अगली सुबह हुई, सोमवार का दिन था। प्रेम समय से ऑफिस पहुंच गया। मिली भी ऑफिस पहुंच गई थी। प्रेम ने मिली को देखा और उसके पास जाकर बोला: "गुड मॉर्निंग मिली।"
मिली: "वैरी गुड मॉर्निंग प्रेम।"
प्रेम: "कैसी हो मिली?"
मिली: "मैं ठीक हूं।"
प्रेम: "और तुम्हारे नाना जी कैसे हैं? तुम मिलने गई थी उनसे?"
मिली: "हां, वो भी ठीक हैं।"
प्रेम: "अच्छा, सागर आ गए क्या?"
मिली: "सर से सीधा सागर! क्या बात है, दोस्ती गहरी होती जा रही है।"
प्रेम: "अरे, बस ऐसे ही। तुम बताओ, आ गए वो?"
मिली: "अभी नहीं, लेकिन हुआ क्या?"
प्रेम: "सागर ने कल बताया था कि बड़े सर वापस आ गए हैं और आज वो ऑफिस आने वाले हैं।"
मिली: "ओह माई गॉड! बिग बॉस आ रहे हैं।"
प्रेम: "क्या हुआ तुमको?"
मिली: "तुम बस आज देखते जाओ, आज ऑफिस में सब कैसे काम करेंगे। मैं तो कहती हूं तुम भी जल्दी से अपने काम में लग जाओ और मैं भी अपना काम शुरू कर देती हूं।"
प्रेम: "ओके।"
इसके बाद मिली ने ये बात पूरे ऑफिस में बता दी कि आज बड़े सर ऑफिस आने वाले हैं और ये सुनकर ऑफिस में अफरा-तफरी सी मच गई। प्रेम ये सब देखकर हैरान हो रहा था। थोड़ी देर बाद सागर और उसके पापा ऑफिस में आते हैं। सब बड़े सर को गुड मॉर्निंग बोल रहे थे, सागर के पापा आगे-आगे और सागर पीछे-पीछे चलते हुए ऑफिस में चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद सागर अपने केबिन में चला जाता है। जब प्रेम को पता चलता है कि सागर अपने केबिन में चला गया है, तो वह सागर से मिलने के लिए उसके केबिन में चला जाता है।
प्रेम: "मे आई कम इन सर?"
सागर: "हां, बिलकुल।"
प्रेम: "गुड मॉर्निंग।"
सागर: "गुड मॉर्निंग प्रेम। और बताओ, कैसे हो?"
प्रेम: "मैं ठीक हूं, और तुम कैसे हो?"
सागर: "मैं तो ठीक हूं।"
प्रेम: "और दादी कैसी हैं?"
सागर: "वो भी ठीक हैं।"
प्रेम: "बड़े सर ने कुछ बोला तो नहीं तुमको कल?"
सागर: "नहीं, वो खुश थे दादी से मिलकर।"
प्रेम: "मिली से मिले तुम?"
सागर: "अभी नहीं, लेकिन बात क्या है?"
प्रेम: "मिली को जब से पता चला है कि बड़े सर आए हैं, तब से वो परेशान है।"
सागर: "वो परेशान नहीं होगी, वो बस मेरे पापा से थोड़ा डरती है।"
प्रेम: "ऐसा क्यों?"
सागर: "जब तुम पापा से मिलोगे तब तुमको भी पता चल जाएगा।"
दोनों बात कर रहे होते हैं, तभी मिली केबिन के अंदर आती है और सागर से कहती है: "बड़े सर ने प्रेम को और तुमको अपने केबिन में बुलाया है।"
सागर: "चलो प्रेम, तुम्हारी पहली मुलाकात करवाता हूं।"
प्रेम और सागर बड़े सर के केबिन में जाते हैं और दोनों उनके सामने खड़े हो जाते हैं।
सागर के पापा (प्रेम की तरफ इशारा करते हुए): "सागर, तुमने मिस्टर प्रेम को जॉब पर क्या सोचकर रखा है?"
सागर: "पापा वो.....।"
सागर के पापा: "सर।"
सागर: "सर, प्रेम का बायोडाटा हमारे जॉब प्रोफाइल से मैच कर रहा था और प्रेम काफी कोऑपरेटिव पर्सन भी है।"
सागर के पापा: "देखने से मिस्टर प्रेम तो बिल्कुल भी प्रोफेशनल नहीं लगते।"
प्रेम: "सर।"
सागर के पापा: "मिस्टर प्रेम, आपसे थोड़ी देर बाद बात होगी, पहले सागर से जवाब लेने दो।"
सागर: "जी सर, ऐसा नहीं है। प्रेम अपने काम में काफी माहिर है और अभी कुछ दिन पहले की मीटिंग भी प्रेम की वजह से ही सफल हुई थी। उस मीटिंग में दूसरी पार्टी ने हमारी सारी शर्तें भी मान ली थीं।"
सागर के पापा: "मिस्टर प्रेम।"
सागर के पापा: "प्लीज, सीट।"
प्रेम कुर्सी में बैठ जाता है।
सागर के पापा: "सागर, तुम जाओ, अपना काम करो। मैं भी मिस्टर प्रेम का इंटरव्यू लेना चाहता हूं।"
सागर: "ओके सर।"
इतना कहकर सागर, प्रेम के कंधे पर हाथ रखकर उसको हिम्मत रखने का इशारा करते हुए वहां से चला जाता है। उसके बाद सागर के पापा प्रेम से कहते हैं: "तो मिस्टर प्रेम, आपको हमारी कंपनी में काम करने में कोई परेशानी तो नहीं हो रही?"
प्रेम जानता था कि अगर वह नहीं बोलेगा तो बात बिगड़ सकती है, इसलिए प्रेम ने सोच-समझ कर जवाब दिया: "सर, मुझे कंपनी के माहौल में ढलने में थोड़ा समय लग रहा है। यहां बहुत से काम ऐसे हैं जो मेरे लिए एकदम नए हैं और उनको करने में थोड़ी परेशानी भी हो रही है, लेकिन मैं उसका तोड़ जल्द निकाल लूंगा।"
सागर के पापा: "इसका मतलब तुमको सारा काम पहले से नहीं आता, तुम अभी भी सीख रहे हो?"
प्रेम: "सर, मेरा मानना है कि लाइफ तो सीखने के लिए ही होती है और प्रोग्रेस करना हो तो सीखते रहना चाहिए।"
सागर के पापा: "इंप्रेसिव पर्सनैलिटी है मिस्टर प्रेम आपकी।"
प्रेम: "थैंक यू सर।"
सागर के पापा: "मिस्टर प्रेम, तुम मेरे बेटे की उम्र के हो, तो तुमको एक बात बताता हूं। मैंने ये के. डी. इंडस्ट्रीज अपने दम पर बनाई है। मैं जब तुम्हारी उम्र का था, तब मैं भी तुम्हारे तरह ही था। अपनी लाइफ में कुछ करना चाहता था, सीखने की चाह हमेशा से मुझमें थी। फिर दिन-रात मेहनत करके मैंने खुद को आज इस काबिल बनाया है।"
प्रेम: "तो सर, आपने शुरुआत खुद के बिजनेस से ही की?"
सागर के पापा: "आज के. डी. सर के नाम से जाने जाना वाला मैं पहले बस एक कमल दत्त था। मैंने भी पहले एक साहूकार के पास नौकरी की थी। उसके बाद काम करता रहा और मेहनत करता रहा।"
प्रेम: "आपके बारे में जानकर मुझे अच्छा लगा सर।"
सागर के पापा: "प्रेम, देखो, मुझे पता है कि मेरे आने की खबर सुनकर ही ऑफिस में सब घबरा जाते हैं। लेकिन मैं अपने काम को लेकर तुम्हारी तरह कठोर हूं, इसलिए मुझे कंपनी की भलाई के लिए कठोर बने रहना पड़ता है।"
प्रेम: "जी सर, लेकिन जैसा मैंने यहां और बाहर आपके बारे में सुना था, आपका स्वभाव बिलकुल वैसा नहीं है।"
सागर के पापा: "प्रेम, मैं इस कंपनी को अपना मानता हूं, और मुझे तुम्हारे अंदर भी यही भावना दिखती है कि तुम भी यहां के काम को अपना काम समझकर करते हो। मुझे ऐसे ही लोगों की सख्त जरूरत है।"
प्रेम: "मतलब सागर सर का फैसला गलत नहीं है मुझे जॉब ऑफर करने का।"
सागर के पापा: "मुझे तो खुशी है कि सागर ने सबसे होनहार इंसान को चुना अपनी कंपनी के लिए।"
प्रेम: "जी, थैंक यू सर।"
सागर के पापा: "प्रेम, बाकी सब ठीक है, लेकिन तुम्हारा ड्रेसिंग स्टाइल ऑफिस वाला नहीं लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि तुम कॉलेज जा रहे हो।"
प्रेम: "जी, मैं कोशिश करूंगा इसे भी सुधारने की।"
सागर के पापा: "ओके, तो तुम अपने काम पर वापस जा सकते हो।"
प्रेम: "जी सर।"
प्रेम बड़े सर के केबिन से निकलकर अपनी टेबल पर जाता है। वहां जाकर देखता है कि सागर वहां उसका इंतजार कर रहा था। सागर प्रेम को इशारे से अपने केबिन में आने को कहता है, जिस पर प्रेम मना कर देता है।
सागर (जिद्दी अंदाज में): "प्लीज चलो।"
प्रेम: "ओके।"
सागर और प्रेम सागर के केबिन में जाकर बैठ जाते हैं।
सागर: "यार, ऑफिस में तुमसे बात करने के लिए कितने ड्रामे करने पड़ रहे हैं?"
प्रेम: "बस यही आदत किसी दिन तुमको और मुझे सुली पर लटका देगी।"
सागर: "ये सब छोड़ो, ये बताओ पापा से मिले तुम, तो कैसे लगे?"
प्रेम: "कैसे क्या लगे? जैसे सब होते हैं, वैसे ही तो हैं।"
सागर: "मेरा मतलब है कि उन्होंने तुमको पास किया या फेल?"
प्रेम: "मुझे भला कोई फेल कर सकता है क्या?"
सागर (प्रेम को छेड़ते हुए): "वही तो।"
प्रेम: "क्या मतलब?"
सागर: "वैसे मतलब वो नहीं था जो तुम समझ रहे हो। मेरा मतलब तो यह था कि तुम पास हो गए।"
प्रेम: "अरे, सर ने मुझे फुल नंबर से पास किया है। और हां, उन्होंने ये भी कहा कि उनको इस बात की खुशी है कि तुमने एक अच्छा इंसान ढूंढा है इस कंपनी के लिए।"
यह सुनकर सागर अपनी कुर्सी से उठकर प्रेम के पास जाकर प्रेम को कसकर गले लगा लेता है। प्रेम भी खुशी-खुशी में सागर को कसकर गले लगा लेता है। फिर अचानक से प्रेम स्वाभाविक रूप से असहज हो जाता है। सागर ये समझ जाता है, इसलिए वह प्रेम को छोड़ देता है और सॉरी बोलता है।
प्रेम: "सॉरी बोलने की कोई जरूरत नहीं है, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। मैं ही तुम्हें दोस्त नहीं बना सका अभी तक।"
सागर: "लेकिन मैं खुद नहीं जानता कि तुमसे दूर क्यों नहीं रह सकता।"
प्रेम: "अब ऐसे मत बोलो, किसी ने सुन लिया तो बेमतलब की आफत आ जाएगी, जबकि अभी मेरा और तुम्हारा कोई ऐसा इरादा नहीं है।"
सागर: "ये बताओ, अब मेरे पापा तुमको कैसे लगे?"
प्रेम: "जैसा सोचा था, वो वैसे नहीं हैं। बल्कि तुम खडूस हो और तुम्हारे पापा कितने अच्छे हैं। पता है, कितने सलीके से बात की उन्होंने मुझसे।"
सागर: "मतलब, मैं तुम्हें अभी भी खडूस लगता हूं?"
प्रेम: "इसमें कोई शक नहीं है मुझे।"
सागर (गंभीर स्वर में): "कभी तो मेरी बात को महत्व दिया करो, हमेशा मजाक में जवाब देना जरूरी है क्या?"
प्रेम (सागर को गंभीर देखकर खुद भी गंभीर स्वर में, सागर के नज़दीक आकर और उसका हाथ पकड़कर उसकी आंखों में आंख मिलाकर): "तुम खडूस हो, लेकिन मेरे लिए बहुत खास हो।"
सागर: "मतलब?"
प्रेम: "मतलब अभी नहीं बता सकता, कभी किसी और दिन बताऊंगा।"
सागर प्रेम का हाथ अपने हाथ से हटा लेता है और प्रेम तभी दो कदम पीछे हो जाता है। उसके बाद सागर और प्रेम दुबारा से अपने-अपने काम में लग जाते हैं। काम करते-करते लंच टाइम हो जाता है। सब खाना खाने के लिए जाते हैं। मिली भी अपना लंच लेकर प्रेम के पास आती है और कहती है: "चलो प्रेम, लंच करते हैं।"
प्रेम: "सागर को तो आने दो।"
मिली: "आज सागर लंच करने नहीं आएगा। वो बड़े सर ऑफिस में हैं, और अगर उन्होंने सागर को हमारे साथ लंच करते हुए देख लिया तो वो गुस्सा करेंगे। इसलिए सागर लंच मेरे साथ भी तभी करता है जब उनके पापा ऑफिस में नहीं होते हैं।"
प्रेम: "अच्छा, ऐसी बात है। कोई बात नहीं, तुम तो बैठो, हम दोनों भी तो दोस्त हैं, हम दोनों ही लंच करते हैं।"
मिली प्रेम के साथ लंच करने लगती है। उधर सागर अपने केबिन में बैठा बस ये सोच रहा था कि लंच टाइम हो रहा है और वो पापा की वजह से मिली और प्रेम के साथ खाना भी नहीं खा सकता। देखते-देखते उसका सब्र खत्म हो जाता है। और इधर प्रेम भी यही सोच रहा था कि कैसे भी सागर आ जाए, इसलिए वो खाना छोड़कर सागर को देखने जाता है। सागर भी अपने केबिन से निकलकर प्रेम के पास जाने लगता है। दोनों कोरिडोर में एक-दूसरे को आते देखते हैं।
प्रेम: "तुम खाना खाने क्यों नहीं आए?"
सागर: "मैं बस आ ही रहा था, बस कुछ जरूरी काम था।"
प्रेम: "झूठ, उससे बोला करो जिसे कुछ पता न हो। अभी पहले चलो, खाना खाओ, उसके बाद बात करते हैं।"
सागर (प्रेम से चलते-चलते पूछता है): "तुमने मेरे बिना लंच क्यों नहीं किया?"
प्रेम थोड़ा सोचता है और जवाब देता है: "दोस्तों के बिना मुझसे खाना नहीं खाया जाता, समझे।"
सागर: "ये भी ठीक है।"
सागर और प्रेम दोनों मिली के पास वापस आ जाते हैं और मिली सागर को देखकर खुश भी होती है और थोड़ी हैरान भी। इसलिए वह सागर से पूछती है: "तुम यहां कैसे? अगर सर ने देख लिया तो?"
प्रेम: "देख लेने दो, वो ऐसे नहीं हैं।"
सागर: "बिलकुल, प्रेम को तो पता चल गया आज कि मेरे पापा कैसे हैं, क्यों प्रेम?"
प्रेम: "हां, मिली, तुम भी बेकार में सर से इतना डरती हो, जबकि वो तो बहुत अच्छे इंसान हैं।"
मिली (सागर की तरफ देखते हुए): "इसको अभी पता नहीं है, लेकिन तुम तो अच्छे से जानते हो। वो तुम्हें कितना कुछ बोलेंगे और इसकी नौकरी जो जाएगी सो अलग।"
प्रेम: "एक मिनट, एक मिनट मिली! ये बताओ, मेरी नौकरी क्यों जाएगी भला?"
सागर: "अभी पहले खाना खाते हैं, भूख लगी है मुझे।"
मिली: "देखो, मैं आज पालक लेकर आई हूं।"
प्रेम: "मैं मसाला भिंडी लाया हूं।"
सागर: "तो सिर्फ बताओ मत, मुझे इधर दो।"
फिर तीनों मिलकर खाना खाने लगते हैं। वो तीनों खाना खा ही रहे होते हैं कि सागर के पापा सागर को प्रेम और मिली के साथ खाना खाते हुए देख लेते हैं।
बाकी का अगले भाग में.......