"कुंडलिया"
धीरज धरु जनि मोड़ मुख, हे भारत के वीर।
सुखदायक है अग्निपथ, जस गंगा तट नीर।।
जस गंगा तट नीर, तीर अर्जुन धनु सोहे।
दुर्योधन की पीर, चीर श्री कृष्णा मोहे।।
'गौतम' कर्म महान, न आपा खोना नीरज।
दे अवसर को मान, सियासत में रख धीरज।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी