प्रेम: "तो चलो मिली, आज मेरे घर चलो। मेरी माँ के हाथ का खाना खाओ, तुम्हें मज़ा आ जाएगा।"
सागर: "हाँ मिली, आंटी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं, तुम्हें ज़रूर चलना चाहिए।"
मिली: "लेकिन..."
प्रेम: "लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, तुम मेरे घर चल रही हो, बस।"
मिली: "अच्छा ठीक है, चलूँगी।"
तीनों सारा काम खत्म करके सागर की कार से प्रेम के घर चले जाते हैं। प्रेम की माँ घर के बाहर कार देखकर समझ जाती हैं कि प्रेम और सागर आ गए हैं, इसलिए वह जल्दी से बाहर आ जाती हैं। प्रेम की माँ देखती हैं कि आज एक लड़की भी गाड़ी से उतरी है, मानो जैसे कोई अप्सरा (परी)। फिर प्रेम और सागर भी कार से उतर जाते हैं और प्रेम की माँ के पास आते हैं।
प्रेम: "माँ, ये मिली है, सागर की दोस्त।"
प्रेम की माँ अभी भी मिली को निहार ही रही होती हैं। इतने में सागर कहता है:
सागर: "आंटी, कहाँ खो गईं?"
प्रेम की माँ हड़बड़ाकर बोलती हैं:
प्रेम की माँ: "कुछ नहीं, मैं तो बस इस प्यारी सी बच्ची को देख रही हूँ, कितनी प्यारी है, एकदम परी जैसी।"
प्रेम: "माँ, अब अंदर भी ले चलो, तुम्हारी परी को। अंदर तो आने दो।"
प्रेम की माँ: "हाँ, बिल्कुल मिली बेटा, अंदर चलो। आज तुम पहली बार हमारे घर आई हो, तुम्हें सबसे मिलवाती हूँ।"
प्रेम की माँ का इतना मिलनसार व्यवहार देखकर मिली खुश हो जाती है और सागर से कहती है:
मिली: "आंटी तो बहुत अच्छी हैं।"
सागर: "हाँ, मैं भी जब पहली बार आया था, मुझे भी बहुत प्यार मिला था। और प्रेम का पूरा परिवार बहुत अच्छा है।"
प्रेम: "अब चलो भी।"
प्रेम, मिली और सागर को बैठक में ले जाकर सोफे पर बैठा देता है। फिर प्रेम की माँ, प्रिया की माँ को बुलाती हैं:
प्रेम की माँ: "छोटी, जल्दी नीचे आ। देख, कौन आया है?"
इतना सुनकर प्रिया की माँ नीचे आती हैं और मिली और सागर से मिलती हैं।
प्रेम की माँ: "छोटी, ये मिली है, सागर की दोस्त। कितनी प्यारी और सुंदर है?"
प्रिया की माँ: "हाँ दीदी, मिली तो बहुत सुंदर है।"
सागर: "आज लगता है सारी तारीफ मिली ही ले जाएगी।"
प्रिया की माँ: "ऐसा कुछ नहीं है सागर, तुम तो अब इस घर के हो गए हो। और मिली भी जल्दी ही हम सबके साथ घुल-मिल जाएगी, क्या मिली?"
मिली: "हाँ आंटी, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मैं यहाँ रोज आती हूँ। आप सब में कितना अपनापन है।"
प्रेम की माँ: "छोटी, चलो जल्दी बच्चों के लिए कुछ अच्छा सा बना देते हैं। सागर बेटा, तुम क्या खाओगे? और मिली, तुम क्या खाओगी?"
प्रेम: "माँ, मुझसे भी कभी पूछ लिया करो।"
प्रिया की माँ: "प्रेम, तू चिंता क्यों करता है? मैं हूँ ना, मुझे बता क्या खाएगा?"
सागर: "आंटी, आज दिन का जो टिफिन आपने दिया था, वो भी हमने नहीं खाया।"
प्रेम की माँ सागर और प्रेम पर गुस्सा करते हुए:
प्रेम की माँ: "ये क्या बात होती है? हम दोनों ने सुबह-सुबह उठकर तुम दोनों के लिए टिफिन बनाया और तुमने खाना खाया ही नहीं! ऐसा भी कौन सा पहाड़ तोड़ रहे थे?"
सागर: "आंटी..."
प्रिया की माँ: "क्या आंटी-हां! तुम दोनों खाना समय पर खा नहीं सकते हो? इतने छोटे बच्चे हो क्या? तुमसे अच्छा तो जो है, खाना तो समय से खाता है।"
प्रेम: "बस माँ, बस चाची, अब कल गुस्सा कर लेना। अभी भूख लगी है, पहले कुछ खाने को दे दो।"
प्रेम की माँ थोड़ा भावुक स्वर में:
प्रेम की माँ: "तो खाना खा लिया करो समय से। हमारे बच्चे भूखे रहेंगे तो हमें बुरा लगेगा, इसलिए गुस्सा करना पड़ता है।"
सागर प्रेम की माँ की ये बात सुनकर उन्हें गले लगा लेता है, भावुक हो जाता है, और कहता है:
सागर: "सॉरी आंटी, आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा और न प्रेम को करने दूंगा। बस तुम गुस्सा मत होना हमसे।"
प्रेम की माँ सागर के सर पर हाथ फेरते हुए:
प्रेम की माँ: "अरे सागर, तुम तो बड़े कमजोर दिल के हो। इतनी सी बात पर कैसे तुम्हारा चेहरा रूआंसा सा हो गया?"
प्रिया की माँ: "दीदी, तुम थोड़ी देर सागर के पास बैठो, मैं रसोई में जाकर जल्दी से कुछ बनाती हूँ।"
इतना कहकर प्रिया की माँ रसोई में चली जाती हैं। मिली, प्रेम के परिवार के बीच अपार प्यार को देख रही होती है। इधर, प्रेम की माँ सागर से पूछती हैं:
प्रेम की माँ: "सागर, क्या बात है? मेरी कोई बात तुम्हें बुरी लग गई है क्या? तुम अचानक इतने उदास क्यों हो गए?"
सागर: "वो... बहुत दिनों बाद माँ वाली डांट खाने को मिली है, बस इसलिए।"
प्रेम की माँ: "मतलब?"
प्रेम: "माँ, सागर की माँ अब इस दुनिया में नहीं हैं।"
प्रेम की माँ, सागर को प्यार से देखते हुए:
प्रेम की माँ: "तो क्या हुआ, मैं तो हूँ इस दुनिया में। जब भी तुम्हें डांट खानी हो, तो आ जाना। मैं अपने आप लगातार दो-तीन घंटे डांट लगाऊंगी तुम्हें।"
यह सुनकर सागर थोड़ा सा हंस देता है और कहता है:
सागर: "आप बहुत अच्छी हैं। प्रेम बहुत नसीब वाला है क्योंकि इसके पास आप सब जैसा परिवार है।"
प्रेम की माँ: "तुम भी तो इसी परिवार के हो। तो ये तुम भूल जाओ कि सिर्फ प्रेम नसीब वाला है, तुम भी हो, समझे?"
प्रेम: "ये मिलन की अद्भुत बेला समाप्त हो गई हो, तो कुछ खाने को दे दो माँ।"
प्रेम की माँ: "हाँ, रुको, तब तक बिस्कुट लाती हूँ। तू उसे खा तब तक।"
प्रेम: "हाँ, ठीक है।"
प्रेम की माँ रसोई की तरफ चली जाती हैं और वहाँ से एक पैकेट बिस्कुट का डिब्बे में से निकाल कर लाती हैं। प्रेम माँ से बिस्कुट लेकर पैकेट खोलता है, तभी प्रिया पीछे से आकर पैकेट छीन लेती है।
प्रेम: "प्रिया, ये मेरा वाला बिस्कुट का पैकेट था!"
प्रिया के पीछे भागते हुए प्रेम:
प्रेम: "तो क्या हुआ? तू भी तो मेरे सारे पैकेट खा जाती है।"
प्रिया: "कुछ भी! मैं तो नहीं दूंगी। हिम्मत है तो मुझसे लेकर दिखाओ।"
प्रेम: "अच्छा मेरी बिल्ली, मुझसे ही मियाऊं।"
दोनों बैठक में इधर-उधर भाग रहे होते हैं। प्रेम, प्रिया को पकड़ने ही वाला होता है कि यह सब देखकर सागर का बचपना भी बाहर आ जाता है, और वह सोफे का तकिया फेंक कर मारता है। इससे प्रिया को भागने का मौका मिल जाता है, और प्रिया पैकेट लेकर मिली के पीछे खड़ी हो जाती है। प्रेम उसे पकड़ने के लिए मिली के आगे आ जाता है, जिससे प्रिया समझ जाती है कि अब प्रेम उसे पकड़ लेगा। इसलिए वह पैकेट सागर की तरफ फेंक देती है, जिसे सागर पकड़ भी लेता है।
प्रिया, प्रेम का ध्यान भटकाने के लिए मिली को हल्का सा धक्का देती है, और वही होता है। प्रेम मिली को संभालने के चक्कर में प्रिया को नहीं पकड़ पाता। प्रिया भागकर सागर के पास जाकर खड़ी हो जाती है और मिली, प्रेम की तरफ इशारा करती है कि पैकेट अब सागर के पास है।
प्रिया: "यह बिस्कुट अब हमारा है।"
सागर को इसमें मजा आ रहा था, इसलिए उसने भी बोल दिया:
सागर: "अगर हिम्मत है, तो हमारी टीम से लेकर दिखाओ।"
इतना सुनकर मिली भी बोल पड़ी:
मिली: "अगर तुम टीम बना सकते हो, तो प्रेम भी अकेला नहीं है।"
प्रेम: "हाँ मिली, आज तो ये पैकेट हमारा ही होगा।"
मिली अपनी सैंडल उतारकर आस्तीनें ऊपर की तरफ मोड़ लेती है और सागर को तैयार होने का इशारा करती है। इतने में प्रेम, सागर को पकड़ने के लिए दौड़ता है, और मिली, प्रिया की तरफ भागती है। सागर सीढ़ियों से ऊपर भाग जाता है, उसका पीछा करते हुए प्रेम भी ऊपर चला जाता है। प्रेम को आता देख, सागर प्रिया की तरफ बिस्कुट का पैकेट फेंक देता है, लेकिन मिली बीच में आकर पैकेट पकड़ लेती है और तेजी से प्रेम की तरफ भागती है।
प्रेम भी वापस नीचे आने लगता है, और मिली प्रेम के पास पहुंचकर पैकेट उसे दे देती है। फिर सागर की तरफ देखकर कहती है, "क्यों, बोला था न?"
प्रेम, प्रिया को बिस्कुट का पैकेट दिखाते हुए हंसकर कहता है, "अब कोई छीना-झपटी नहीं, आज मैं और मिली जीते हैं।"
प्रिया: "ठीक है, अब नीचे आ जाओ।"
मिली, सागर, और प्रेम वापस आकर सोफे पर बैठ जाते हैं।
मिली: "कितना मज़ा आया आज! कितने दिन बाद मैं तुम्हारे साथ बच्चों की तरह खेली।"
सागर: "मुझे भी बहुत मज़ा आया, मिली! इसलिए तो मैं कह रहा था कि तुम हमारे घर चलो।"
मिली: "मुझे नहीं पता था कि एक बिस्कुट का पैकेट हमें इतनी खुशी दे सकता है।"
प्रिया: "हमारे घर पर ऐसा रोज़ होता है। वो तो टोज़ो अभी यहाँ नहीं है, वरना वो ही जीतता।"
सागर: "वो कैसे?"
प्रेम: "हारने के बाद वो रोने लगता है, तो हम पैकेट उसे दे देते हैं। तो कह सकते हैं कि वो हारकर भी जीत जाता है।"
इतने में प्रेम की माँ खाना लेकर आती हैं और सबको खाने के लिए कहती हैं। मिली, प्रेम, प्रिया, और सागर सब मिलकर खाना खाने लगते हैं।
प्रेम: "माँ, टोज़ो कहाँ है?"
प्रेम की माँ: "वो अभी शाम को तुम्हारे पापा के साथ दुकान पर गया है। तुम्हें तो पता ही है, उसे साइकिल चलाने का मौका चाहिए, बस इसलिए तुम्हारे पापा उसे ले गए हैं।"
मिली: "आंटी, खाना तो कोई आपके जैसा बना ही नहीं सकता। मुझे तो आपसे सीखना चाहिए, शादी के बाद काम आएगा।"
प्रिया की माँ बाहर आकर कहती हैं:
प्रिया की माँ: "मिली, जब मैं इस घर में आई थी, तो मुझे गैस जलानी भी नहीं आती थी। फिर दीदी ने सब सिखा दिया। तुम्हें भी सीखा देंगी। और तुम तो जिसके घर भी जाओगी, वो तो मालामाल हो जाएगा!"
इस पर सब हंसने लगते हैं, और प्रेम की माँ और प्रिया की माँ भी खुशी से मुस्कुराती हैं।
मिली: "मैं अभी तो शादी नहीं करूंगी।"
प्रिया की मां: "मेरा टोज़ो तो अभी बहुत छोटा है। अगर तुमसे बड़ा होता, तो मैं तुम्हें अपनी बहू बना लेती।"
प्रेम की मां: "अरे छोटी, तू भी! मिली को देख, अभी इसकी शादी की उम्र थोड़ी है। अभी इसे अपनी ज़िंदगी जीने दे।"
मिली: "आपने सही कहा, आंटी जी!"
सब हंसते हैं और खाना खा लेते हैं। फिर मिली अपने घर जाने की बात करती है।
प्रेम की मां: "मिली, आज यहीं रुक जाओ।"
मिली: "नहीं आंटी, मुझे जाना होगा। लेकिन मैं जल्द ही दुबारा आऊंगी।"
प्रेम की मां: "सागर, तुम तो रुक जाओ।"
सागर: "नहीं आंटी, आज मैं घर जाऊंगा और मिली को भी उसके घर छोड़ दूंगा।"
इतना कहकर सागर, प्रेम और मिली बाहर आ जाते हैं।
मिली: "प्रेम, सच में तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा है। मैं तो तुम्हारे परिवार के साथ हमेशा रह सकती हूं।"
सागर: "अभी तो बाकी के और भी लोग हैं। अगली बार आओगी, तो उनसे भी मिलना होगा।"
सागर, मिली को कार में बैठने को कहता है और मिली कार में जाकर बैठ जाती है। प्रेम, सागर के पास आकर कहता है:
प्रेम: "तुम भी जाओ, रुके क्यों हो?"
सागर: "आज भी ऐसे ही जाने दोगे?"
प्रेम: "पागल मत बनो, अभी के लिए जाओ।"
सागर: "अच्छा, गले तो लगा सकते हो?"
प्रेम: "हां, ये कर सकता हूं।"
प्रेम सागर को गले से लगाकर बाय बोलता है।
सागर: "बाय, कल सुबह नासिक के लिए निकलेंगे, तैयार रहना।"
इतना कहकर सागर कार में बैठकर मिली को उसके घर छोड़ने के लिए निकल पड़ता है और फिर अपने घर चला जाता है।