में: "मतलब क्या है तुम्हारा?"
सागर: "अरे, तुम ही तो बोल रहे थे कि हमें एक-दूसरे को अच्छे से जानना चाहिए। तो चलो, बैठते हैं और बात करते हैं।"
प्रेम: "अच्छा प्लान है, लेकिन कुछ अलग तरीके से।"
सागर: "क्या अलग तरीका?"
प्रेम: "एक सवाल तुम पूछना, और एक मैं। जवाब देने के बाद एक गुब्बारा तुम फोड़ना और एक मैं।"
सागर: "ठीक है, चलो खिड़की के पास बैठते हैं।"
फिर दोनों खिड़की के पास बैठ जाते हैं। बाहर बारिश की कुछ बूंदें बालकनी पर गिर रही थीं और मंद-मंद हवा चल रही थी।
बाकी का अगले भाग में.......