प्रतिमा नाम था उसका, हमेशा मुस्कुराती रहती, ऐसा लगता कि मानों ज़िंदगी बहुत आसान है उसके लिए, ना पढ़ाई को गंभीरता से लेती ना जीवन को, उसकी हमेशा की ये आदत थी सभी क्लॉस में पढ़ने वाली सभी लड़कियों से कहना कि आज पार्टी दो ना, मजबूर कर देती थी उन लड़कियों को घर से पैसे मांगने के लिए, खुद भी देती थी, हालांकी उसकी पार्टी का मतलब बहुत सारा खर्च नहीं था कॉलेज की पास की दुकान से कभी कोलड्रिंक तो कभी पेस्ट्री या गरमा गरम समोसे। कभी कभी उसकी ज़िद से सभी परेशान हो जाते थे, प्रतिमा अपनी मौसी के यहां रहकर बी कॉम अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी, शुरु के दो साल उसने अपने माता पिता के यहां ही पूरे किए थे। जब भी मैं उससे ये पूछती की वो ग्वालियर से इंदौर पढ़ने क्यों आई वो सिर्फ हंसकर टाल जाती और कहती जाने दो ना सुरभी कभी किसी और दिन बात करेंगे इस बारे में।
हम सभी ने देखा उसका पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था लेकिन वो इस कोशिश में रहती कि किसी तरह एग्ज़ाम पास हो जाए और उसे डिग्री मिल जाए ताकि जीवन में कुछ कर सके। वो अपनी मौसी को काम में हाथ बटाकर कॉलेज आ जाती थी, रोज ही आती थी कभी भी अनुपस्थित नहीं रही, हम सब रविवार के इंतज़ार में रहते और वो कहती कि ये दिन बोझ की तरह कटता है।
एक्ज़ाम का मौसम शुरु हो गया, हमेशा कॉलेज में उपस्थित रहने वाली प्रतिमा गायब थी, आज हमें उसकी शरारतें और मुस्कान बहुत याद आ रही थी।
मैं कभी कभी उसकी मौसी के घर उससे मिलने चली जाती थी, तो परीक्षा खत्म होने के बाद उसकी मौसी के यहां गई, घर पर ताला टंगा हुआ था, तब मैंने पड़ोस के घर में जाकर उसका हालचाल जानने की कोशिश की, तब उसकी पड़ोस में रहने वाली चाची मुझे अपने आंगन में रखी चेयर पर बैठने को कहा बोली उसकी शादी हो गई है, तब मैंने पूछा ऐसी भी क्या जल्दी ? एग्ज़ाम तो दे देती तब वो बोली एक बात कहूं तुम अब उससे मिलने यहां फिर मत आना क्योंकि वो अब इस शहर में वापस कभी नहीं आएगी। क्या बताउं उसका तो भाग्य ही फूटा था, जब वो 19 साल की थी तब कॉलेज में पढ़ने वाले 21 साल के लड़के सचिन से उसका प्रेम प्रंसग शुरु हो गया लड़का संपन्न घर का था लेकिन अलग जाति का था दोनों ने बिना सोचे समझे मंदिर में शादी कर ली, लड़के को लगा कि वो दो बहनों के बाद इकलौता लड़का है तो उसकी हर बात मान ली जाएगी जैसी कि बचपन में मानी जाती रही है।
वो जैसे ही प्रतिमा को लेकर अपने घर पहुंचा तो उसके घरवालों ने प्रतिमा को अपनाने से इंकार कर दिया, उसने मंदिर में ही प्रतिमा को इंतज़ार करने को कहा वो दुल्हन के जोड़े में वहां बैठकर उसका इंतज़ार करती रही, तभी प्रतिमा के घरवालों ने उसे घर आया ना देखकर पुलिस में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी। आखिर में उसे पुलिसवालों ने मंदिर में ढूंढ निकाला, उसे दुल्हन के भेस में देखकर उसके घर के लोग आग बबूला हो गए और उसे घर चलने को कहा वो नहीं मानी थक हार कर वो घर चले गए, सुबह से शाम और शाम से रात हो गई और फिर वो मंदिर में ही सो गई, सचिन का कोई पता नहीं चला।
उसने अगले दिन उसके घर जाने का फैसला लिया तब देखा कि एक अर्थी निकल रही थी, पता चला कि सचिन के घर के लोंगो ने प्रतिमा को अपनाने से मना कर दिया और सचिन को कच्ची उम्र में लिए गए इस फैसला पर बहुत पछतावा हुआ कि उसकी पढ़ाई तक पूरी नहीं हुई और जेब में एक पैसा भी नहीं अब वो प्रतिमा को कहां रखेगा और अगर उसे छोड़ दिया तो वो उसके बारे में क्या सोचेगी। इसी दुविधा से वो निकल नहीं पाया और अपनी जान दे दी। जैसे ही उसके घर वालों की नज़र उस पर पड़ी तो उन्होंने प्रतिमा के आंसू भी नहीं देखे और भला बुरा कहना शुरू कर दिया, रोती हुई प्रतिमा अपने घर पहुंची वहां पैर रखते ही उसके माता पिता ने उसके चेहरे पर एक एक तमाचा जड़ दिया और कुल कलंकिनी का दर्जा दे दिया, और निकल जाने को कहा। पीड़ा की अग्नी में जल रही प्रतिमा घर की सीढ़ियों पर ही बैठी रही, उसके बड़े भाई को उस पर तरस आ गया और वो उसे उसकी मौसी के घर छोड़ आया क्योंकि ये बात आस पड़ोस में आग की तरह फैल गई थी और उसे पता था कि लोग उसके परिवार और प्रतिमा का ताने मार मारकर जीना मुश्किल कर देंगे।
उसके पड़ोस में रहने वाली चाची ने कहा कि प्रतिमा के लिए उसके माता पिता के यहां एक बहुत अच्छे लड़के का रिश्ता आया जिसकी शादी के कुछ दिन पहले ही उसकी होने वाली दुल्हन ने किसी और का हाथ थाम लिया, कार्ड तक छप चुके थे, किसी को दोष देकर भी क्या फ़ायदा था शायद लड़कीवालों ने उस लड़की की मर्ज़ी के खिलाफ ही रिश्ता तय कर दिया था, अब इस बात को उसके घर के लोग जल्द से जल्द ही भूल जाना चाहते थे और जल्द से जल्द उसकी शादी कर देना चाहते थे, उन्हें प्रतिमा के बारे में सब पता था लेकिन समाज के लोगों की तरह उन्होंने उसे ताने मारने के बजाए सहानुभूति व्यक्त की और दिल से अपना लिया, उसकी शादी का मुहूर्त एग्ज़ाम के वक्त ही निकल आया इसलिए उसने आगे की पढ़ाई अगले साल करने का फ़ैसला किया है।
चाची ने उसके हाथों में शरबत लाकर दिया जिसे पीते हुए सुरभी सोच रही थी हमेशा खुश दिखने वाली प्रतिमा अंदर से कितनी टूटी हुई थी, प्रतिमा की मुस्कान भी खंडित थी जिसे जिसमें छिपा दर्द कोई नहीं देख पाया।
शिल्पा रोंघे
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