अगली सुबह प्रेम जल्दी उठ जाता है और नासिक जाने के लिए तैयार होता है। उधर सागर भी तैयार होकर प्रेम को फोन करता है। प्रेम फोन उठाकर: "हां सागर, बोलो।"
सागर: "नासिक चलने के लिए तैयार हो?"
प्रेम: "हां, बिल्कुल।"
सागर: "तो ठीक है, मैं थोड़ी देर में तुम्हें लेने आ रहा हूं, फिर हम दोनों नासिक के लिए निकल जाएंगे।"
प्रेम: "तुम एक काम करो, मेरे घर ही आ जाओ, नाश्ता करके चलना।"
सागर: "रोज-रोज तुम्हारे घर खाना खाऊंगा क्या?"
प्रेम: "क्यों, कोई परेशानी है तुम्हें?"
सागर: "नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है।"
प्रेम: "तो जल्दी आ जाओ, मैं इंतजार कर रहा हूं।" इतना कहकर प्रेम फोन रख देता है। थोड़ी देर बाद सागर प्रेम के घर पहुंच जाता है।
सागर को देखकर प्रिया के पापा कहते हैं: "अरे सागर बेटा, आओ, आओ, बैठो।"
सागर: "नहीं अंकल जी, मुझे और प्रेम को आज जल्दी निकलना है। वैसे प्रेम कहां है?"
प्रेम की मां भी कमरे से बाहर आती हैं और सागर को देखकर बोलती हैं: "अरे सागर, तुम कब आए?"
सागर: "बस अभी-अभी आया हूं।"
प्रेम की मां: "सही समय पर आए हो, अब प्रेम और तुम दोनों नाश्ता कर लो।"
सागर: "प्रेम कहां है?"
प्रेम की मां: "वो अपने कमरे में ही होगा।"
सागर: "क्या उसने नाश्ता कर लिया?"
प्रेम की मां: "अभी नहीं किया।"
सागर: "आंटी, उसका और मेरा नाश्ता दे दो, मैं ऊपर प्रेम के कमरे में ही ले जाता हूं।"
प्रेम की मां: "ठीक है, अभी लाती हूं।" इतना कहकर प्रेम की मां रसोई से खाना लेकर आ जाती हैं और सागर को दे देती हैं।
सागर खाना लेकर ऊपर प्रेम के कमरे की तरफ चला जाता है। सागर प्रेम के कमरे तक पहुंचकर कमरे का दरवाजा खटखटाता है।
प्रेम: "कौन है?"
सागर: "मैं हूं।"
प्रेम: "मैं कौन?"
सागर: "तुम्हारा खडूस।"
प्रेम: "दरवाजा खुला है, अंदर आ जाओ।"
सागर दरवाजा खोलकर अंदर आ जाता है। सागर के हाथ में खाने की थाली देखकर प्रेम बोलता है: "तुम मेरे लिए खाना लेकर आए हो?"
सागर: "हां, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ खाना खाना चाहता हूं।"
प्रेम: "तुम खाना यहां लेकर क्यों आए, हम नीचे ही खा लेते।"
सागर प्रेम को बेड पर बैठाकर बोलता है: "अगर नीचे खाते, तो तुम्हें अपने हाथ से खिला नहीं पाता।"
प्रेम: "ठीक है, पहले खाना खाते हैं।" इसके बाद सागर और प्रेम एक-दूसरे को अपने हाथ से खाना खिलाते हैं।
प्रेम: "तुम्हें मेरे हाथ से खाना पसंद है क्या?"
सागर: "हां, बहुत, और तुम्हें?"
प्रेम: "सच कहूं तो मुझे तुम्हारे साथ खाना खाना अच्छा लगता है।"
थोड़ी देर में दोनों खाना खाकर नासिक के लिए निकल जाते हैं।
रास्ते में दोनों गाने सुनते हुए जा रहे होते हैं कि प्रेम सागर से कहता है: "तुम्हारा पसंदीदा गाना कौन सा है?"
सागर: "नहीं बता सकता तुम्हें, वरना तुम मेरी पसंद का गाना सुनकर हँसोगे।"
प्रेम: "इतना ही भरोसा है मुझ पर?"
सागर: "ऐसा नहीं है, मुझे पुराने गानों का शौक है और तुम्हें नए गाने सुनना पसंद है।"
प्रेम: "तुम्हें किसने कहा कि मुझे नए गाने पसंद हैं?"
सागर: "इसमें सोचना क्या है? तुम्हारे फोन की रिंगटोन भी तो ऐसी ही है।"
प्रेम: "वो तो मैंने ऐसे ही लगा रखी है।"
सागर: "लेकिन ऐसी रिंगटोन कौन लगाता है भला? 'लड़की ब्यूटीफुल कर गई चुल'।"
प्रेम: "वो तो टोजो को पसंद है।"
सागर: "पता है, जब मैंने पहली बार तुम्हारे फोन की रिंगटोन सुनी थी, तो मेरी हंसी छूट गई थी।"
प्रेम: "हां, मुझे याद है, तुम बहुत जोर से हंसे थे।"
सागर: "तो तुम्हें क्या नए गाने पसंद नहीं हैं?"
प्रेम: "मुझे भी पुराने गाने ही पसंद हैं।"
सागर: "जैसे कि...?"
प्रेम: "रिमझिम गिरे सावन। और तुम्हें?"
सागर: "ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा।"
प्रेम: "ये गाना तो वैसे भी बहुत अच्छा है।"
सागर: "मुझे नहीं पता था कि तुम्हें पुराने गाने पसंद हैं।"
प्रेम: "अभी बहुत कुछ है मेरे बारे में जो तुम्हें नहीं पता है।"
सागर: "तो तुम बताते नहीं हो, तो उसमें मैं क्या करूं?"
प्रेम: "धीरे-धीरे सब पता चल जाएगा।"
सागर: "चलो, दो दिन तुम और मैं एक साथ रहेंगे, तो एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलेगा।"
प्रेम: "तुम्हें मीटिंग की चिंता नहीं है?"
सागर: "तुम हो तो मेरे साथ, मेरे लकी पर्सन।"
प्रेम: "पर्सन क्या होता है? कुछ अच्छा सा नाम नहीं मिला?"
सागर: "तो तुम बताओ, क्या बोलूं तुम्हें?"
प्रेम: "मुझे तो तुम खडूस लगते थे, तो मैंने तुम्हें 'खडूस' बोलना शुरू कर दिया था। लेकिन अब तुम खडूस नहीं हो, तो सोच रहा हूं तुम्हें क्या बोलूं?"
सागर, प्यार भरी नजर से प्रेम को देखते हुए: "तो अब कैसा लगता हूं?"
प्रेम: "बस यही आदत तुम्हारी, तुम बात-बात पर आशिक बन जाते हो। तो तुम्हारा नाम 'आशिक बंदर' रख देना चाहिए।"
सागर: "हां, और तुम जो मुझसे प्यार भी करते हो लेकिन दूर-दूर तक उछल-उछल कर भागते हो, तो तुम्हारा नाम 'डरपोक मेंढक' रख देना चाहिए।"
प्रेम: "ये नाम बहुत गंदा है।"
सागर: "फिर तो अब यही बोलूंगा तुम्हें, मिस्टर डरपोक मेंढक।"
प्रेम: "मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी अब।"
सागर: "अब गुस्सा मत हो। थोड़ी देर में हम पहुंच जाएंगे। पहले हम मीटिंग के लिए जाएंगे, और वो खत्म करने के बाद होटल में जाकर अपना सामान रखकर घूमने चलेंगे।"
प्रेम: "तुम्हें जो करना है कर लेना, लेकिन अब मुझसे बात मत करना।"
सागर: "ओके मिस्टर डरपोक मेंढक।"
प्रेम झुंझलाकर सागर को देखता है, लेकिन सागर प्रेम को देखकर हंस देता है और कहता है: "तुम गुस्से में और ज्यादा प्यारे लगते हो।"
प्रेम: "तुम मेरे बॉस नहीं होते तो तुम्हें अच्छे से बताता।"
सागर: "ये मजाक सिर्फ हमारा है, इसमें बॉस और एंप्लॉई कहां से आ गया?"
प्रेम गंभीर होकर: "हो तो बॉस ही, और मैं यहां सर आपके साथ ऑफिस के काम के लिए ही आया हूं। तो पहले जो करने आए हैं, वो करते हैं, सर।"
सागर: "तुम्हें अचानक क्या हो गया? तुमने मुझे सर क्यों बोलना शुरू कर दिया?"
प्रेम: "थोड़ी देर बाद हमारी मीटिंग है, हमें उस पर ध्यान देना चाहिए।"
सागर: "ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी, अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा।"
इसके बाद दोनों बिना कुछ बोले नासिक पहुंच जाते हैं और पहुंचते ही सीधा मीटिंग के लिए निकल जाते हैं। वहां पहुंचकर दोनों मीटिंग हॉल में जाते हैं, जहां अभी कोई भी नहीं आया होता। इसका मतलब दोनों समय से पहले वहां आ चुके थे।
प्रेम मीटिंग में होने वाली प्रेजेंटेशन की तैयारी करने लगता है। सागर भी अब थोड़ा घबराने लगता है, जिसे देखकर प्रेम सागर को बैठने के लिए कहता है और कहता है: "आज इस मीटिंग में जो भी फैसला होगा, वो मेरे आपकी कंपनी में काम करने या नहीं करने का फैसला करेगा।"
सागर: "मैं इसलिए नहीं घबरा रहा हूं कि तुम मेरी कंपनी में काम करोगे या नहीं, बल्कि मुझे आज पूरी कोशिश करके अपना और तुम्हारा रिश्ता बचाना है।"
प्रेम: "सर, ये कंपनी के लिए जरूरी है, न कि मेरे लिए।"
सागर: "तुम मुझे हिम्मत दे रहे हो या डरा रहे हो?"
प्रेम, सागर के करीब आकर बोलता है: "तुम्हें क्या लगता है, तुमसे मेरा रिश्ता इतनी आसानी से टूट जाएगा?"
सागर: "तो?"
प्रेम: "यही कि मैं तो तुम्हारे साथ इसी कंपनी में काम करूंगा, इसके लिए आज पूरी कोशिश करेंगे।"
सागर: "हां, बिल्कुल, आज तो करना ही पड़ेगा।"
इतना कहकर दोनों थोड़ा और नजदीक आते हैं, तभी प्रेम का फोन बजने लगता है।
सागर सभी आए हुए लोगों को मीटिंग का उद्देश्य बताता है। वह कहता है कि आज की यह मीटिंग नासिक में हमारी कंपनी की दूसरी ब्रांच खोलने के प्रस्ताव को स्वीकृति दिलाने के लिए आयोजित की गई है। इसके बाद, प्रेम प्रोजेक्टर चालू करता है और सागर और प्रेम मिलकर सभी निवेशकों को समझाते हैं कि नासिक ही वह जगह क्यों है जहां दूसरी ब्रांच खोलनी चाहिए। वे बताते हैं कि यहां का बाजार अन्य स्थानों की तुलना में अधिक लाभदायक है, जिससे उनकी कंपनी जल्द ही अपने निवेशकों को लाभ देना शुरू कर सकेगी।
अपनी सभी बातें रखने के बाद, कुछ निवेशकों के सवाल भी आते हैं, लेकिन सागर मुस्कुराते हुए सभी का बहुत अच्छे से जवाब देता है। वहीं, प्रेम अपनी विजुअल प्रेजेंटेशन की मदद से बातें समझाने की कोशिश करता है, जिससे निवेशक प्रभावित होते हैं।
सभी निवेशक सागर की सभी शर्तों को मान लेते हैं, और मीटिंग सागर और प्रेम की योजना के मुताबिक ही चलती है।
तभी एक निवेशक पूछता है, "ये मीटिंग तो आपके पापा ने रखी थी और वो ही इस मीटिंग में नहीं आए। क्या अब वो इस कंपनी पर ध्यान नहीं देना चाहते?"
तब तक दूसरा निवेशक कहता है, "अगर सर ही इस कंपनी को नहीं चलाएंगे तो हम इस कंपनी में और पैसा नहीं लगाएंगे। हम तो सर की वजह से ही इस कंपनी से जुड़े हुए हैं।"
सागर ये सब सुनकर चुप हो जाता है। जब प्रेम देखता है कि सागर कोई जवाब नहीं दे रहा है, तब वह बोलता है, "मैं समझ सकता हूं कि आप सभी हमारे बड़े सर पर बहुत भरोसा करते हैं, और होना भी चाहिए। लेकिन क्या शुरू से आपको उन पर भरोसा था? शायद नहीं। लेकिन आपने उन पर भरोसा किया और उन्हें मौका दिया, तभी तो आप सबकी वजह से हमारी यह कंपनी इतनी बड़ी बन गई है। इसका तो यही मतलब है कि इस कंपनी को बनाने वाले आप हैं, और सागर सर भी शुरू से इस कंपनी के लिए काम कर रहे हैं। मुझे यकीन है कि आप और हम सब मिलकर इस कंपनी को और भी बड़ी कंपनी बनाएंगे।"
प्रेम की यह बात सुनकर सभी निवेशक खुश हो जाते हैं और सागर के साथ काम करने के लिए सहमत भी हो जाते हैं।
थोड़ी देर बाद, कागजी काम खत्म होने के बाद, मीटिंग समाप्त हो जाती है। सभी एक-एक करके वहां से निकल जाते हैं। इसके बाद, प्रेम और सागर भी खुशी-खुशी वहां से निकलकर कार में बैठ जाते हैं।
प्रेम: "अब बोलो, आशिक बंदर, कहां जाना है?"
सागर: "अब तुम 'सर' ही कहो मुझे।"
प्रेम: "क्यों? तुम भी तो मुझे 'डरपोक मेंढ़क' बोल रहे थे।"
सागर: "तब तो तुम गुस्सा हो गए थे, फिर तुम मुझे 'सर' सर बोल रहे थे।"
प्रेम: "अगर मैं ऐसा नहीं करता, तो तुम मीटिंग के लिए फोकस नहीं कर पाते। इसलिए मुझे ऐसा करना पड़ा।"
सागर: "तो मतलब तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो?"
प्रेम: "नहीं तो।"
सागर: "तो मतलब मैं तुम्हें 'डरपोक मेंढ़क' कह सकता हूं?"
प्रेम: "नहीं, बिल्कुल नहीं।"
सागर: "वो तो मैं बोलूंगा।"
प्रेम: "अब ये बताओ, हम कहां जा रहे हैं?"
सागर: "पहले हम होटल चलते हैं।"
इसके बाद, सागर और प्रेम कार से होटल जा रहे होते हैं। सागर प्रेम से एक बात पूछता है, "तुम प्रिया से किसकी शादी की बात कर रहे थे?"
प्रेम: "प्रिया की शादी की।"
सागर: "मतलब?"
प्रेम: "मैंने अभी यह बात किसी को नहीं बताई है, जो मैं तुम्हें बता रहा हूं कि प्रिया को एक लड़का पसंद है और वो लड़का भी प्रिया को पसंद करता है। इसलिए प्रिया चाहती है कि मैं उसकी शादी की बात घर पर करूं।"
सागर: "अच्छा, तुम्हें एक बात बताऊं?"
प्रेम: "हां।"
सागर: "तुम जब पहली बार मेरी कार में बैठे थे, तब भी प्रिया का फोन आया था और शायद तब भी यही शादी की बात चल रही थी। मुझे लगा कि तुम प्रिया नाम की लड़की से प्यार करते हो और अपने घर में अपनी और उसकी शादी की बात करने वाले हो।"
प्रेम चौंककर: "तुम्हें इतनी बड़ी गलतफहमी थी मेरे बारे में?"
सागर: "मुझे तब नहीं पता था कि प्रिया तुम्हारी बहन है। मुझे आंटी के जन्मदिन पर पता चला कि प्रिया तुम्हारी बहन है, वरना मैं तो यही सोच रहा था कि कोई गर्लफ्रेंड है।"
प्रेम: "तो मतलब उस दिन मम्मी के जन्मदिन पर सिर्फ इसलिए ही आए थे कि तुम प्रिया से मिल सको और उसके बारे में जान सको?"
सागर: "हां, ये सच है।"
प्रेम: "तो तुमने मुझे उसी समय क्यों नहीं पूछा था?"
सागर: "मैं उस समय भी तुम्हें पसंद करता था और मेरी हिम्मत नहीं थी कि तुमसे कुछ पूछूं।"
प्रेम: "तो मतलब तुम शुरू में प्रिया से जलते थे?"
सागर: "हां, थोड़ा-थोड़ा।"
प्रेम: "तुम तो छुपे रुस्तम हो। इतना सब कुछ सोचते रहते थे मेरे बारे में और मुझे पता ही नहीं था।"
सागर थोड़ा आशिक अंदाज में: "सोचता तो बहुत कुछ हूं, अगर बता दिया तो तुम शर्मा जाओगे।"
प्रेम भी उसकी तरफ देखकर: "मुझे सब पता है, बस पूछता नहीं हूं तुमसे।"
सागर: "तो जब सब पता है, तो मुझसे इतना दूर-दूर क्यों रहते हो?"
प्रेम: "क्योंकि तुम बॉस हो।"
सागर: "जब भी मैं थोड़ा सा तुम्हारे करीब आता हूं, तुम अपना बॉस लेकर आ जाते हो।"
प्रेम मजाक करते हुए: "सच्चाई छुप नहीं सकती।"
सागर: "आज से परसों तक भूल जाओ कि मैं तुम्हारा बॉस हूं।"
प्रेम: "तो फिर क्या हो?"
सागर: "दोस्त ही समझ लो, अब मैं और क्या कह सकता हूं।"
प्रेम फिर मजाक करते हुए: "देख लो, तुम और मैं अकेले हैं, और अभी भी दोस्त बने रहोगे, तो कभी 'हां' नहीं बुलवा पाओगे। दुबारा कब मौका मिलेगा?"
सागर: "तो चलो होटल, मैं मौका छोड़ना भी नहीं चाहता।"
और थोड़ी देर बाद दोनो होटल पहुंच जाते हैं।
बाकी अगले भाग में.......