प्रेम: इसका मतलब हुआ कि मुझे पीटी टीचर अच्छे लगते थे।
सागर: मतलब तुम भी...
प्रेम: नहीं, मेरा उनके प्रति बस एक खिंचाव था।
सागर: मतलब?
प्रेम: वो अच्छे थे, उनसे बात करना मुझे पसंद था। लेकिन उनके लिए कुछ ज़्यादा महसूस कर पाता, उससे पहले मेरी स्कूली पढ़ाई खत्म हो गई थी।
सागर: अच्छा, इसका मतलब है कि तुम्हारे लिए मैं उम्मीद कर सकता हूँ।
प्रेम: ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है, हम दोनों दोस्त ही रहेंगे।
सागर: जैसी तुम्हारी मर्जी।
प्रेम: लेकिन तुम कोशिश करते रहो, कोई तो मिलेगा या मिलेगी तुम्हारे लिए।
सागर: हां, शायद।
प्रेम: तुमने अपने बारे में किसी और को भी बताया है क्या?
सागर: बस एक उज्ज्वल को, अब एक तुम हो, जिसको ये बात पता है।
प्रेम: इस बात को यहीं तक सीमित रखना होगा, आखिर तुम बॉस और मैं एक कर्मचारी हूँ।
सागर: आए बड़े कर्मचारी! अगर मैं तुम्हें कर्मचारी समझता, तो तुमसे सारी बात साझा नहीं करता।
प्रेम: अगर ये बात मिली को पता चलेगी, तो क्या होगा सोचो?
सागर: पता नहीं, शायद वो मुझसे दोस्ती तोड़ दे।
प्रेम: तुम मुझसे लिख कर ले लो, वो ऐसा कभी नहीं करेगी।
सागर: तुम इतना विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?
प्रेम: वो तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त समझती है और उसको इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि तुम किसको पसंद करते हो।
सागर: तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे तुम उसे मुझसे ज्यादा जानते हो।
प्रेम: तुम्हें एक बात बताऊं, उस दिन जब हमने ऑफिस में तुम्हारी ज्वाइनिंग एनिवर्सरी का केक काटा था, तब मिली वहां नहीं थी। बताओ क्यों?
सागर: उसे शायद कोई काम होगा।
प्रेम: नहीं, कोई काम नहीं था। उसे ये बात बुरी लगी थी कि उसके बचपन के दोस्त ने एक नए दोस्त को पहले केक खिला दिया।
सागर: और ये बात मिली ने तुम्हें खुद बताई थी क्या?
प्रेम: नहीं, मैंने ही जोर देकर उससे पूछा था। लेकिन तुम इस बात को उससे नहीं बोलोगे।
सागर: मुझे नहीं पता था कि मिली को इतनी छोटी-छोटी बातें भी बुरी लगती होंगी। चलो, कोई बात नहीं, आगे से ध्यान रखूंगा।
प्रेम: क्या तुम्हें अभी तक नींद नहीं आ रही?
सागर: मुझे तुमसे बात करने का मन है। बहुत दिन बाद किसी से इतनी बात कर रहा हूँ।
प्रेम: अच्छा, ये बात है। तो चलो अब तुम अपने परिवार के बारे में बताओ।
सागर: मेरे परिवार के बारे में तो पूरे शहर को पता है। तुम्हें और क्या जानना है?
प्रेम: तुम बताओ, तुमने ऐसा क्यों बोला था कि मेरी कोई चिंता नहीं करेगा अगर मैं रात भर घर नहीं जाऊंगा।
सागर: मेरे परिवार के बारे में जानना है तो मेरे घर आना किसी दिन।
प्रेम: नहीं, मेरे आपके घर पर क्या काम?
सागर: या तो तुम बोल लो या आप।
प्रेम: अभी आदत नहीं हुई है इसलिए...
सागर: लेकिन तुम घर क्यों नहीं आ सकते? मैं भी तो आया हूँ तुम्हारे घर और मैं तो रात के लिए रुक भी गया हूँ।
प्रेम: तुम अपनी दादी से कब मिले थे?
सागर: काफी समय हो गया है, काम से समय ही नहीं मिलता।
प्रेम: तो कल चले जाओ, कल तो रविवार है।
सागर: सही आइडिया दिया है, तुम भी चलोगे क्या?
प्रेम: मैं क्या करूंगा?
सागर: मेरे साथ समय बिताना पसंद नहीं है क्या?
प्रेम: तुमसे तो बचता फिरता हूँ।
सागर: अब तो तुम बिल्कुल मेरे साथ चलोगे।
प्रेम: कोई जबरदस्ती है क्या?
सागर: हां, है जबरदस्ती। आखिर दोस्त हूँ तुम्हारा, तुम्हें तो चलना पड़ेगा मेरे साथ।
प्रेम: कितने खडूस हो तुम सच में।
सागर: तुमने पहली बार मुझे मेरे मुंह पे खडूस बोला है, वैसे तो हमेशा मन में ही बोलते हो।
प्रेम: तुम्हें पता कैसे चलता है कि मैं मन में क्या बोलता हूँ?
सागर: जब तुम्हें कोई पसंद आएगा, तब तुम उसके मन की सारी बात अपने आप ही समझने लगोगे।
प्रेम: इससे तो साफ है कि मुझे तुम बिल्कुल पसंद नहीं हो क्योंकि मुझे तो तुम्हारी कही हुई भी बात समझ नहीं आती है, तो मन की बात तो बहुत दूर की बात है।
ये बात सुनकर सागर ने तकिया प्रेम की तरफ फेंककर मारा।
प्रेम: ये क्या, तुम्हें लड़ने का मन है क्या वो भी आधी रात को?
सागर: लड़ने का मन और वो भी तुम्हारे साथ? देखो खुद को, वैसे भी सूखे से हो, तुम्हें हराकर कौन सा मैं बलशाली हो जाऊंगा।
इतना सुनकर प्रेम वही तकिया सागर की तरफ फेंककर हंसने लगता है।
सागर: जाओ, माफ किया। अभी तुम बच्चे हो।
प्रेम फिर से एक दूसरा तकिया सागर को फेंककर मारता है। दूसरा तकिया लगने के बाद सागर प्रेम से कहता है:
सागर: तुम्हारी तो, रुको अब।
इतना कहकर सागर प्रेम को पकड़ने के लिए झपट्टा मारता है लेकिन प्रेम बिस्तर से उठकर पीछे हट जाता है और कहता है:
प्रेम: इतना आसान नहीं है मुझे पकड़ना।
सागर बेड से उतरकर प्रेम को पकड़ने लगता है लेकिन तब तक प्रेम फिर से बेड पर चढ़ जाता है।
प्रेम: तेज आवाज में: अब पकड़ के दिखाओ।
सागर देखता है कि प्रेम बेड पर खड़ा है इसलिए सागर बेड की चादर को जोर से खींच देता है जिससे प्रेम बेड पर धड़ाम से गिर जाता है। प्रेम को गिरने के बाद सागर पर गुस्सा आ जाता है, फिर प्रेम सागर को पकड़ने के लिए सागर के पीछे भागता है लेकिन सागर कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर जाने लगता है। प्रेम सागर को पकड़ने के लिए सागर के पीछे भागने लगता है।
प्रेम: जोर से: एक बार हाथ आ गया तो छोड़ूंगा नहीं।
सागर: पहले पकड़ के तो दिखाओ, सूखे प्रेम।
सागर ऊपर से उतरकर नीचे आ जाता है, उसका पीछा करते-करते प्रेम भी नीचे आ जाता है। फिर सागर सोफे की आड़ में प्रेम को आँखें दिखाता है और कहता है:
सागर: अब पकड़ के दिखाओ।
प्रेम और सागर सोफे के इर्द-गिर्द एक दूसरे को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। उन दोनों की आवाज सुनकर प्रेम की माँ कमरे से बाहर आ जाती है और दोनों की नोक-झोंक देखकर जोर से हंसती हैं और कहती है: ये तुम दोनों आधी रात को क्या कर रहे हो और छोटे बच्चों की तरह इतना शोर क्यों कर रहे हो?
सागर प्रेम की माँ को देखकर एक जगह पर रुक जाता है और इसका फायदा उठाकर प्रेम सागर को पकड़ लेता है।
प्रेम: पकड़ लिया! अब बताओ क्या कहा था मुझे सूखा और मुझे बेड से गिराने की हिम्मत कैसे हुई?
सागर: मैंने तुम्हें कब गिराया?
प्रेम की माँ: ये क्या प्रेम, छोड़ो सागर को, बॉस है वो तुम्हारा।
प्रेम: पर माँ...
प्रेम की माँ: पर-वर कुछ नहीं। आधी रात को पूरे घर में धमाचौकड़ी मचा रखी है। सागर, तुम्हारी कोई गलती नहीं होगी, ये प्रिया के साथ भी ऐसे ही करता है, उससे भी आधी रात को लड़ने लगता है।
सागर: कोई बात नहीं, मेरे साथ रहेगा तो मैं सुधार दूंगा।
प्रेम की माँ: अब चलो वापस से जाओ, ऊपर जाकर सो ही जाओ। और अब प्रेम, तुम्हारी वजह से शोर हुआ और घर का भी सदस्य उठा, तो बेटा तुम्हारा रविवार मेरे हिसाब से बीतेगा फिर।
प्रेम और सागर दोनों सिर झुकाकर अपने कमरे में वापस चले जाते हैं और प्रेम की माँ भी दुबारा अपने कमरे में सोने चली जाती हैं। दोनों कमरे में आकर दुबारा से लेट जाते हैं। फिर सागर प्रेम को परेशान करने के लिए कहता है:
सागर: तुम्हारी तो आदत है दूसरों से लड़ने की।
प्रेम: मुझे अब कोई बात नहीं करनी, अब मुझे सोना है।
सागर: ठीक है, सो जाओ। लेकिन कल मेरे साथ चलोगे, दादी से मिलने।
प्रेम: हां, ठीक है।
इसके बाद दोनों सो जाते हैं।
बाकी अगले भाग में.......